गायत्री पुरश्चरण का विधि- विधान बहुत विस्तृत एवं जटिल है।
संक्षेप में एवं सरल रूप में उसके सभी अंगों का वर्णन
पृथक-
पृथक इस प्रकार है।
(१) नित्य कर्म
प्रतिदिन प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में निद्रा त्यागकर उठे। आँख
खुलते ही ईश्वर का ध्यान करे और मल- मूत्र का विसर्जन करके
स्नान करे। शुद्ध धुले हुए वस्त्र धारण करे। आहार- विहार को ठीक रखे। बुरे कर्मों से बचे। बुरे विचारों से दूर रहे। ब्रह्मचर्य से रहे।
गुरूपूजनम् गुरूध्यानम्
नित्य कर्म में प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में शय्या से उठकर
सुखासन में स्थित हो, अपने मस्तिष्क मध्य में सहस्रार स्थित योग
पीठ पर विराजमान सर्वसिद्धि प्रदाता गुरुदेव का ध्यान करना चाहिए। ध्यान का मन्त्र इस प्रकार है-
ब्रह्मरन्ध्रे सिते पद्मे सहस्रदलशोभिते ।।
श्रीगुरूं परमात्मानं व्याख्यामुद्रालसत्करम् ॥१॥
द्विनेत्रं द्विभुजं स्मेरं कर्पूशकलोज्जवलम्।
पद्मासनं सदा प्रातर्ध्यायेदाखिलसिद्धिदम् ॥२॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरूवे नमः ॥३॥
नमोऽस्तुते गुरवे तस्मै गायत्रीरूपिणे सदा।
यस्य वागमृतं हन्ति विषं संसारसंज्ञकम् ॥४॥