गायत्री अनुष्ठान का विज्ञान और विधान

महा अनुष्ठान

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चतुर्विंशति लक्षाणां सततं तदुपासकः ।।

गायत्रीणामनुष्ठानाद् गायत्र्या सिद्धिमाप्नुते

(तदुपासकः) गायत्री का उपासक (सततं) निरन्तर (चतुर्विंशति लक्षाणां) चौबीस लाख (गायत्रीणां) गायत्री के (अनुष्ठानत्) अनुष्ठान करने से (गायत्र्याः) गायत्री की (सिद्धिमाप्नुते) सिद्धि को प्राप्त करता है। अर्थात् उसे गायत्री सिद्ध हो जाती है।

लघ्वानुष्ठानतोवापि महानुष्ठानतोऽथवा ।।

सिद्धिं विन्दति वै नूनं साधकः सानुपातिकम्

(लघ्वानुष्ठानतः) लघुअनुष्ठान करने से (अथवा) (महाअनुष्ठानतः) महाअनुष्ठान करने से (साधकः) साधक (नूनं) निश्चय से (सानुपातिकां) उसी अनुपात से (सिद्धि विन्दति) सिद्धि को प्राप्त करता है।

सवालक्ष की अनुष्ठान विधि पीछे वर्णन की जा चुकी है। इसे करने से अनेक प्रकार की कठिनाइयों का समाधान होता है। इससे बड़ा अनुष्ठान चौबीस लक्ष गायत्री जप का होता है। इसे पूरा करने के लिए साधक को विशेष सुविधाएँ होनी चाहिए। घर छोड़कर बाहर जाने का अवसर बार- बार न आने चाहिए। इसे बहुधन्धी, चिन्ताग्रस्त, दौड़धूप करते रहने वाले नहीं कर सकते। इसे करने के लिए चिन्ता रहित परिस्थितियाँ होनी चाहिए। पर जब यह अनुष्ठान पूरा हो जाता है तो गायत्री की सिद्धि मिल जाती है।

चौबीस लक्ष जप के लिए कम से कम चौबीस मास और अधिक से अधिक तीन वर्ष लगने चाहिए। दो वर्ष में करने वाले को प्रतिमास एक लक्ष का जप पूरा करना होता है और तीन वर्ष करने वाले को लगभग ६७०० मन्त्र प्रतिमास जपने होते हैं। अपनी सुविधा और स्थिति को ध्यान में रखकर इस प्रकार का कार्यक्रम बनाया जा सकता है, जिसमें प्रतिदिन समान संख्या में मंत्र जप चलता रहे। अन्य सब विधियाँ सवालक्ष जप के समान ही हैं।

कोई साधक मण्डली किसी सामूहिक प्रयोजन के लिए चौबीस लक्ष गायत्री का अनुष्ठान कर सकते हैं। किसी बहुत छोटे प्रयोजन के लिए सवा लक्ष का अनुष्ठान भी हो सकता है जितने साधक मिल कर जितने दिन में उसे पूरा करना चाहें उसे ध्यान में रखते हुए प्रत्येक साधक के प्रतिदिन कितने मंत्र जपने चाहिए इसका कार्यक्रम बनाया जा सकता है।

धनी लोग दूसरे पंडितों या साधकों द्वारा सवालक्ष का चौबीस लक्ष का अनुष्ठान पूरा करा सकते हैं। ऐसे अनुष्ठान पूरा करने में १,३,५,७ इस प्रकार जप संख्या के दिन या मासों का कार्यक्रम बनाना चाहिए और उसके प्रारंभ तथा अन्त होने के दिन शुभ हों इसका ध्यान रखना चाहिए। चन्द्रवार, गुरूवार तथा शुक्रवार गायत्री के आरम्भ तथा अन्त के लिए शुभ हैं। परन्तु यह स्मरण रहे दूसरों से कराये हुए अनुष्ठान की अपेक्षा की जाने वाली साधना का फल अधिक नहीं है।

सवालक्ष जप वाला साधन लघु अनुष्ठान कहा जाता है और चौबीस लक्ष जप वाला महा अनुष्ठान इन दोनों में लगभग इतना ही बड़ा है। मोटी कहावत है कि ‘‘जितना गुड़ डालते हैं। उतना मीठा होता है।’’ जितना परिश्रम किया जाता है उतना अधिक फल प्राप्त होता है। साधारणतः नित्य प्रति बिना प्रतिबन्ध का जप करना- साधारण दैनिक साधना है, उसका फल मन्थर गति से धीरे- धीरे परन्तु सुदृढ़ होता है। अनुष्ठान एक विशेष- सामयिक कलाप है और उसका फल भी वैसा ही होता है।

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