भारतीय धर्म और संस्कृति को आपको देवधर्म और देव- संस्कृति कहना चाहिए। इसका अगर वास्तविक स्वरूप आपको ‘‘अणोरणीयान् महतो महीयान्’’ (वह सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और विराट से भी विराट) में देखने का हो तो बात अलग है, तब तो आपको विस्तार में ही जाना पड़ेगा और ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी होगी। लेकिन अगर आपका मन ऐसा हो कि संक्षेप में ही हमको बता दीजिए, थोड़े में ही बता दीजिये तो सूत्र रूप में ही भारतीय धर्म और संस्कृति को आपको समझाया जा सकता है। उसका रहस्य और सामर्थ्य जहाँ छुपी पड़ी है, उसकी जानकारी कराई जा सकती है।
पाणिनि का व्याकरण बड़ा विशाल है। संस्कृत का यह ग्रामर दुनिया में सबसे ज्यादा बड़ा और विस्तृत है, लेकिन ये छोटा- सा है। कितना बड़ा है? इस व्याकरण के आठवें अध्याय के प्रारंभिक सूत्र में यह बताया गया है कि शंकर भगवान् ने डमरू बजाया और डमरू बजाने के बाद चौदह सूत्र निकले, चौदह आवाजें निकली। बस इन्हीं चौदह आवाजों की व्याख्या करते हुए ऋषियों ने, पाणिनि ने और दूसरे शास्त्रकारों ने यह व्याकरण शास्त्र, भाषा शास्त्र, संस्कृत शास्त्र, निरुक्त और दूसरी चीजों को बना कर रख दिया है। चौदह सूत्र थे जब डमरू बजाया था, तब उसमें से आवाजें निकली थीं। छोटी- सी चीज थी वह, और उसका बहुत बड़ा विस्तार हो गया।