विचार क्रान्ति अभियान में भागीदारी के लिए युवाओं का आह्वान है। पुकार है—उन युवाओं के लिए, जो अपने जीवन में कुछ सार्थक करना चाहते हैं। जिनकी खोज कुछ ऐसा करने की है, जिसके द्वारा आत्म साधना करते हुए लोक कल्याण का पुण्य पाया जा सके। विचार क्रान्ति अभियान में ऐसा बहुत कुछ है जो युवाओं की सृजन संवेदना और उनके साहसिक संघर्ष को पैनापन देता है। व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण के तीन चरणों में-सृजन और संघर्ष के, संवेदना और साहस के सभी पहलू झलकते हैं। यहाँ चर्चा नहीं, क्रिया का कौशल है। जिनमें कुछ कर गुजरने की उमंग है, उनके लिए यह अमूल्य अवसर है। अच्छा तो यह है कि आज की युवा चेतना चेते और इसे किसी भी तरह से अपने हाथ से न जाने दे।
विचार क्रान्ति अभियान के प्रवर्तक युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव का युवाओं पर सम्पूर्ण विश्वास था। वे इस बात को बार-बार कहा करते थे कि ‘युवा एक सामान्य शब्द नहीं, महाशक्तिशाली बीजमंत्र है। जिसके विस्फोट में सम्पूर्ण विश्व को उलटने-पुलटने की ताकत है। परिवर्तन युवा शब्द का पर्याय है। तभी तो परिवर्तन के लिए चलाये जाने वाले प्रत्येक अभियान व आन्दोलन की सफलता इस पर निर्भर करती है कि उसमें युवाओं की भागीदारी कितनी है। सवाल जब युग परिवर्तन का हो, तब तो यह भागीदारी असीम और अनन्त होनी चाहिए।’ यही कारण है कि विचार क्रान्ति अभियान के प्रारम्भिक दिनों से ही गुरुदेव अपने लेखों और प्रवचनों से युवा चेतना को उत्तेजित, उद्वेलित करते हुए उसे अपने से आ मिलने के लिए प्रेरित करते और पुकारते रहे।
विचार क्रान्ति अभियान के अतीत से अब तक का इतिहास देखें, तो पायेंगे कि इसके प्रत्येक चरण में बहुतायत में युवा शामिल होते रहे हैं। यदि इसके वर्तमान संचालक मण्डल से लेकर आम कार्यकर्त्ता के जीवन के पन्ने पढ़े जायँ, तो यही सच पढ़ने को मिलेगा कि इनमें ज्यादातर लोग बीस से पैंतीस वर्ष की आयु में इस अभियान से जुड़े थे। इस पत्रिका के वर्तमान सम्पादक की भी यही स्थिति रही है। उसे भी किशोरवय में परम पूज्य गुरुदेव के ङ्क्षचतन ने छुआ था और युवावस्था में आने तक इस ङ्क्षचतन ने अंतर्मन का ऐसा रूपान्तरण किया कि सदा के लिए उन्हीं का हो गया। हालाँकि जब बाद में बोध हुआ तो पता चला कि वह जन्मों से उन्हीं सम्पूर्ण का सनातन अंश है। सम्भव है औरों को भी ऐसे अनुभव हुए हैं, पर इतना सच तो प्रत्यक्ष है कि युवा चेतना के लिए युगऋषि गुरुदेव का व्यक्तित्व अत्यन्त शक्तिशाली चुम्बक की तरह रहा है। जहाँ वे स्वाभाविक ही स्वयं को ङ्क्षखचता हुआ महसूस करते रहे हैं।आज गुरुदेव ने पंचतत्त्वों का लघु कलेवर छोड़कर चेतना का विराट् कलेवर ओढ़ लिया है।
विचार क्रान्ति अभियान और कुछ नहीं उनका चेतन व्यक्तित्व है। उनकी ज्योतिर्मय चेतना ही इसकी प्रत्येक गतिविधि में झिलमिलाती है और झलकती है। जिन्होंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा, पर आज उन्हें अनुभव करना चाहते हैं, तो उन्हें हैरान होने की जरूरत नहीं है। यह अनुभूति उन्हें विचार क्रान्ति अभियान की प्रवाहमयी धाराओं में आ मिलने पर सहज सुलभ हो जायेगी। जीवन साधना और सार्थक कर्म दोनों ही यहाँ सुलभ हैं। यौवन का कोई आयाम हो, विद्यार्थी हो या नौकरी-पेशा सभी को दिशा देने के लिए, जीवन लक्ष्य तक पहुँचा देने के लिए विचार क्रान्ति अभियान से बढ़कर सामर्थ्य किसी में नहीं है। यह इस पुस्तक के लेखक की स्वयं की अनुभूति है। कागद की लेखी नहीं आँखिन की देखी के आधार पर वह पूरी दृढ़ता के साथ इस सच का उद्घोष कर सकता है कि विचार क्रान्ति अभियान की सभी क्रान्ति धाराओं में हिमालय के ऋषियों की चेतना प्रवाहमान है। गुरुदेव ने जो दिखाया उसे आज युवाओं के सामने कह दें तो सच यही है कि इस महाभियान में स्वामी विवेकानन्द, महॢष अरविन्द, महात्मा विजयकृष्ण गोस्वामी आदि महामानवों के तपःपूत व्यक्ति घुले-मिले हैं।
इस सच पर युवा सोचें और अपनी चेतना को चेताएँ कि चाहत आध्यात्मिक जीवन की हो या फिर समाज और राष्ट्र के के लिए कुछ कर दिखाने की। इसे पूरा करने के लिए विचार क्रान्ति अभियान से अधिक अच्छा और कुछ नहीं है। कई बार युवाओं की भटकन पर ङ्क्षचता जतायी जाती है। किशोरों और युवाओं के अभिभावक उनके चरित्र की ङ्क्षचता पर परेशान होते हैं। युवा कन्याओं के माता-पिता अपनी बेटियों की कोमल संवेदनाओं के बहकाव और भटकाव पर आँसू बहाते हैं। इन पंक्तियों में हम उन अभिभावकों को आश्वस्त करना चाहते हैं कि वे यौवन की दहलीज पर पाँव रख रहे अपने बेटे-बेटियों के लिए परेशान होने की बजाय, उन्हें जिस किसी तरह विचार क्रान्ति अभियान में जोड़ें। इस अभियान से जुड़कर, अखण्ड ज्योति के पन्नों को पढ़कर उनका भटकाव थमेगा और वे सन्मार्ग पर चलकर सत्कार्य करने लगेंगे।
ऐसे नामों की चर्चा करना तो शायद उचित न होगा, पर अपने मिशन में उन युवक-युवतियों की संख्या हजारों में है, जिनके पाँव कभी जिन्दगी की राहों पर बहके, भटके और फिसले थे। जो कभी कीचड़ में सने थे, पर आज वे न केवल खुद सम्हल चुके, बल्कि औरों को सम्हाल रहे हैं। इस महाभियान में आ मिलने वालों में सभी वर्ग और सभी क्षेत्रों के युवक-युवतियाँ हैं। ग्रामीण आदिवासी युवाओं से लेकर शहरों के धनवान युवाओं तक सभी को यहाँ आकर आत्मतृप्ति मिली है। इनमें सामान्य वर्ग के छात्र-छात्राओं से लेकर उच्च व्यावसायिक संस्थानों में अध्ययन करने वाले सभी हैं। कई तो ऐसे हैं जो पहले कभी बहके-भटके थे, पर अब आई.ए.एस. जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा उत्तीर्ण करके देश का महत्त्वपूर्ण दायित्व सम्हाल रहे हैं।
जीवन सँवारने का यह अलभ्य अवसर उन युवाओं के लिए भी है जो इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं। उन्हें सोचना बस इतना है कि इस दैवी अभियान में किस रूप में अपनी भागीदारी चाहते हैं। स्वयंसेवी कार्यकर्त्ता बनकर, अपने अध्ययन अथवा रोजगार के साथ स्थानीय स्तर पर काम करते हुए, जहाँ कहीं भी अपने को उपयुक्त पायें, अभी इसी क्षण आगे बढ़ चलें। रूके नहीं, पथ दैवी प्रकाश से प्रकाशित है। डरना नहीं है, यह सद्भाग्य-सौभाग्य की समुज्ज्वल राह है। इस पर चलने पर श्रेष्ठतम के अलावा कुछ भी मिलने वाला नहीं है। यह राह उनकी है जो लोकमान्य तिलक, वीर सुभाष की तरह साहसी हैं। जिनमें स्वामी विवेकानन्द जैसी उच्चतम आदर्शों को जीवन में अवतरित करने की कल्पनाएँ हैं। यह राज, उन निवेदिताओं के लिए है, जो अपने गुरु को ढूँढ़ रही हैं।
आज के युवा विचार क्रान्ति अभियान को अपने मार्गदर्शक के रूप में अपनाने के साथ कैरिअर के रूप में भी अपना सकते हैं। लोकसेवा करके लोकनायक का सम्मान यहाँ बड़ी आसानी और सहजता से सुलभ है। समूचे राष्ट्र और विश्व के अनगिनत देशों में देवसंस्कृति को दिगन्तव्यापी बनाने का गौरव इस महाभियान से जुड़ने वाले युवाओं को स्वयं ही मिल जाता है। यहाँ लोकरीति भी निभती है और आत्मनीति भी। गृहस्थी धर्म का सम्यक् परिपालन और प्रव्रज्या का पुण्य दोनों ही यहाँ एक साथ उपलब्ध हैं। ऐसे महाअवसर को चुकने वाले को भला अभागे के सिवा और क्या कहेंगे? कभी गुरुदेव ने अपने महातप से हिमालय के ऋषियों की आँखों में छलक आये आँसुओं को पोंछा था, आज देश की नयी पीढ़ी को उन्हीं गुरुदेव द्वारा प्रज्वलित की गयी विचार क्रान्ति की मशाल को थामकर आगे बढ़ चलना है। इसके लिए युवा युगऋषि के युवा जीवन को अपना प्रेरणा स्रोत बनायें।