महाभारत में यक्ष के प्रश्न और धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा दिये गये उत्तरों के संदर्भ में लगभग सभी विज्ञजन जानते हैं। जब कोई कठिन प्रश्न सामने आता है, जिसका उत्तर खोजना अनिवार्य समझा जाता है, तो उसे ‘यक्ष प्रश्न’ कहकर उसका महत्त्व समझाने का प्रयास किया जाता है। उसी प्रश्नोत्तरी में एक प्रश्न है.. ‘‘पंडित, विद्वान्, समझदार किसे कहते हैं?’’ युधिष्ठिर का उत्तर है....
पठकाः पाठकाश्चैव, येचान्ये शास्त्र चिन्तकाः।
सर्वे व्यसनिनो मूर्खाः, यः क्रियावान् स पण्डितः॥
अर्थात्- पढ़ने वाले, पढ़ाने वाले, और भी जो शास्त्र वचनों का चिंतन करने वाले हैं, वे सब व्यसनी मूर्ख हैं। पण्डित- समझदार केवल वे हैं, जो उन सूत्र- सिद्धांतों के अनुसार आचरण करते हैं, उस दिशा में क्रियाशील हैं।
युग निर्माण के संदर्भ में भी हमें इसी सूत्र को ध्यान में रखकर अपना और अपने प्रयासों का मूल्यांकन करना होगा। युग निर्माण के सूत्रों को पढ़ना- पढ़ाना, समझना- समझाना, उसके नारे लगाना भी जरूरी है, किन्तु केवल इतना करना पर्याप्त नहीं है। उन सूत्रों के अनुसार अपने और अपनों के जीवन को ढालना, वर्तमान स्तर की समीक्षा करते हुए, अगले लक्ष्य निर्धारित करते हुए आगे बढ़ते रहना भी जरूरी है। इस विवेकपूर्ण क्रियाशीलता के बिना श्रेष्ठ सूत्रों को याद करना, उनकी चर्चा करना भी एक प्रकार का व्यसन ही बन जाता है। हमें व्यसनी की सीमा से ऊपर उठकर समझदार बनना ही है।
इसलिए युग परिवर्तन के इस अत्यंत महत्त्वपूर्ण समय में प्रत्येक समझदार का यह संकल्प होना चाहिए कि हम युग निर्माण के सूत्रों को गहराई से समझेंगे और उन्हें जीवन का अंग बनाने के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं साधनों का एक अंश नियमित रूप से लगाते भी रहेंगे। युगऋषि की जन्म शताब्दी पर यही हमारी सार्थक श्रद्धाञ्जलि होगी।
युग निर्माण योजना ईश्वरीय योजना है, सबके लिए है। ईश्वरीय सनातन व्यवस्था के अंतर्गत इसके साथ जन- मन का संकल्प भरा पुरुषार्थ जुड़ना जरूरी है। इसीलिए युगऋषि ने नारा दिया है ‘युग निर्माण होगा कब? जन- जन जब चाहेगा तब।’ जन- जन तक उन सूत्रों को पहुँचाना, उनके मनों में ईश्वर के साथ साझेदारी का उत्साह जगाना, जिनमें उत्साह उभरे उन्हें किसी छोटे- बड़े कार्यक्रम के साथ सक्रियता पूर्वक जोड़ देना जरूरी है।