इस महाशक्ति का विस्तार अत्यन्त व्यापक है, जब समस्त सृष्टि की अगणित प्रक्रियाओं का संचालन उसी के द्वारा होता है, तो कितने प्रकार की शक्तियाँ उसके अन्तर्गत काम करती होंगी, इसकी कल्पना कर सकना भी कठिन है। पर मनुष्य सीमित है। उसकी आवश्यकताएँ एवं शंकायें भी सीमित हैं, जिन वस्तुओं को प्राप्त करके उसका व्यक्तित्व निखर उठता है एवं मन उल्लसित हो जाता है वे विभूतियाँ भी सीमित हैं। यह सीमित वस्तुएँ गायत्री का एक छोटा अंश मात्र है मनुष्यों में जो कुछ प्रशंसकीय एवं आकर्षक विशेषताएँ दिखाई पड़ती हैं, उन सबको उस महाशक्ति का छोटा सा प्रसाद ही समझना चाहिए। मानव शरीर में वह शक्ति किन प्रमुख रूपों में अधिष्ठित है इसका परिचय देते हुए माता स्वयं कहती है-
अहमेक स्वयमिदं वदाति जुष्टंदेवेभिरूत मानुषेभिः ।।
य कामये तमुग्र कृणोमि त ब्रह्माणं तमृर्षि तं सुमेघा ॥
मैं तत्वज्ञान का उपदेश करती हूँ, जिसे चाहती हूँ उसे समुन्नत करती हूँ, उसे सद्बुद्धि देती हूँ ऋषि बनाती हूँ और ब्रह्मपद प्रदान करती हूँ ।।