वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

अन्य संदर्भ

<<   |   <   | |   >   |   >>
दीपयज्ञों का महत्व तो कम होने का प्रश्न ही नहीं है किन्तु जन भावनाएं जगाने तथा हृदय की भाव संवेदनाएं जगाने में मुक्तकों और कविताओं का बड़ा महत्व है.... प्रस्तुत कविताएं सुरताल के साथ गाई जाने वाली नही है.... किन्तु वीर रस का भाव एवं क्रांतिकारी भावनायें जगाने में पूर्ण समर्थ है... मंच के संचालक, प्रवक्ता अथवा कर्मकाण्डी स्वयंसेवक चाहे तो इन कविताओं का उपयोग करके वातावरण को प्रभावी बना सकते हैं....

तेरे सपने ही हकीकत हैं, तू सपने देख तो सहीं
तेरी ताकत ही, ताकत है, आजमा के देख तो सही
इन्साफ, उसके लिये है, जिसने करना है, इन्साफ
तु तो कर्ता है, किये चल, फिर देख तो सहीं....
 मत कहो किसी पर, कोई एहसान करते हो
भगवान का काम, या गुरु का काम करते हो

अपने कर्मो का फल सारा, खुद को ही मिलता है
तो बोलो, तुम किसके लिये क्या करते हो....?
आकर्षित करते बच्चों को -- जहर बेचते सारे लोगों
दूकाने सजाए बैठे -- बीमारी फैलाते लोगों
घर- घर जब बर्बाद हो रहा -- तुम कहां जाओगे

जिनके लिये दुकाने खोली -- क्या उनको बचा पाओंगे ??
  प्लीज, खुशियों को बाजार में ना ढूंढो
दिल तक जाने का रास्ता तलाश करो
दिल तो दिल है, मान जाएगा तो अच्छा भी लगेगा
जहां भी हो... मुस्कुरा तो दो... बहारों को ना ढूंढो

 व्यवस्था तुम्हें कहीं पर दिखेगी नही
राहत दिल को कहीं भी मिलेगी नही
भीतर उतरी ही नही है बात, तो होगा भी क्या ??
समीतियां लाख बनालो बात बनेगी नहीं....

चमक दमक से कहीं जिंदगी चला करती है
वह तो इन्सान को अकेला और तनहा ही रखती है
और जब लगता है... सब कुछ खत्म हो गया है अब...
तो जिंदगी की असली शुरुवात... यहीं होती है...

  परेशान हो जिंदगी से तो समझने की कोशिश करो
अकेले अकेले मत रहो... संगठन को दृढ करो
मत कहो कोई किसी का नही है इस दुनिया में....
ये दुनिया ही सब कुछ होगी... कर्तव्य तो पूरा करो....!

  निरुद्देश्य संगठन बना नही करते,
और, बिना लाभ के लोग जुटा नहीं करते
लोकहित साधना, सफल होगी कैसे ??
जब अपनी सोच बदलने का प्रयास ही नही करते....

नारी जागरण...

परिवर्तन के नारो का शोर, बहुत हुआ अब बंद करना
परिवर्तन को अपने घर से, यदि कर सको तो हां कहना

नारि जागरण होता क्या है, और किसे यह करना है
नारो से पहले नारी का -- सही रूप समझना है
आज, अभी जो दिखती है -- ये नारी नही तमाशा है
इसीलिये तो जनजीवन में -- फैली आज निराशा है
अबला, रूपसी और रमणीका, भाव हमें मिटाना है
मां, बहन और सखी रूप -- गर जगा सको तो हां कहना
परिवर्तन के नारों का शोर बहुत हुआ अब बंद करना...

बस अपने को भूलि है नारी, और उसे सब याद है
शरीर विशेष मिला है तो बस -- लाभ उठाना याद है
कुछ पुरुषों ने कहा जो उसको -- तुमने सच क्यूं माना है ??
तुमने नारी के स्वरूप को, इतना हल्का क्यूं माना है ??
निर्माणी, कल्याणी और गुरू -- यह स्वभाव है नारी का
आजाए स्मरण, यह भाव उसे -- गर जगा सको, तो हां कहना
परिवर्तन के नारों का शोर बहुत हुआ अब बंद करना...

मां ने दूध पिलाया ही नहि -- मां का स्मरण कहां से हो
सच्चाई तो यही दिख रही -- अब चाहे जो मजबूरी हो
मां के आंचल में लोरी सुन -- कहां कोई अब सोता है ??
भावभरा संस्कारित भोजन -- कहां किसी को मिलता है ??
निष्ठुर मन स्वार्थी समाज -- ऐसे ही ना बनता जाए
निष्ठा और सेवा की भावना, बस घुट्टी में पिलाते जाना
परिवर्तन के नारों का शोर बहुत हुआ अब बंद करना...

बहन बेटियों के आदर्शों पर, अब तक भाषण बहुत दिया है
सच तो नारी की आत्मा को, तुमने ही तन से अलग किया है
या देवी सर्वभूतेषु का मंत्र -- मंदिर में गाते आया है
वर्षों से पुरूषों ने पौरूष -- बस नारी पर ही दिखाया है
एक काम करो, नारी की गरिमा आज उसे फिर लौटा दो
तुम हो पुरुष, हो परमवीर, यदि साहस हो तो हां कहना

परिवर्तन के नारों का शोर बहुत हुआ अब बंद करना...
परिवर्तन को अपने घर से, यदि कर सको तो हां कहना
नारि जागरण ही उपाय है, कर सको तो हां कहना....



अपने चरित्र के प्रति, जब तक, कोई गंभीर नही होता...
तब तक उसके आस- पास कुछ भी सही नही होता...
बडी उम्मीद से लोग पास तो आते हैं पर कुछ पा नही सकते...

क्योंकि...

सच्चाई और सूर्य का विकल्प.... किसी के पास नही होता...
स्वावलंबन
स्वावलंबन की परिभाषा में, क्या कुछ नही समाता है
संयम और सहकार का धरम, जनहित से इसका नाता है

शर्तें-

टी.वी. के रंगीन तमाशे से, पहले तुम बाहर आओ
स्वावलंबी समाज बनाना है तो, फैशन का घर से चलन मिटाओ
यदि चाहते हो खुशहाली -- तो परिस्थिति को पहले जानो
अपने लोग, देश, संस्कृति की -- रीति नीति को भी पहचानों
कौन फिजूल खर्ची रोकेगा -- और स्वदेशी खरीदेगा ??
वही करेगा जो जीवन में, सेवा धर्म समझता है...
 
स्वावलंबन की परिभाषा में....

अपनी खरीदि से गांवों का -- हम रोजगार बढा देंगे
खाएं कसम, कि हम आज -- इस धर्मयुद्ध में कूदेंगे
देश संस्कृति पर भाषण देना -- बिलकुल ही बेमानी है
जो देश हित में जी न सका -- वो कैसा हिन्दुस्तानी है
दो घंटे का यह जोश नही -- जीवन संयम का काम है
वही करेगा जो जीवन में -- राष्ट्र- धर्म समझ सकता है...

स्वावलंबन की परिभाषा में....

बडे- बडे राष्ट्रों की उन्नति का -- श्रम स्वावलंबन सार है
हो देश अपना स्वावलंबी -- तो ग्राम विकास आधार है
आज अर्थ तंत्र पर फैली -- विदेशी तंत्र की छाया है
ट्रेक्टर खाद और बीज दवा में, कृषि तंत्र भरमाया है
तो करो क्रांति और चलो गांव में, इस भ्रम चक्र को हम तोडें
लेकिन, वही चलेगा अपने घर से -- जो क्रांतिवीर बन सकता है....

स्वावलंबन की परिभाषा में....

मेरे देश में हाय जवानी मांग मांग कर जीती है
जब कि सफलता, बुद्धिमानी और कुछ पसीना मांगति है
पानी, मिट्टी, और जंगल से -- सब कुछ बनाया जा सकता है
गौ की सेवा करके देखो -- स्वर्ग धरा पर आ सकता है
हलधर और गोपाल की परम्परा समृद्धी की गाथा है
वही मानेगा अन्तर मन से -- जो श्रम का महत्व समझता है...

स्वावलंबन की परिभाषा में, क्या कुछ नही समाता है
संयम और सहकार का धरम, जनहित से इसका नाता है

परिवार

जीवन का लक्ष्य तय है, तो वही कीमती है, याद रखना
आदमी टूटे भी तो अच्छा है, कोई बात नही याद रखना
बहुत सस्ता है, लोगों की ठोकरों से सीख मिल जाय यदि
इन्सानी संबंधों की सच्चाई हमेशा याद रखना
सुख दुख, मन की ही हार जीत है, और कुछ भी नही
जो कुछ हम करेंगे, वहीं दिखेगा, वही मिलेगा, याद रखना

कर्तव्य परीक्षा का प्रश्नपत्र है, ईश्वर ने दिया है, याद रखना
लक्ष्य प्राप्ति की ये सीढियां हैं, इन्हीं से जाना है, याद रखना
यही कर्म है, यही पूजा है, जीवन की साधना है यही
लेन देन साफ ही रखना है, यह बात, हमेशा याद रखना
कर्तव्य, हमारा ही लिया हुआ ऋण है, और कुछ भी नही
जो कुछ हम करेंगे, वही दिखेगा, वही मिलेगा, याद रखना

आत्म सुधार

अपनी ही अंतः ना बदला, तो दुनिया फिर कैसे बदलेगी
आत्म सुधार का प्रयास ही ना हो, तो दुनिया फिर कैसे सुधरेगी
चित्र बदल गए, वस्त्र बदल गए, आगे फिर विस्तार क्यों नहीं ??
दी है राह गुरू सत्ता ने, अंतः से स्वीकार क्यों नहीं ??
बस कहा गया, पर किया ही नही, तो ऐसा सच मानेगा कौन ??
संभावनाएं तो और भी हैं, पर दिखे नही तो दोषी कौन ??
नये विचार ही आ न पाए तो, मनः स्थिति किसकी बदलेगी ??
बिना मनः स्थिति को बदले परिस्थितीयां कैसे बदलेगी ??
अपनी ही अंतः ना बदला, तो दुनिया फिर कैसे बदलेगी....
गुरुदेव की गुरु दक्षिणा, उन्हें देनी थी, फिर दी क्यों नही ??
कुलुष कषाय अपने अंतस के, धुले तो नही, क्या दिखे भी नहीं ??
मनवाणी अंतस को धोया है, नित्य, ये मानेगा कौन ??
प्राणायाम भी नित्य किया, निष्प्राण रहे तो दोषी कौन ??
सोच रहे हैं दुनिया भरकी, दुनिया ये कैसे सुधरेगी ??
आत्म संयम से हम सुधरें, तो प्रेम से दुनिया सुधरेगी ।।
अपनी ही अंतः ना बदला, तो दुनिया फिर कैसे बदलेगी....
अनुष्ठान और यज्ञ विधान, खूब किये फिर लाभ क्यों नही ??
अंतः में देवत्व ना जगे -- ऐसी विधियां स्वीकार भी नही
कर्मकाण्ड तो चलो ठीक है -- पर कर्म नही तो दोषी कौन ??
गुरु ने कहा विचार क्रांति हो, मैं हूं विचार, समझा है कौन ??
साधना भगवान की नहीं, जब कभी अपनी होगी
अनुष्ठान तब पूरा होगा, दुनिया जब अपनी बदलेगी...
अपनी ही अंतः ना बदला, तो दुनिया फिर कैसे बदलेगी
आत्म सुधार का प्रयास ही ना हो, तो दुनिया फिर कैसे सुधरेगी

देव परिवार

सोचना अच्छा है, पर बिना किये क्या होता है
नया जन्म, मेरे भाई, बिना मरे कहां मिलता है
कोशिश या शुरुवात तो सभी करते हैं
योजना हो, संकल्प हो, तो काम भी होता है
सहयोग भी मिल सकता है, पर याद रखना
अपने अपने लाभ से हर व्यक्ति जुड़ा होता है
यह लाभ ही कारण है जिससे जुडते हैं लोग
आस हमेशी बनी रहे, यह ध्यान रखना होता है
सोचना अच्छा है, पर बिना किये क्या होता है....
कोई आधार, कोई दीवार, कोई छत बने
तो, कहीं भी, कभी भी घर बनता है
बंधन कर्त्तव्य का मान लें, तो लोग कैसे भी हों
एक प्यार भरा परिवार, वहां होता है
बस प्यार व कर्त्तव्य से बंधा रहता है परिवार
कोई देवता बना, इसे बनाए रखता है
सोचना अच्छा है, पर बिना किये क्या होता है....
अकेले अकेलों का परिवार नही होता है
कोई तो एकता का आधार बना करता है
मन मारता है, सेवा करता है, देने वाला बनता है कोई
तो उसी तप से घर भी स्वर्ग सा बना रहता है
किसी भी घर में, यह कोशिश अगर करे कोई
तो उन्हें सुखी होने से, कोई रोक नही सकता है
सोचना अच्छा है, पर बिना किये क्या होता है
नया जन्म, मेरे भाई, बिना मरे कहां मिलता है

व्यक्ति निर्माण

मात्र साधनों सुविधाओं से, कोई भी लक्ष्य नहीं मिल सकता
आदमी ही जब ठीक नही हो, कुछ भी ठीक नही हो सकता...
योजनाएं तो बहुत सी हैं, पहले भी खूब बनाई हैं
लोगों को बतला समझाकर, कसमें भी खूब खिलाई है
देखो जहां पर एक भी व्यक्ति, तनके खडा हो जाएगा
सब के हित में काम करेगा, उनका अपना हो जाएगा
वहीं तो काम शुरु भी होगा, निश्चित मंजिल तक जाएगा
तो उस व्यक्ति को ढुढों पहले, जो ऐसा पुरुषार्थ करेगा
वर्ना तुम्हारी योजनाओं का, कुछ भी अंजाम नही हो सकता
आदमी ही जब ठीक नही हो, कुछ भी ठीक नही हो सकता...
चाहे जहां भी नजर घुमालो, अकेलापन सब पर हावी है
सबकी यही शिकायत है कि, सच्चा नही कोई साथी है
तो दिल पर रख कर हाथ से पूछो, हमने किसका साथ दिया है
व्यक्ति को उसकी नजरों से, कब देखा और स्वीकार किया है
हर व्यक्ति का मूल्य है अपना, जो इसको स्वीकार करेगा
तो उस व्यक्ति को ढूंढो पहले, जो दिल से ऐसा काम करेगा
वर्ना तुम्हारे तामझाम का, कुछ भी अंजाम नही हो सकता
आदमी ही जब ठीक नही हो, कुछ भी ठीक नही हो सकता...
कौन किसी की सुनता है अब, कौन किसे समझा सकता है
कौन आदमी कब धोका देदे, कहा नही जा सकता है
तो हाथ मिलाने से पहले अब, मन मिलाने का लक्ष्य रखें
सारे कार्यक्रमों में केवल, व्यक्ति निर्माण का लक्ष्य रखें
पहले उसको तैयार करो जो, गुरु के जैसा जीवन जीयेगा
वंदनीय माताजी जैसा, सबके हित की बात करेगा
वर्ना तुम्हारी योजनाओं से कुछ भी नया उभर नही सकता,
आदमी ही जब ठीक नही हो, कुछ भी ठीक नही हो सकता...
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118