गायत्री उपासना में कोई त्रुटि रह जाने से कोई अनिष्ट होने की
सम्भावना स्वप्न में भी नहीं रहती ।। अधिक से अधिक इतनी ही हानि
हो सकती है कि लाभ कम मिले। माता अपने पुत्रों का कभी किसी
प्रकार का अनिष्ट नहीं करती।
कुर्वान्नापि त्रुटिर्लोके बालको मातरं प्रति।
यथाभवति कश्चिन्न तस्यां अप्रीति भाजनः।
कुर्वन्नपि त्रुटिर्भक्तः कश्चिद् गायत्र्युपासने ।।
न तथा फल माप्नोति विपरीर्त कदाचन ॥
-गायत्री संहिता