युवा क्रांति पथ

युवा शक्ति

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        संवेदना और साहस की सघनता में युवा शक्ति प्रज्वलित होती है। जहाँ भाव छलकते हों और साहस मचलता हो, समझो वहीं यौवन के अंगारे शक्ति की धधकती ज्वालाओं में बदलने के लिए तत्पर हैं। विपरीतता इसे प्रेरित करती हैं, विषमताओं से इसे उत्साह मिलता है। समस्याओं के संवेदन इसमें नयी ऊर्जा का संचार करते हैं। काल की कुटिल व्यूह रचनाओं की छुअन से यह और अधिक उफनती है और तब तक नहीं थमती, जब तक कि यह इन्हें पूरी तरह से छिन्न- भिन्न न कर दे। हारे मन और थके तन से कोई कभी युवा नहीं होता, फिर भले ही उसकी आयु कुछ भी क्यों न हो? यौवन तो वही है, जहाँ शक्ति का तूफान अपनी सम्पूर्ण प्रचण्डता से सक्रिय है। जो अपने महावेग से समस्याओं के गिरि- शिखरों को ढहाता, विषमताओं के महावटों को उखाड़ता और विपरीतताओं के खाई- खड्डों को पाटता चलता है। ऐसा क्या है? जो युवा न कर सके? ऐसी कौन सी मुश्किल है, जो उसकी शक्ति को थाम ले? अरे वह युवा शक्ति ही क्या, जिसे कोई अवरोध रोक ले। समस्याओं की परिधि व्यक्तिगत हो या पारिवारिक, सामाजिक- राष्ट्रीय हो अथवा वैश्विक, युवा शक्ति इनका समाधान करने में कभी नहीं हारी है। रानी लक्ष्मीबाई, वीर सुभाष, स्वामी विवेकानन्द, शहीद भगतसिंह के रूप में इसके अनगिन आयाम प्रकट हुए हैं।

        यह प्रक्रिया आज भी जारी है। देह का महाबल, प्रतिभा की पराकाष्ठा, आत्मा का परम तेज और सबसे बढ़कर महान उद्देश्यों के लिए इन सभी को न्यौछावर करने के बलिदानी साहस से युवा शक्ति ने सदा असम्भव को सम्भव किया है। इनकी एक हुंकार से साम्राज्य सिमटे हैं, राज सिंहासन भूलुंठित हुए हैं और नयी व्यवस्थाओं का नवोदय हुआ है। सचमुच ही यौवन भगवती महाशक्ति का वरदान है। यहाँ वह अपनी सम्पूर्ण महिमा के साथ प्रदीप्त होती है। दुष्ट दलन, सद्गुण पोषण एवं कलाओं के सौन्दर्य सृजन के सभी रूप यहीं प्रकट होते हैं। ध्यान देने की बात यह है कि यौवन में शक्ति के महानुदान मिलते तो सभी को हैं, पर टिकते वहीं हैं, जहाँ इनका सदुपयोग होता है। जरा सा दुरुपयोग होते ही शक्ति यौवन की संहारक बन जाती है। कालिख की अंधेरी कालिमा में इसकी प्रभा विलीन होने लगती है। इसलिए युवा जीवन की शक्ति- सम्पन्नता सार्थक यौवन में ही संवर्धित हो पाती है।
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