भारत पर अभी उन ऋषि-तपस्वियों की छत्र-छाया है जिनके प्रयास से निष्ठुर पराधीनता से पीछा छूटा। इन दिनों वे भीतर से उद्भूत और बाहर के प्रहार से बचाने में अपनी शक्ति लगाये हुए हैं। अनर्थ तक स्थिति न पहुँच पावे, इसके निमित्त संरक्षण दे रही हैं। इन उपलब्धियों को भी कम नहीं माना जाना चाहिए।
श्री अरविंद के अनुसार मानव जाति का एकीकरण प्रगति के पथ पर है, चाहे वह अभी अधूरा आरम्भिक स्तर पर ही क्यों न हो वह संगठित किया जा चुका है और भारी कठिनाइयों के विरुद्ध संघर्ष कर रहा है, परन्तु उसमें बल और वेग है और यदि इतिहास के अनुभव को मार्ग-दर्शक माना जा सके तो, वह अनिवार्य रूप से बढ़ता चला जायेगा और अन्त में विजयी होगा। इस कार्य में भारतवर्ष की ऋषि-सत्ताओं ने सक्रिय रूप से प्रमुख भाग लेना प्रारम्भ कर दिया है। विश्व को उनका अजस्त्र आध्यात्मिक अनुदान मिलना प्रारम्भ हो ही चुका है। भारत की आध्यात्मिकता यूरोप और अमेरिका में नित्य बढ़ती हुइ्र मात्रा में प्रवेश कर रही है। यह आन्दोलन बढ़ेगा। प्रस्तुत काल की विपन्नताओ-विपदाओं के बीच अधिकाधिक लोगों की आँखे आशा के साथ भारत की ओर मुड़ रही हैं और न केवल उसकी शिक्षाओंं का, वरन् उसकी अन्तरात्मिक और आध्यात्मिक साधना का भी अधिकाधिक आश्रय लिया जा रहा है।
उज्ज्वल भविष्य का निर्धारण परम इच्छा-शक्ति का निर्धारण है और तदनुरूप ही उच्चस्तरीय आदर्शवादी विचारक्रान्ति का श्रीगणेश भी हो चुका है। इस महाअभियान ने भारत सहित समूचे पाश्चात्य जगत के दूरदर्शी विचारकों-मनीषियों को अपने वश करना शुरू कर दिया है। इस मार्ग मे यद्यपि अन्यान्य मार्गों की अपेक्षा जबर्दस्त कठिनाइयाँ हैं फिर भी समय रहते वे सभी निरस्त होंगी। अगले दिनों जो भी विकासक्रम घटित होने जा रहा है, वह आत्मा और अंतर्चेतना की अभिवृद्धि द्वारा ही होगा। उसका शुभारम्भ भारतवर्ष करेगा और वही आन्दोलन का केन्द्र होगा, तथापि इसका कार्यक्षेत्र विश्वव्यापी होगा। भारत का भविष्य उज्ज्वल है इस सुनिश्चितता पर सबको विश्वास करना चाहिए।
-वाङ्मय २७-७/८