युवा क्रांति पथ

युवा चेतना राजनीति में परिवर्तन लाए

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युवाओं में राजनैतिक चेतना के विकास और परिष्कार की जरूरत है। अभी की स्थिति तो विकट है। दलगत राजनीति हो या छात्र राजनीति दोनों की दशा डाँवाडोल है। कुछ गिने-चुने लोगों के अपवाद को छोड़ दें, तो यह पहली नजर कुछ षड्यंत्रकारियों का जमावड़ा लगता है, जो सत्ता व शासन का सुख पाने को किसी भी तरह के कुटिल कुचक्र रचने के लिए तैयार है। इनके कारनामे देखकर आम जनता राजनीति का सामान्य अर्थ ही भूल चुकी है। जन-जीवन में राजनीति को षड्यंत्र, कुटिलता, धूर्तता, चालबाजी, धोखाधड़ी का पर्याय माना जाता है। इस तरह के काम किसी को करते हुए देखकर कहा जाता है-देखो अमुक राजनीति कर रहा है। जबकि वास्तविकता में राजनीति राष्ट्रीय व्यवस्था एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को सुचारु व सुगम बनाने की प्रणाली है। इसके अपने मूल्य एवं नीतियाँ हैं, जो सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय के उच्च आदर्शों से ओत-प्रोत हैं।

    इन्हीं आदर्शों से प्रेरित होकर स्वाधीनता के राजनैतिक युग का प्रारम्भ हुआ था। तब गोखले, गाँधी, महामना मालवीय, लोकमान्य तिलक, सरोजनी नायडू, भीकाजी कामा जैसे लोग राजनीति में आये थे। इन्होंने देश सेवा के लिए अपने जीवन के सभी सुखों को त्यागा था। दुःखद बात यह है कि उस युग का आज अवसान हो चुका है। अपनी सम्पूर्ण विनम्रता के साथ कहना यही होगा कि अब न वे मूल्य रहे और न उन्हें निभाने वाले युवा। समझ में नहीं आता कहाँ ढूँढ़ें आज सुब्रह्मण्यम् भारती और सुभाष को? कहाँ हैं वे देश के दीवाने जो राष्ट्र सेवा के लिए हँसते-हँसते बलिदान करने के लिए तैयार रहते थे। अब तो जिधर नजर डालो उधर ही चारा घोटाला, यूरिया घोटाला, यहाँ तक कि सूखा व बाढ़ घोटाला करने वालों की भीड़ नजर आती है। ये राज तो करना चाहते हैं, पर किसी नीति से इनका कोई सरोकार नहीं है।

    इनके पास तो अनीति ही अनीति है। राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने छात्र राजनीति में भी अपनी घुसपैठ बना रखी है। इन्हीं के अनुषांगिक संगठन छात्र-राजनीति का खेल खेलते हैं। राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनैतिक दलों की तरह यहाँ भी अपराधों व अपराधियों का बोलबाला हो चला है। इसी महत्त्वपूर्ण कारण की वजह से ५ मई २००५ को राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर की खण्डपीठ ने विश्वविद्यालय सहित सभी शिक्षण संस्थानों में छात्र संघों और शिक्षण संघों के चुनाव पर रोक लगाने का फैसला सुना दिया। इसके पीछे बतायी गयी वजहें गौर करने लायक थीं। खण्डपीठ का कहना था कि नेतागिरी की धाक जमाने के लिए छात्र नेता शिक्षकों का अपमान करते हैं और राजनैतिक दल छात्र एकता को विभाजित कर रहे हैं।

    स्थिति नकारात्मक है, यह आज की राजनीति का सच है। इसे सकारात्मक करने का साहस उन्हीं को करना होगा। इस उल्टे को उलटकर सीधा करने की जिम्मेदारी उन्हीं की है। इस सम्बन्ध में कुछ प्रयास हो भी रहे हैं। अभी पिछले लोकसभा चुनाव में युवाओं का सांसद चुना जाना एक सुखद संकेत था। सुखद इसलिए कि विभिन्न राजनैतिक दलों के इन युवा सांसदों ने दलीय प्रतिबद्धता से उठकर राष्ट्रीय प्रतिबद्धता दिखाई। हालाँकि इन युवाओं में ज्यादातर अपनी खानदानी राजनैतिक विरासत सँभालने आये हैं। इनसे अलग उड़ीसा के एक युवा सांसद ऐसे भी हैं जो स्वामी विवेकानन्द से प्रेरित होकर राजनीति में आये हैं। कुछ बन्धनों को छोड़ दें तो इन युवाओं में जोश और जज्बा तो नजर आता है। भविष्य में भी यह बना रहे तो शुभ परिवर्तन सम्भव है।

    कई युवा ऐसे भी हैं, जिन्होंने राजनीति के घने अँधियारे को मिटाने के लिए प्रकाश दीप बनकर जलने का साहस किया है। ये युवा आई.आई.टी. के छात्र हैं। इन्होंने भारत उदय मिशन नाम का राजनैतिक संगठन बनाकर राजनीति और राजनैतिकों से दो-दो हाथ करने की ठानी है। इस संगठन के नेता गोपालकृष्ण हैं। इनका कहना है कि हमारा संगठन जिसे वे संक्षेप में बी.एम. (भारत उदय का संक्षिप्त नाम) कहते हैं, इसका उद्देश्य देश को माफिया, सरगनाओं, अपराधियों और जातिवादी नेताओं के चंगुल से बचाना है। उनके इस संगठन में दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कलकत्ता और लखनऊ समेत प्रमुख शहरों के प्रबन्ध संस्थानों, प्रौद्योगिकी संस्थानों और मेडिकल कॉलेजों के २,००० से भी अधिक युवा हैं।इन युवाओं का इरादा यह है कि किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी की नौकरी नहीं करेंगे और अपना पूरा कैरिअर पहले समाज सेवा और राजनीति में लगा देंगे। लोग उन्हें वोट क्यों देंगे और इनकी पहचान क्या है? इस सवाल के जवाब में बी.एम. के सदस्यों का कहना है कि पहले हम समाज सेवा करके गाँवों और शहरों में अपनी पहचान बनायेंगे, लोगों का विश्वास जीतेंगे और फिर खुद को राजनीति में परखेंगे। अपनी पहचान स्थापित करने के लिए बी.एम. ने हैदराबाद में अनाथों के लिए चल विद्यालय खोलकर अपने परिसर में और बाहर गरीब परिवारों के लिए पैसा इकट्ठा करके समाज सेवा की मुहिम शुरू की है। बी.एम. के एक सदस्य की सुनें, तो ‘हमने जम्मू-कश्मीर में भूकम्प पीड़ितों के लिए भोजन व कपड़े भेजे। बिट्स पिलानी के बी.एम. सदस्यों ने गरीब बच्चों से लगातर सम्पर्क बनाकर उनमें स्वामी विवेकानन्द की पुस्तकें बाँटीं।’

    ये राजनीति की ओर कैसे उन्मुख हुए इसके जवाब में भारत उदय मिशन के पदाधिकारियों का कहना है-देशभर में बढ़ती गरीबी ने हमें इस ओर प्रवृत्त किया है। हममें से ज्यादातर संस्थापक सदस्यों ने स्वयं गरीबी की मार सही है और फिर हम उन सभ्रान्तों के लिए मिसाल बनना चाहते हैं, जो निठल्ले बैठे रहते हैं और बिना कोई प्रयास किये व्यवस्था को गाली देते हैं।

    बी.एम. का मकसद लोगों के विचारों में क्रान्ति लाना है। उनकी सोच को बदलना है। इसके लिए इन्होंने bharatudaymission.com शद्व नाम की वेबसाइट खोली है। इसमें उन्होंने अपना चार्टर जारी किया है। जिसमें सभी लोगों को जाग्रत् करने का अनुरोध किया गया है। उनकी साइट, सिद्धान्त और विचारधारा को देखते हुए लगता है कि ये युवा सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद और भगतङ्क्षसह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरणा पाते हैं। संगठन अपनी ताकत, ऊर्जा और विचारधारा का स्रोत स्वामी विवेकानन्द को मानता है।

    इन युवाओं ने अपनी साइट में यह कहा है कि हमारा एक मात्र लक्ष्य आध्यात्मिक, सामाजिक, आॢथक और राजनैतिक साधनों के आदर्श मिश्रण से पहले भारत और फिर दुनिया में हर सम्भव हद तक प्रत्येक मनुष्य के आँसू पोंछना है। इस संगठन के सदस्यों ने जातिगत नाम का त्याग करने की कसम खायी है। बी.एम. की हैदराबाद इकाई की मॉडरेटर चेरला दिव्याश्री के नाम के साथ पहले उनका जातिगत नाम राव जुड़ा था। लेकिन संगठन के सदस्य बनने के बाद उन्होंने इसे छोड़ दिया। इसी तरह इसके सभी सदस्य दहेज न लेने और देने के लिए संकल्पित हैं। देश के युवाओं का प्रयास यह तो जताता है कि युवा अभी सोये नहीं सक्रिय हैं।

    अपने युग निर्माण मिशन की राजनैतिक सक्रियता  न होते हुए भी इसमें वर्तमान राजनैतिक सोच को दिशा देने की सामर्थ्य है। देश की युवा प्रतिभाओं को तीव्रता के साथ इस मिशन की गतिविधियों से स्वयं को जोड़ना चाहिए। जो युवा पहले से ही इसके कार्यक्रमों में भागीदारी निभा रहे हैं, उन्हें औरों को इस ओर चल पड़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। युवा सामर्थ्य यदि विचार क्रान्ति अभियान से वैचारिक ऊर्जा लेकर राजनैतिक चेतना के विकास एवं परिष्कार के लिए प्रयतनशील हो उठे, तो राजनैतिक परिदृश्य में परिवर्तन लाये जा सकते हैं। अच्छा हो कि इस महत् कार्य के लिए विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले युवा सचेतन एवं सक्रिय हों।
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