देश का हर युवा शक्ति साधक बने, क्योंकि दुर्बलता ही दुःख का पर्याय है। जो शक्ति-साधना में संलग्न हैं, शक्ति सम्पन्न हैं, वे भला क्यों दुःखी रहेंगे। अदम्य साहस, जबरदस्त जिजीविषा, प्रचण्ड पराक्रम, कभी भी हार न मानने वाली संघर्षक्षमता शक्ति के ही अलग-अलग नाम हैं। जहाँ ये हैं, वहाँ न दुःख टिक सकते हैं और न दुर्भाग्य। दुःखों का रोना तो शक्तिहीन रोते हैं। ग्रह दशाओं के फेर, काल की चाल की बातें वे करते हैं, जिनके अंतस् का शक्ति स्रोत सूखा है। जिनकी अंतश्चेतना में शक्ति के तूफानों का तीव्र वेग है, जिनका हृदय शक्ति की भक्ति से भरा है, वे तो एक ही घात में काल ही हर कुटिलता का करारा जवाब देते हैं। दुःखों और दुर्भाग्य की जड़़ को ही उखाड़कर फेंक देते हैं।
जो तत्त्ववेत्ता हैं, जीवन की अनुभूति से सम्पन्न हैं, उन सबका मानना है कि हम सब शक्ति से ही उपजे हैं। वह ही हमारी माँ है। उसी की कोख में हमारे अस्तित्व ने आकार लिया है। ज्ञानियों ने इसे गायत्री कहा है। देवों ने इसी की स्तुति में गीत गाते हुए मंत्रोच्चार किया है-
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्
का ते स्तुतिः स्तव्य परा परोक्ति॥
हे आदि देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी भी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूॢतयाँ हैं। जगदम्बा! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थों से परे एवं परावाणी हो।
चौबीस अक्षरों वाला गायत्री मंत्र-‘ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्’ शक्ति साधना का परम गोपनीय सूत्र है। इस महामंत्र को जपते तो सभी हैं, पर इस गोपन रहस्य को कम ही लोग जानते हैं कि गायत्री की शक्ति महातप में स्फुरित होती है। जो तप से विहीन हैं, संयम-सदाचार से रहित हैं, उन्हें गायत्री साधना का कोई लाभ नहीं मिलता है। जो तपश्चर्या करते हुए गायत्री की साधना सरिता में निमग्न होते हैं, उनमें दुःख और दुर्भाग्य को पराजित करने वाली समस्त शक्तियाँ प्रादुर्भूत होती हैं। ज्ञान और बोध देने वाली समस्त विद्याओं का उदय होता है।
तप शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक संघर्ष का परम अवसर है। युवाओं को इसे अपने स्वाभाविक धर्म के रूप में अपनाना चाहिए। संघर्ष यदि सद्बुद्धि से युक्त हो, संघर्ष यदि सन्मार्ग पर चलते हुए किया जाय, तो समझो कि गायत्री साधना ठीक-ठीक हो पा रही है। यूँ तो गायत्री साधना का अवसर हर पल-हर क्षण है, फिर भी अध्यात्मवेत्ताओं ने नवरात्र के नौ दिनों को इसके लिए विशेष सुयोग माना है। वासन्तिक एवं शारदीय दोनों नवरात्रों के अपने-अपने साधना रहस्य हैं। शारदीय नवरात्र को शक्ति का बोधन काल कहा गया है। यह परम अवसर हाथ से जाने न पाये। शक्ति-साधक यदि इसकी आध्यात्मिक गरिमा को पहचान सकें, तो जीवन में कुछ भी असम्भव नहीं रहेगा।
इस शारदीय नवरात्र की गायत्री शक्ति-साधना में सभी संलग्न हों। इसकी साधना विधि का सम्पूर्ण विधान गायत्री महाविज्ञान के पृष्ठों में पढ़ें, विचारें और विश्वास करें-भाग्य लक्ष्मी उसी के पास आती है जो शक्ति साधक है, जिसके ङ्क्षसह का हृदय है। शक्ति साधकों के लिए पीछे देखने का कोई काम नहीं है। आगे-आगे बढ़े चलो। युवा स्वयं स्फुरित होते हुए अनुभव करें, अनन्त शक्ति, असीम उत्साह, अनन्त साहस और अनन्य धैर्य, तभी युगान्तरकारी कार्य सम्पन्न होंगे। युवाओं की यह शक्ति-साधना अबाध और अविराम रहे, इसके लिए वह अनिवार्य रूप से स्वाध्यायशील बनें और सत्संग की गरिमा समझें।