बलि वैश्व

बलिवैश्व का सरल विधि विधान

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    बलिवैश्व की उपलब्धि और महत्व अनन्य है, परंतु विधि-विधान अति सरल है। अपने देवताओं और इष्टदेव को भोजन कराने के भाव से शुद्ध और पवित्र भोजन बनाना चाहिए। घर में बिना नमक-मिर्च बना चावल या रोटी एक कटोरी में अलग निकाल के उसमें थोड़ा सा घी-चीनी मिलाकर, उसमें से पाँच आहुति (छोटी गोली बनाकर) निम्र प्रकार से गायत्री मंत्र बोलकर देना चाहिए और कटोरी में बचा हुआ, प्रसाद (यज्ञावशिष्ट) जब घर के सदस्य भोजन करने बैठें तब थोड़ा-थोड़ा परोसना चाहिए। शांतिकुंज द्वारा एक 3’’ 33’’ का तांबे का हवन कुण्ड बनाया गया है। उसे गैस के बर्नर या चूल्हा की धीमी आँच पर रखकर उसमें पाँच आहुति देनी चाहिए और प्रतिदिन साफ करना चाहिए।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। इदं ब्रह्मणे इदं न मम।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। इदं देवेभ्यः इदं न मम।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। इदं ऋषिभ्यः इदं न मम।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। इदं नरेभ्यः इदं न मम।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। इदं भूतेभ्यः इदं न मम।
    पाँच आहुति देने के पश्चात् हवन कुण्ड के चारों ओर पानी की धारा करके ‘‘ॐ शांतिः शांतिः शांतिः’’ मंत्र बोलकर हवन कुण्ड को एक तरफ रख दो। आहुति भस्म हो जाय और अग्रि शांत होने के पश्चात् भस्म को तुलसी के गमले में, पवित्र वृक्ष के तने में या पवित्र स्थान पर विसर्जित कर देना चाहिए।
    परिवार का सदस्य जब अपने लिए नहीं परन्तु अपने परिवार के लिए सोचता है तो परिवार आबाद होता है और नागरिक जब अपने लिए नहीं परन्तु देश के लिए सोचता है तो राष्ट्र आबाद होता है।
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