सम्पूर्ण क्रान्ति के लिए भारत माता ने युवाओं को पुकारा है। यह पुकार ऐसी है, जो पिछले दशक से भारतीय आकाश में गुंजायमान है। यह वह अपना संदेश है, जिसे युग द्रष्टा परम पूज्य गुरुदेव अपने देश की अपनी युवा पीढ़ी के लिए दे गये हैं। देह छोड़ते समय भी उनके दिल में देश के लिए गहरा दर्द था। राजनैतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार के पंक में फँसे देश के कर्णधारों की पतित अवस्था उन्हें बहुत सालती थी। उन्होंने स्वाधीनता संघर्ष के दौरान देश की राजनैतिक दशा देखी थी। स्वयं भी इसमें भागीदार रहे थे। अनेक जाँबाज युवाओं के बलिदानों को उन्होंने नजदीक से निहारा था और अब यह सिहरन पैदा करने वाली सड़न। समस्या एक हो तो कहा जाय। आतंकित सुरसा का पसरता मुँह न जाने कितने निर्दोषों को लील रहा है। सामाजिक दुरावस्था, विघटित होते परिवार और भी न जाने क्या कुछ ऐसा है जो भारत माता के आँचल को दागदार किये हुए हैं।
गुरुदेव कहते थे कि किसी एक अंग में फोड़ा हो, तो उसे थोड़ा सा चीरकर मवाद निकाला जा सकता है। पर जब पूरा शरीर मवाद से भर गया हो तो सम्पूर्ण कायाकल्प के अचूक विधान तलाशने पड़ेंगे। देश की जो दशा आज है, उसमें छोटी-मोटी क्रान्तियों से काम चलने वाला नहीं है। इसके लिए तो सम्पूर्ण क्रान्ति की संजीवनी चाहिए। यह महासाहस तो देश की युवा पीढ़ी ही कर सकती है। युवा पीढ़ी से उन्हें बहुत आशाएँ थीं। इन्हें लेकर उन्होंने अनेकों सपने बुने थे। बड़े गर्व और विश्वास के साथ कहा करते थे कि राष्ट्र की युवा चेतना यदि चेत गयी तो भारत माता यशस्विनी बनेगी। जब वे युवा पीढ़ी की सामर्थ्य पर यकीन करते हुए भविष्य को निहारते थे, उनके मुख पर खुशी छा जाती थी। वह हँसते हुए कहते थे-भारत का भविष्य उज्ज्वल है; परन्तु वर्तमान की दुरवस्था उन्हें दारुण दुःख देती थी।
ऐसी ही अंतर्वेदना के क्षणों में उन्होंने एक दिन कहा था-बेटा! यदि ईसा मसीह मरण के अंतिम पल में तुमसे पानी मांगें, तो क्या तुम दे सकोगे? दिल को चीरने वाला कैसा सवाल था यह? कैसी करुणा थी उनकी मुद्रा में। मानवता के लिए सलीब पर लटके हुए ईसा। वे ईसा, जिनके हाथ-पाँव में कीलें ठुँकी हुई थीं। जिनकी देह पर कोड़ों के निशान, जगह-जगह से फटी हुई त्वचा और उसमें से बहता रक्त। उन महात्मा ईसा का कल्पना चित्र मन में उभरते ही देह-मन में एक विचित्र सी लहर दौड़ गयी। सुनने वाले ने उनसे कहा-क्यों नहीं गुरुदेव? आप बताइये क्या करना है? कौन हैं ईसा? किसे पिलाना है पानी? उत्तर में वह केवल इतना बोले-पहचान सको, तो मुझे पहचान लो। मैंने तो देश के लिए सब कुछ सह लिया। अब भागीदारी नये युवक-युवतियों को करनी है। तुम्हें उन्हें मेरा संदेश सुनाना है।यह संदेश है—सम्पूर्ण क्रान्ति का संदेश। यही नवयुग के अवतरण को सम्भव बनाने वाले मसीहा को पानी पिलाने जैसा कार्य है। उनके वचन हैं कि सम्पूर्ण क्रान्ति में नारे या भीड़ की जरूरत नहीं है। इसके लिए संवेदना की पूँजी चाहिए।
संवेदना हो, तो जिन्दगी का सच पता चलता है। संवेदना होश का, बोध का दूसरा नाम है। जिसके दिलों की धड़कनों में संवेदना के स्वर गूँजते हैं, वह आलसी-विलासी, निष्ठुर, निष्करूण नहीं हो सकता। आसपास का दुःख उसे बेचैन-विकल करता रहेगा। जब तक वह इन पीड़ितों के लिए कुछ अच्छा नहीं करेगा, उसे राहत नहीं मिलेगी। संवेदना से ही स्वार्थ की साँकलें टूटती हैं। अहंता की जकड़न ढीली पड़ती है। युवाओं में संवेदना के ये अंकुर फूटने लगें, तो समझो कि सम्पूर्ण क्रान्ति की शुरुआत हो गयी।
युवा पीढ़ी के लोग वकील, डॉक्टर, राजनेता, प्रबन्धन विशेषज्ञ, तकनीकी ज्ञान में माहिर या फिर बेरोजगार अथवा विद्यार्थी हैं; इस सम्पूर्ण क्रान्ति के सक्रिय सैनिक बन सकते हैं। उन्हें करना केवल इतना ही है कि जमाने, परम्पराओं, नियमों, सामाजिकता, प्रतिष्ठा, स्वार्थपरता और भी ऐसी ही कितनी चीजों की बजाय संवेदना के पक्ष में डटकर खड़े हो जाय। उन्हें निश्चय केवल इतना ही करना है कि मानवीय संवेदना के विपरीत कुछ भी नहीं करेंगे। इसके लिए उन्हें हर कष्ट सहने के लिए तैयार होना है, प्रत्येक साहसिक संघर्ष के सरंजाम जुटाने हैं। अगर ऐसा होने लग जाय तो क्या आसपास दुःख का अँधियारा बचेगा? क्या कोई अनपढ़ रहेगा? नहीं कभी नहीं। फिर तो रोशनी ही रोशनी होगी।
युवा वकीलों की नजर यदि पैसों पर न होकर न्याय दिलाने पर हो, तो कितने उत्पीड़ितों के होंठों पर हँसी बिखर उठेगी और डॉक्टरों की अंतर्भावना यदि संवेदित हो सके तो कितनी ही कराहटें मुस्कराहटों में बदलेगी। बेरोजगार फिर अपना रोना रोने की बजाय किसी रोते हुए को चुप कराने में समर्थ होंगे। विद्यार्थी जो ज्ञान की साधना करते हैं, अनगिनत को ज्ञान बँटाने लगेंगे। गुरुदेव कहते थे कि सामान्य क्रान्तियाँ तो किसी क्षेत्र विशेष या वर्ग विशेष तक सिमटी रहती हैं, पर सम्पूर्ण क्रान्ति तो वह है, जिसका निनाद घर-घर हो। जिसकी चिन्गारियाँ प्रत्येक युवा मन में दहकें-धधकें। ये चिन्गारियाँ क्रमशः अंगारों व ज्वालाओं में बदलने लगे, तो समझो कि भारत माता के युवा बेटे-बेटियों में अपनी माँ के दुःखों को समझने की ताकत आ गयी।
इस सम्बन्ध में लाख टके का सवाल यह पूछा जा सकता है कि ऐसा करने की ताकत कहाँ से आयेगी? तो इसके जवाब में परम पूज्य गुरुदेव का युवाओं से वचन है कि जिसने हनुमान को समुद्र लाँघने और लंका दहन की शक्ति दी, जिसने गिलहरी को समुद्र में सेतु बनाने में सहायक बनने का साहस दिया, जिसने टिटिहरी के दुःख से द्रवित होकर महॢष अगस्त्य को प्रेरित किया, वही सम्पूर्ण क्रान्ति में लगने वाले युवाओं में शक्ति का संचार करेगा। वह कहते थे कि इस महत् कार्य में लगने वालों को शक्ति की ङ्क्षचता नहीं करनी चाहिए। शक्ति और अन्य आवश्यक बातें तो अपने आप ही आ जायेंगी। बस युवा अपने आपको काम में लगा दें। काम में लगते ही देखेंगे कि उनमें इतनी शक्ति आने लगेगी कि उसको सहन करना कठिन पड़ने लगेगा।
संवेदना से प्रेरित होकर दूसरों के लिए किया गया तनिक सा कार्य भी अंतस्थ शक्ति को जाग्रत कर देता है। दूसरों के प्रति थोड़ी सी भलाई का विचार भी क्रमशः हृदय में क्षसह का बल संचारित कर देता है। अमृत पुत्रों को भला मृत्यु का डर! प्रभु जब हमारे साथ सदा हैं तो पराजय की क्या क्षचता? युवा सुनें यह वीरवाणी-
‘जीवन कर्म सहज भीषण है,
उसका सब सुख केवल क्षण है।
यद्यपि लक्ष्य अदृश्य धूमिल है,
फिर भी वीर हृदय हलचल है।
अंधकार को चीर अभय हो,
बढ़ो साहसी जग विजयी हो॥’