गायत्री महामंत्र की अद्भुत सामर्थ्य

सब कुछ मिल सकता है इससे

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गायत्री मंत्र की महिमा के बारे में कि इस मंत्र से क्या लाभ हो सकता है? इसके बारे में अथर्ववेद की एक बहुत अच्छी साक्षी आती है। अथर्ववेद के गवाह से अच्छा कोई और गवाह चाहिए क्या? नहीं, बेटे इससे अच्छा गवाह नहीं मिलता। दूसरे गवाह गलत भी हो सकते हैं, झूठे भी हो सकते हैं, ऐसे गवाह भी हो सकते हैं, जो अपनी प्रसन्नता के लिए कुछ कहते हों या अपनी बात का महत्त्व बढ़ाने के लिए कहते हों, नमक- मिर्च मिलाते हों, लेकिन वेदों के बारे में मैं इस तरह की कल्पना भी नहीं कर सकता कि वे हमको गलत बात बताएँगे, झूठ- मूठ की बात बताकर बहका देंगे। गायत्री मंत्र जिसकी कि हम आपको उपासना सिखाते हैं, गायत्री मंत्र जिसको कि हम सारे विश्व में फैलाना चाहते हैं, गायत्री मंत्र जिसके आधार पर हम न्याय कराना चाहते हैं। गायत्री मंत्र जिसके आधार पर हमारी तमन्ना और हमारी उम्मीद यह है कि मनुष्य के भीतर देवत्व पैदा होना चाहिए और जिसके बारे में हमारी तमन्ना यह है कि सारे सामाजिक वातावरण में श्रेष्ठ परम्पराओं की स्थापना होनी चाहिए।

 इसके लिए क्या करना होगा?  इसके बारे में गायत्री मंत्र की गरिमा को, स्वरूप को और उसकी महत्ता को, महिमा को समझना पड़ेगा कि गायत्री मंत्र से क्या हो सकता है? ताकि ठीक तरह से इसका उपयोग किया जा सके। फिर मैं आपसे कहता हूँ कि यदि ठीक तरह से उपयोग न किया जा सका तो बेटे, निरर्थक भी जा सकता है और हानिकारक भी हो सकता है। तलवार आपके हाथ में है, चाकू आपके हाथ में है यदि ठीक तरह से उसका इस्तेमाल करेंगे तो आप फायदा भी उठा सकते हैं। गलत इस्तेमाल करेंगे तो आप अपना पाँव काट सकते हैं। निरर्थक यों ही डाल दें तो, फिर आपका चाकू भी चला जाएगा, खो भी जाएगा। निरर्थक भी जा सकता। गायत्री मंत्र के बारे में भी यही बात है। सांगोपांग न करने से कोई विशेष लाभ नहीं उठाया जा सकता है।

अभी व्याख्यानों में आपके सामने हम यही पेश करने वाले हैं, आज, कल और परसों गायत्री मंत्र को पढ़ाने वाले हैं। आज तो केवल यही कहना है कि गायत्री मंत्र का स्वरूप समझने और समझाने के लिए अथर्ववेद की साक्षी आपके ध्यान में रहनी चाहिए। इसमें यह बताया गया है कि सात लाभ जो इसके भीतर हैं, इन सात लाभों में से पाँच पंच भौतिक हैं और दो आध्यात्मिक। सात लाभ हैं गायत्री मंत्र के। गायत्री के सात विद्यार्थी हैं। सात विद्यार्थियों को सात ऋषि भी कहा गया है। लाभों में, पाँच सांसारिक हैं और दो आध्यात्मिक हैं। दोनों को मिला देने से सात लाभ मिल जाते हैं और मनुष्य के जीवन की प्रगति की समस्त आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं। कौन- कौन सी हैं? आप में से अधिकांश लोगों को वह मंत्र शायद याद होगा। यदि नहीं याद हो तो आप फिर समझ सकते हैं और इसे याद कर सकते हैं।

 यह मंत्र है-

    ‘‘स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां, पावमानी द्विजानम्। आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यम् दत्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्॥’’

मेरे द्वारा स्तुत (प्रार्थित), द्विजों (संस्कारी जनों) को भी पवित्र करने वाली, हे वरदायिनि वेदमातः (गायत्री)! हमें सन्मार्ग पर प्रेरित करती हुई दीर्घायु, प्राण (साहस), प्रजा (सन्तान-सहयोगी), पशु (अन्यान्य प्राणियों का सहकार), कीर्ति, द्रविण (समृद्धि) ब्रह्मवर्चस् (ब्रह्मज्ञान एवं बल) प्रदान करके, आप (अपने) ब्रह्मलोक को प्रस्थान करें।

ये सात चीजें इसमें बताई गई हैं और ये अथर्ववेद ने कही हैं अर्थात् भगवान ने कही है। अगर बात वेद को मानते हों तो इसे भगवान की वाणी कह सकते हैं और अगर आप पौरुषेय वेद मानते हों तो ऋषि कह सकते हैं। बहरहाल, यह ऋषि हों अथवा भगवान। दोनों में से जो भी हो, आपको सात चीजें मिलने का वायदा करता है, वचन देता है और कसम खाता है कि आप इन चीजों को निश्चित रूप से पा सकते हैं।

गायत्री मंत्र को भी पाँच मुखी बताया गया है। आपने ऐसे फोटो भी देखे होंगे। हमारे यहाँ से ही छपते हैं, जिसमें एक ही मुख होता है गायत्री का। इसे हम बताएँगे पीछे आपको, लेकिन ऐसे भी फोटो आपको बाजार में मिलते हैं, जिसमें गायत्री के पाँच मुख बताए गए हैं। पाँच भौतिक लाभ है? क्या-क्या हैं, भौतिक लाभ?

१-दीर्घ जीवन -  भौतिक लाभों में बताया गया है आयुः आदमी का दीर्घजीवन। आदमी गायत्री उपासना से दीर्घजीवी बन सकते हैं तो क्या साहब यह ठीक है? क्या यह कोई दवा है? क्या ये कोई कायाकल्प है? क्या ये कोई चीज है जैसी कि अमेरिका में मरा हुआ आदमी किसी नीचे तहखाने में रखा हुआ है, ठण्डक में रखा हुआ है और यह उम्मीदें की गई हैं कि इतना समय विश्राम कर लेने के बाद में उसके शरीर को रिलीफ मिल जाएगा, सहायता मिल जाएगी। हम जब उठाएँगे तो मरा हुआ आदमी जिन्दा हो जाएगा तो साहब, क्या यह इसी तरह का प्रयोग है लम्बी जिन्दगी का या कोई और इसमें जादू है या कोई दवा है।

बेटे, कोई जादू नहीं है इसमें, दीर्घजीवन के लिए। दीर्घजीवन के लिए और बीमारी से बचाव करने के लिए किसी जादू की जरूरत नहीं है। केवल एक ही जादू की जरूरत है और जिसके शिक्षण का नाम है संयम। अगर आपके जीवन में संयम आ जाए तब, निश्चित रूप से आप नीरोग भी रह सकते हैं और दीर्घजीवी भी हो सकते हैं। दीर्घजीवन तो हमने बिगाड़ा है। अल्प आयु और बीमारियाँ तो हमने खरीदी हैं। ये खरीदी नहीं बुलाई गई हैं। जल्दी मौत हमने बुलाई है और बीमारी को भी हमने बुलाया है। सृष्टि के किसी जानवर के पास बीमारियाँ नहीं आतीं।

सब जानवर पैदा तो होते हैं, जवान भी होते हैं, बुड्ढे भी होते हैं और समय आता है तो मौत के मुँह में भी चले जाते हैं। पर बीमारियों का जैसा हमला मनुष्य पर होता है। वैसा किसी प्राणी के ऊपर नहीं होता। क्या वजह है बता दीजिए। भाईसाहब, कोई वजह नहीं है केवल एक वजह है कि दूसरे प्राणी प्रकृति की प्रेरणा से संयमशील जीवन जीते हैं, मर्यादाओं में रहते हैं, कायदा-कानून मानते हैं, प्रकृति की आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं करते और आदमी पग-पग पर उल्लंघन करता रहता है और असंयम बरतता रहता है। असंयम न बरते तो प्रकृति की प्रेरणाओं के आधार पर चलने के लिए अपने आपको रजामंद कर लें तो आप विश्वास रखिए न आपको बीमार होने की जरूरत पड़ेगी और न आपको जल्दी मरने की उतावली होगी। जल्दी मरने की उतावली करने की जरूरत नहीं है।

हकीम लुकमान ये कहते थे कि आदमी अपने मरने के लिए कब्र खोदता रहता है जबान की नोंक से। जबान की नोंक से हम कब्र खोदते हैं अपने मरने के लिए और अपने को गाड़ने के लिए। लुकमान के मुताबिक हम कैसे रहते हैं? जीभ की ओर इशारा उनका असंमय से था, जो हमारे प्रत्येक हिस्से में समाया रहता है। केवल जीभ से ही इसका ताल्लुक नहीं है, दूसरी इन्द्रियों से भी ताल्लुक है। दूसरी इन्द्रियों से ही ताल्लुक नहीं है, हमारे रहन-सहन से ले करके उठने-बैठने चलने-फिरने, विचार करने तक समस्त जीवन से ताल्लुक है।

गायत्री मंत्र की प्रेरणा, गायत्री मंत्र का लाभ हमको यह बताता है कि हम दीर्घजीवी हो सकते हैं और नीरोग रह सकते हैं। शर्त यही है कि गायत्री मंत्र किसी तरीके से हमारे शरीर में ‘एप्लाइड’ होना चाहिए। किस तरह से प्रयुक्त होना चाहिए, यह भी जानना चाहिए। गायत्री मंत्र के साथ-साथ में कुछ सिद्धान्त जुड़े हैं। सिद्धान्तों के कुछ परिणाम जुड़े हुए हैं, पहले पहले आप समझिए उन्हें। प्रत्येक आध्यात्मिकता का वर्ग और पक्ष आदमी को कुछ सिद्धान्त समझाता है। सिद्धान्तों को प्रयोग करने के बाद में लाभ होते हैं। कोई चीज हम खाते हैं, खाने के बाद में खून बनता है, खून बनने के बाद ताकत आती है। नहीं, साहब-खाना खाने के बाद ही ताकत आती है। बेटे, ऐसे नहीं हो सकता। खाने का खून बनता है, खून के बाद में ताकत आती है।

उसी तरह जो हम मंत्र जपते हैं या उपासना करते हैं, उससे हमारे जीवन में कुछ सिद्धान्तों का समावेश होता है, कुछ आदर्श हमारे जीवन में प्रवेश करते हैं और आदर्श-सिद्धान्त जीवन में प्रवेश कर जाते हैं तो उनके फलस्वरूप सुख मिलते हैं, सुविधा मिलती है। मशक्कत करते हैं तो  मशक्कत करने के बदले में पैसा मिलता है। पैसे के बदले में हम सामान खरीद लाते हैं, पैसे के बदले में हम मिठाई खरीद लेते हैं, पैसे के बदले में हम खिलौना खरीद लेते हैं। नहीं साहब, मशक्कत के बिना खिलौना मिलता है, मशक्कत के बिना बेटे, खिलौना मिलना बड़ा मुश्किल है। मशक्कत के बदले में अनाज किसान तो दे भी सकता है, पर जिसके यहाँ कपड़े की दुकान है वह आपको कहाँ से दे देगा?  वह पैसा दे देगा। पैसा देने के बाद में आप चीज खरीद सकते है। आध्यात्मिकता का लाभ आपको सीधे नहीं मिल सकता। गायत्री मंत्र का जप किया और चीजें सीधे आपको मिलीं, ऐसे नहीं हो सकता। विद्या पढ़ी और नौकरी मिल गई। यह बात तो ठीक है। स्कूल जाने के बाद में विद्या पढ़नी पड़ती है। नहीं साहब, स्कूल में घुसते ही नौकरी मिल जाती है। नहीं बेटे, स्कूल में घुसते ही नौकरी नहीं मिल जाती, स्कूल में घुसना पड़ता है, स्कूल में घुसने के बाद में हमको उसका अध्ययन करना पड़ता है। फिर अध्ययन करने के बाद में नौकरी मिलती है। मंत्र जप भी ऐसा ही है। बेटे, मानता क्यों नहीं है? गायत्री मंत्र का जप करने का उद्देश्य है आदमी के विचारों में और आदमी के चिंतन में हेर-फेर होना चाहिए। आदमी का व्यक्तित्व और आदमी का चिंतन परिष्कृत होना चाहिए। अगर ऐसा हो गया है तब आपको लाभ मिल जाएगा। चाहे सांसारिक हो, चाहे आध्यात्मिक हो। अगर आपके जीवन में हेर-फेर नहीं हुआ तो कुछ लाभ नहीं मिलेगा।
अगर आपके जीवन में गायत्री उपासना ने कोई हेर-फेर उत्पन्न नहीं किया है, अगर आपको कोई प्रकाश नहीं दिया है तो आपका जीवन जैसा सामान्य मनुष्यों का घिनौना और पिछड़ा हुआ होता है, उसी स्तर का घिनौना और पिछड़ा जीवन होगा तो मैं आपसे कहता हूँ कोई भी मंत्र जिसमें गायत्री भी शामिल है, जिसमें रामायण भी शामिल है, जिसमें गीता भी शामिल है, आपके लिए कोई खास फायदा नहीं कर सकते। गायत्री मंत्र जब शरीर में प्रवेश करता है तो किस रूप में आता है? वह संयम के रूप में आता है। आदमी संयमी होता है। जब संयमी होता है तो संयमी होने के पश्चात में दीर्घजीवी हो जाता है। बहुत दिन जिन्दा रहता है, नीरोग रहता है। कैसे जिन्दा रहता है?

वैसे बेटे ढेरों आदमी हुए हैं प्राचीनकाल में जिन्होंने लम्बी जिन्दगी पाई और मौत के मुँह में से छुटकारा पाया। प्राचीनकाल में क्या-क्या नाम थे उनके बताइए? चलिए आपको नाम बता देता हूँ। आपने सत्यवान का नाम सुना होगा। मौत उसके नजदीक आ गई थी और कह रही थे कि भाईसाहब एक साल से ज्यादा आप जिन्दा नहीं रह सकते। लेकिन उसने सावित्री का वरण किया। सावित्री का वरण करने के बाद में लम्बी उम्र तक जिए और मौत उनसे भाग गई। क्यों साहब! यह हो सकता है? हाँ, बेटे यह हो सकता है। प्राचीनकाल में होता था और अभी भी हो सकता है।

चंदगीराम पहलवान का नाम आपने सुना होगा। वे अक्सर बीमार बने रहते थे। लोग कहते थे कि आप ज्यादा दिन जिन्दा नहीं रह सकते। लेकिन उन्होंने किसी के कहने के मुताबिक संयमशील जिन्दगी जीना शुरू की, आहार-विहार पर नियंत्रण करना शुरू कर दिया और आजकल आप देखते हैं कि वे हिन्द केसरी के नाम से विख्यात हैं और फिल्मों में काम करते हैं। क्यों, साहब ये क्या पुराने जमाने की बात है। अरे बेटा, पुराने जमाने में भी वही बात थी और आज के जमाने में भी वही बात है। सूरज पुराने जमाने में भी वही था और आज के जमाने में भी वही सूरज है। पहले सूरज पूरब से निकलता था अब भी वहीं से निकलता है। रात में अंधेरा पहले भी होता था, रात में अंधेरा अभी भी होता है। प्राचीनकाल से क्या मतलब और नए जमाने से क्या मतलब? जमाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रकृति के सिद्धान्तों में, भगवान के सिद्धान्तों में समय बदल जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। प्राचीनकाल की जो बात है सो अभी की बात है। सत्यवान भी सावित्री की वजह से मौत के मुँह से निकल आया था, तो वह भी ठीक है। इस जमाने में भी निकल सकते हैं।
हम एक कहानी और बता रहे हैं आपको। सैण्डो के बारे में ऐसी बात कही जा रही है। सैण्डो भी ऐसे ही मरीज थे। जिनके बारे में कहा जाता था कि जुकाम की वजह से वे ज्यादा दिन जिन्दा रहने वाले नहीं थे, पर सैण्डो संसार के प्रख्यात वीर हुए। नहीं साहब, लम्बी जिन्दगी तो नहीं मिली? हाँ लम्बी जिन्दगी भी मिलती है। गुरु वशिष्ठ के बारे में आपने सुना है। उनकी लम्बी जिन्दगी थी। कितनी लम्बी जिन्दगी थी? आप पुराणों को पढ़कर देख लीजिए। सारे के सारे रघुवंशियों के गुरु वशिष्ठ थे। कौन-कौन के गुरु थे? रामचन्द्र जी के थे और उनके बाप के गुरु थे-दशरश के और उनके बाप के गुरु थे-रघु के। उसके बाद उसके भी बाप के गुरु थे-राजा दिलीप के।

दिलीप के कोई संतान नहीं  थी। वे अपने गुरु के पास गये तो उन्होंने कहा-नन्दिनी गौ चराइए। नन्दनी किसे कहते हैं? नन्दिनी बेटे गायत्री मंत्र को कहते हैं। हमारी नन्दिनी गौ को चराइए। रानी ने और उन्होंने दोनों ने तप किया था और उनके संतान हो गई थी। किनके हो गई थी? दिलीप के और फिर? फिर पाँच-सात पीढ़ी के बाद वही झगड़ा खड़ा हो गया था। फिर क्या हो गया? फिर राजा दशरथ ने कहा-महाराज जी हमारे भी संतान नहीं होती। धत् तेरी की! तेरे परबाबा के सड़बाबा के भी नहीं हुई थी और तेरे भी नहीं होती। हमारे भी नहीं होती महाराज, हमारे भी बच्चा पैदा करिए। उनको भी उपाय बता दिया और उनके भी बच्चे हो गए, तो गुरु वशिष्ठ कितनी उम्र के थे? बेटे हम क्या बता सकते हैं, आप खुद अंदाज लगा लीजिए। दिलीप से ले करके और दशरथ तक के बीच में कितनी पीढ़ियाँ चली गईं। कई पीढ़ियाँ चली गईं। सात-आठ पीढ़ियाँ चली गईं मेरे ख्याल से। ठीक से मुझे याद नहीं है, पर कई पीढ़ियाँ चली गईं। उन सबके गुरु वशिष्ठ जी थे। तो कितनी उम्र थी उनकी? बहुत लम्बी उम्र थी।

क्यों साहब, लम्बी उम्र हो सकती है? हाँ लम्बी उम्र हो सकती है। कौन-कौन की हो सकती है? बहुतों की हो सकती है। क्यों साहब आपने भी देखी है। बेटे हमने भी देखी है। किसकी देखी है आपने? लम्बी उम्र का एक आदमी हमने देखा है। रशिया के उजबेकिस्तान के बारे में छपता रहता है। वहाँ सौ से ज्यादा उम्र के आदमी होते हैं। लेकिन मैंने एक आदमी हिन्दुस्तान में देखा है जिसकी उम्र दो सौ वर्ष के लगभग थी, जिसे सबने देखा था। उन लोगों की बात आप जाने दीजिए। हमारे गुरु हैं, वे आपने भी देखे नहीं हैं, उनके बारे में हम सबूत भी नहीं पेश कर सकते। लेकिन जो सबूत पेश कर सकते हैं, वे एक ऐसे आदमी थे जिन्हें हिन्दुस्तान का बच्चा-बच्चा जानता है कि वे दौ सौ वर्ष तक जिए थे। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के समय पर मालवीय जी जिन महात्मा को ले करके गए थे उनका नाम स्वामी कृष्णानंद था।
स्वामी कृष्णानंद के बारे में यह अफवाह थी कि वह जब बरफ पिघलती है तो वे उठ खड़े हो जाते हैं और जब बरफ जमने लगती है तो उसी में जम जाते हैं। ये किवदन्ती है उनके बारे में। जब मालवीय जी उनको ले गये थे तो रातोंरात अँधेरे में ले गए थे, क्योंकि वह नंगे रहते थे और मौन भी रहते थे। वे बरफ में रहते थे। उनसे उन्होंने हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना कराई थी। इसका वर्णन उसकी तारीख भी है कि उन्होंने उसकी स्थापना की थी। मालवीय जी ने रात को उनकी अगवानी की थी फिर रात को ही उनको विदा कर दिया था। ये स्वामी कृष्णानंद जी गंगोत्री के पास रहते थे, जब मैं गया था। कितने वर्ष हो गए जब मैं वहाँ गया था।

हिन्दू विश्वविद्यालय को बने हुए लगभग अस्सी वर्ष हो जाते हैं। उस समय भी कितनी उम्र थी उनकी मेरी समझ से अस्सी से भी ज्यादा उम्र थी। जिन लोगों ने पहाड़ी लोगों ने उनको देखा था, मालवीय जी ने जिनसे पता लगाया था, उनसे मालूम पड़ा था कि उन्होंने भी बाप-दादाओं से ये सुना था कि ये और भी ज्यादा उम्र के हैं। अभी जब उनकी मृत्यु हई थी तब उनके बाल सारे के सारे सफेद नहीं हो पाए थे। दाँत, जब मैं वहाँ था, आश्रम में रहता था तो उनके दाँत बत्तीसों के बत्तीसों थे। एक भी दाँत कमजोर नहीं हुआ था। अस्सी वर्ष के तो आप मानेंगे ही। अस्सी वर्ष तो हिन्दू विश्वविद्यालय को बने हो गए थे। तो वे बच्चे थे क्या तब छह महीने के? नहीं बेटे, तब भी बूढ़े थे। बुड्ढा आदमी तो गुरुजी पचास,  साठ-सत्तर वर्ष का तो होता ही होगा। हाँ बेटे, इससे कम का क्या हो सकता है। हिमालय में वे जहाँ रहते थे और जाड़े के दिनों में जब कड़ाके की ठण्ड पड़ती थी, तब वे बिल्कुल नंगे रहा करते थे। बीमार थे? नहीं, बीमार नहीं थे, बिल्कुल हट्टे-कट्टे थे और ऐसे मजबूत थे कि उनकी कलाइयों और हाथ-पाँव में कोई फर्क नहीं मालूम पड़ता था।

यह कैसे हो सकता है? कैसे हो सकता है? चलिए मैं बताता हूँ। अगर आदमी गायत्री मंत्र के आधार पर वास्तव में ध्यान करे तो क्या-क्या नहीं हो सकता है। गायत्री मंत्र का केवल जप ही नहीं करे, बल्कि जप के साथ-साथ में जो प्रेरणा है, संयम की प्रेरणा उसको भी ग्रहण करे। शरीर के बारे में गायत्री मंत्र की एक ही प्रेरणा है। उसका नाम है संयम। व्यक्ति संयम बर्तता रहेगा, चाहे ‘अ’ हो चाहे ‘ब’ हो, चाहे संत हो, चाहे संत न हो वह लम्बी जिन्दगी पा लेगा। अथर्ववेद की साक्षी या गवाही सौ फीसदी सही है।

२- दिव्य प्राण - गायत्री का दूसरा सबसे बड़ा जो गुण है, जिसके ऊपर गायत्री शब्द ही रखा गया है-‘गय’। गायत्री किसे कहते हैं? ‘गय’ कहते हैं प्राण को-संस्कृत में। प्राण को मजबूत बनाने वाली, प्राण को ताकत देने वाली, प्राण का त्राण करने वाले को गायत्री मंत्र कहते हैं। शब्दार्थ ये होता है गायत्री का। प्राण किसे कहते हैं? प्राण कहते हैं बेटे हिम्मत को, प्राण कहते हैं जीवट को और प्राण कहते हैं साहस को। दुनिया में जितने भी उन्नतिशील लोग हुए हैं, सब आदमियों के पास और कोई गुण रहा हो चाहे नहीं रहा हो, विद्या रही हो चाहे नहीं रही हो, शारीरिक बल रहा हो चाहे नहीं रहा हो, पर एक चीज जरूर रही है अच्छे कामों के लिए साहस। बुरे कामों के लिए नहीं, बुरे कामों के लिए तो डाकुओं के पास भी होता है। चोरों के पास भी होता है। उचक्के और बेईमान और बदमाशों के पास भी होता है। उस साहस का हवाला नहीं दे रहा मैं। प्राण सिर्फ अच्छे कामों के लिए आता है। अच्छे कामों के लिए हिम्मत की जरूरत होती और आदमी उसी हिम्मत के आधार पर बढ़ते हुए चले जाते हैं। सफलता के द्वार हर एक के लिए खुले हुए हैं। लेकिन उसमें प्रवेश करना केवल उन लोगों का काम है-जो बहादुर हैं, जो हिम्मत वाले हैं, लड़ाकू हैं, जिनके अंदर जीवट है, जिनके अंदर साहस है।
जीवट, साहस, हिम्मत ये सब हमारे मनःक्षेत्र की क्षमताएँ हैं। गायत्री मंत्र का प्रवेश जब भी हमारे भीतर होगा तो ये परिणाम सामने आयेंगे ही तो, हम कैसे जाने गायत्री मंत्र आपके पास आया कि नहीं? हम कैसे जानें कि गायत्री की फिलॉसफी का आपने अध्ययन किया कि नहीं किया? हम कैसे माने कि आपका अनुष्ठान सही हुआ है कि नहीं हुआ? हमको इन्हीं दो बातों से मानना पड़ेगा। आपको बुखार है कि नहीं हम कैसे जानें? बुखार जानने का एक ही तरीका है कि आपका शरीर गर्म होना चाहिए, तो हम मान लेंगे कि आपको बुखार है और आपके भीतर वाले हिस्से में जलन होनी चाहिए। बार-बार प्यास लगनी चाहिए। भीतर भड़कन होनी चाहिए। भीतर की जलन और बाहर की गर्मी, इन दोनों चीजों को देखकर हम बता सकते हैं कि आपको बुखार है। अगर ये न हो तो आपको बुखार नहीं है।

गायत्री उपासना वास्तव में आपने की है कि नहीं, इसकी परख करनी हो तो आपके मनःक्षेत्र में हमको एक ही जानकारी प्राप्त करनी पड़ेगी कि आपके भीतर जीवट और हिम्मत है कि नहीं। हिम्मत के अभाव में, शरीर की ताकत के अभाव में आदमी को चलना-फिरना तक मुश्किल पड़ जाता है, खड़ा होना मुश्किल पड़ जाता है और भीतर वाले हिस्से को-हिम्मत को जिसको हम प्राण कहते हैं, उस प्राण के अभाव में आदमी छोटे-छोटे संकल्पों तक को पूरा नहीं कर पाता है। गायत्री मंत्र का जप करेंगे, अमुक काम करेंगे, बीड़ी पीना बंद करेंगे, जल्दी उठा करेंगे, अरे साहब दो चार दिन तो हुआ फिर न हो सका। क्यों साहब, क्यों नहीं हो सका? अरे साहब ताकत नहीं है? उठे तो सही, पर ताकत नहीं है, गिर पड़े भट से जमीन पर। बच्चा उठता है फिर गिर पड़ता है, ताकत नहीं है। इसको अंदर की जीवट कहते हैं, इसको संकल्प-शक्ति कहते हैं, इसको इच्छाशक्ति कहते हैं, ‘विल पावर’ कहते हैं और बहुत से नाम हो सकते हैं, जिसे हम जीवट कहते हैं, वह हमारे मनःक्षेत्र में प्रवेश करती है। गायत्री जीवट के रूप में आती है और जीवट के रूप में आ जाए तो छोटे-छोटे बिना ताकत के आदमी न जाने दुनिया में क्या से क्या कर सकते हैं?

जीवट आदमी के पास हो तो वह क्या नहीं कर सकता? पुराना इतिहास पढ़ लीजिए, चाहे नया इतिहास पढ़ लीजिए, जीवट वाले आदमियों ने ही संसार में कुछ करके दिखाया है। कोलम्बस को लीजिए। कोलम्बस एक मामूली नाविक था। चलते-चलते इतने लम्बे सफर को पार करता हुआ आगे निकल गया। मल्लाओं ने धमकी दी थी कि हम तुम्हें मार डालेंगे, नहीं तो वापस लौट चलो। उसने कहा-नहीं, हमको जाना ही है और इण्डिया का पता लगाना ही है और वह अमरीका जा पहुँचा। आप इतिहास के पन्ने पलट डालिए सारे के सारे हिम्मत वाले आदमी ही सफल होते हैं। भौतिक जीवन में हिम्मत वाले आदमी ही सफल होते हैं।

अब्राहम लिंकन ने चुनाव लड़े और तेरह बार चुनावों में हारते चले गए, लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं सोचा कि हमारे तो भाग्य ही फूट गए, हमारे कर्म में ही नहीं लिखा है। हाथ में हमारे लकीरें होतीं चुनाव में जीतने की तो हम जीत जाते। उन्होंने कहा-नहीं, इसका कोई मतलब नहीं है। जब तक हम जिएँगे हम प्रयत्न करते चले जाएँगे और तेरहवीं बार अब्राहम लिंकन को सफलता मिली चुनाव में और वे बढ़ते चले गए। और बढ़ता चला गया? उनका चरित्र-बेशक, उनका ज्ञान-बेशक, उनकी विशेषताएँ-बेशक। लेकिन इन सारी की सारी विशेषताओं में एक चीज आपको याद रखनी चाहिए और उसका नाम है-हिम्मत। हिम्मत के बिना बाकी चीजें काम की नहीं हो सकतीं।
राकेटों पर रख करके, मिसाइलों पर रख करके एटम बम दूर-दूर तक फेंके जा सकते हैं। मिसाइल न हो तब? तब एटम बम रख दीजिए और फेंक दीजिए ऐसे ही। बंदूक की नली में रख करके गोली दूर तक फेंकी जा सकती है। जिस आदमी के उत्थान की बातें की जा सकती हैं। इसी तरह हिम्मत के सहारे, सिद्धान्त और आदर्शों की, आदमी में हिम्मत नहीं है तो वह मरेगा। सिद्धान्तवादी तो है पर हिम्मत इसमें है कि नहीं? हिम्मत तो नहीं है। हिम्मत नहीं है तो बेकार है इसका सिद्धान्तवाद और बेकार है मतवाद। ये तो मरा हुआ आदमी है, ये मुर्दा आदमी है। हिम्मत के बिना भी कोई आदमी होते हैं। रीढ़ की हड्डी जिस आदमी के न हो तो वह आदमी क्या? इसी तरह से हिम्मत जिस आदमी के भीतर न हो वह भी क्या आदमी?

गायत्री मंत्र आदमी को हिम्मत देता है। हिम्मत देने से छोटे-छोटे आदमी भी, साधनविहीन आदमी भी क्या से क्या कर गये हैं? आप चाहे पुराणों को पढ़ लीजिए, इतिहास को पढ़ लीजिए अखबारों को पढ़ लीजिए, इन तीनों में जो भी आपकी मर्जी हो पढ़ सकते हैं। हिम्मत वाले आदमी दुनियाँ में क्या कर सकते हैं? दुनिया में हिम्मत वाले के नाम बताइए? बेटा एक का नाम था नल और एक का नाम था नील। नल-नील क्या होते हैं? नल-नील रीछ थे। रीछ क्या कर सकते थे? नल-नील ने समुद्र पर पुल बना दिया था। इन्होंने ये पढ़ा कहाँ से? इंजीनियरिंग कैसे सीख ली? भीतर की कोशिश और भीतर की लगन, आदमी की योग्यता बढ़ाने में इतने ज्यादा सहायक होते हैं, जितने हजार अध्यापक और हजार वर्षों तक साहित्य नहीं हो सकता। नल-नील इंजीनियर थे। पर साहब वे तो रीछ थे, इंजीनियर कैसे हो गए होंगे? बेटे, मैं ज्यादा बहस तो करना नहीं चाहता, पर पुराने जमाने पर शक हो तो मैं अभी भी सैकड़ों के नाम बता सकता हूँ। मि.विश्वेसरैया से लेकर के ढेरों नाम पेश कर सकता हूँ जो बड़े मुसीबत में, गरीबी  में और बड़ी कंगाली की हैसियत में और बड़े-छोटे घरों में पैदा हुए थे और अपनी कोशिशों की वजह से कहाँ से कहाँ बढ़ते चले गए? नल-नील के अतिरिक्त अच्छा और बताइए?  और बेटे हिम्मत के आधार पर हनुमान को ले लीजिए। हनुमान कौन थे-बंदर। अरे तो आप बंदरों की बात कहते हैं, मनुष्यों की बात कहिए। पहले आप बंदरों की बात सुन लीजिए। मनुष्यों की पीछे कहूँगा। रीछ और बंदर। बंदर क्या कर सकते हैं? बंदर बेटे समुद्र लाँघ सकते हैं, पहाड़ को उखाड़ सकते हैं। अच्छा इतना बड़ा काम कर सकते हैं? हाँ, ऐसे ढेरों आदमी हैं। आपने शीरी-फरहाद का नाम सुना है। फरहाद ने कितने लम्बे पहाड़ को काटकर कितनी लम्बी नहर ला दी थी? फरहाद का नाम इतिहास का उदाहरण हुआ और हनुमान पुराणों के हुए। आल्पस पहाड़ को किसने उठा लिया था? नेपोलियन ने। उसने कहा था-भाईसाहब, रास्ता दीजिए हमको निकलने के लिए। अगर आप रास्ता नहीं देंगे तो हम पैरों के तले से कूट डालेंगे। किसने कहा था-आल्पस पहाड़ से और आल्पस पहाड़ ने क्या जवाब दिया था? आल्पस पहाड़ ने जो दुनिया के लिए चुनौती माना जाता था, सबसे ऊँचा पहाड़ था, जिसके बारे में कहा जाता था कि दुनिया के इतिहास में कोई भी आदमी इसे पार न कर सका। इतने शानदार पहाड़ ने सिर झुका दिया और कहा-अगर आपकी यही हिम्मत, यही जुर्रत है तो हम आपको रास्ता देंगे और आप खुशी से चले जाइए। नेपोलियन चला गया था।

बेटे, रास्ते कितने लोगों ने दिए हैं। समुद्र की बात कह रहा था। समुद्र को चैलेंंज करने वाले और भी होते रहे हैं। अगस्त्य ऋषि ने सारे समुद्र का पानी चुल्लू भर में पी लिया था और रामचन्द्र जी ने तीर लेकर समुद्र से कहा था कि हम तुम्हें सुखा देंगे। अरे साहब, ये तो गप है, पुराणों की कहानी है। अरे बाबा गप है तो इतिहास सुन ले। इतिहास नहीं सुनता है तो अखबार अभी भी पढ़ ले। आप घटना की साक्षी लीजिए। हिम्मत वाले आदमी, जुर्रत वाले आदमी जमाने को बदल देते हैं, समय को बदल देते है, अपने आपको बदल देते है, वातावरण को बदल देते हैं। शर्त ये है कि आदमी में हिम्मत और जुर्रत होनी चाहिए, जीवट होनी चाहिए। गायत्री मंत्र यदि हमारे प्राण क्षेत्र में, प्राणमय कोष में अर्थात्् मानसिक क्षेत्र में प्रवेश करेगा तो क्या चीज देगा, आप ये अंदाज लगाते रहिए।

गायत्री की कृपा हुई कि नहीं हुई, इसकी पहचान यह नहीं है कि गायत्री किसी को बेटा-बेटी देती है। गायत्री माता किसी को बेटा-बेटी नहीं देती है। क्या देती है? आदमी को संयम देती है, एक। संयम से क्या फायदा होता है? संयम से आदमी का भौतिक जीवन और शारीरिक जीवन बलवान हो जाता है और मानसिक क्षेत्रों में गायत्री क्या देती है? गायत्री देती है-जीवट,हिम्मत अच्छे कामों के लिए, श्रेष्ठ कामों के लिए जो हमारे आपके भीतर खत्म हो गई है।
हिम्मत है तो सही आपके अंदर भी है और हमारे अंदर भी है। पर वह हिम्मत काम आती है तो सिर्फ चालाकी के काम आती है, बदमाशी के काम आती है, संग्रह के काम आती है, लोभ के  काम आती है, लालच के काम आती है। जो हिम्मत श्रेष्ठ कामों के काम आती है, ऐसी हिम्मत तो न किसी ने सीखी, न किसी ने सिखाई। जो श्रेष्ठ सिद्धान्तों और आदर्शों पर चलने के लिए और कहने लायक कुछ करने के लिए समर्थ हो सके। ये प्राण और जीवट अगर आदमी के भीतर आ जाए तो क्या हो सकता है? बेटे मैं नाम गिनाता हुआ चला जा रहा हूँ आपको कि हिम्मत वाला आदमी कितना जबरदस्त हो सकता है। साधनहीन आदमी हो करके भी कैसे बड़े से बड़े आदमी के साथ में लोहा ले सकता है। गिद्ध और गिलहरी  के वैसे किस्से आते हैं। जटायु ने रावण को चैलेंज किया था। आप ऐसे नहीं कर सकते, आप दूसरे की स्त्री को नही भगा सकते। अगर ऐसा करेंगे तो हम आपका मुुकाबला करेंगे। तो क्या साहब गिद्ध में इतनी ताकत थी। गिद्ध के बेटे शरीर में नहीं थी, उसके भीतर में थी। जिसको जीवट कहते हैं। हमको नहीं मालूम है कि बूढ़े शरीर में ताकत थी कि नहीं, लेकिन उसके भीतर वह जीवट था, जिससे वह काल से लड़ने के लिए, मौत से लड़ने के लिए भी आमादा हो गया।

बेटा, ये गायत्री मंत्र का वह असली स्वरूप है जिसको कि हम फैलाना चाहते हैं। नकली गायत्री को नहीं। नकली गायत्री वह होती है जो बाजीगरों के काम आती है। बाजीगरों के काम वाली नकली गायत्री है। बाजीगरों के काम क्या आती हैं? देखिए साहब, हम मंत्र बुदबुदाते हैं और मिट्टी ले लेते हैं और फूँक मार देते हैं। तो क्या बन गया? ये बन गया गोल। अच्छा और निकालिए। देखिए अभी और निकालते है-फॅू-ये बन गया रुपया। फॅू-ये बन गया कबूतर। ये क्या चीज है? ये है-बाजीगरी। अध्यात्म बाजीगरी नहीं है। ग्यारह माला जप कीजिए और ये सिद्ध हो गया। बेटा, गायत्री बाजीगरी नहीं है, जो क्रिया करते ही परिणाम दे देती है। इसे तो हथेली पर सरसों जमाना कहते हैं। ये बाजीगरों का धन्धा है, ये पेशा बाजीगरों का है। ये साइंटिस्टों का धन्धा नहीं है।

जमीन में से, मिट्टी में से पैसा कमाया तो जा सकता है, लेकिन कमाने का दूसरा तरीका है। जमीन के साथ में मशक्कत की जाती है, जमीन में बोया जाता है, जमीन को गोड़ा जाता है, जमीन में से फसल पैदा होती है और तब जमीन में से रुपया कमाया जाता है। नहीं, साहब ये तो बड़ा झगड़ा है। तो क्या चाहते हैं आप? बिना झगड़े के काम बताइए। बिना झगड़े के काम वही है, जो मैं बता रहा था। बाजीगर का धन्धा कीजिए-मुठ्ठी में बालू रखिए, तीन बार डण्डी फिराइए और फूँक दीजिए, रुपया आ जाएगा। मैं क्या कहा रहा हूँ? मैं तो वही बात कह रहा हूँ जो आपने समझ रखी है। आपने गायत्री मंत्र को बाजीगरी समझ रखा  है, आपके गायत्री मंत्र को जादूगरी समझ रखा है। ग्यारह माल जप दीं और ये मिल गया और वो मिल गया। ग्यारह माला जपने से नहीं मिलता। किससे मिलता है? बेटे, इससे मिलता है जीवट और साहस। गायत्री मंत्र की उपासना को, गायत्री मंत्र के तत्त्वज्ञान और फिलॉसफी को जीवन में हृदयंगम करने के पश्चात् यह हमारे भीतर जीवट और साहस उत्पन्न करती है, यह उसका परिणाम है। तब हम छोटे व्यक्ति होते हुए भी बड़ी सफलताएँ प्राप्त करने में समर्थ हो सकते हैं, हम प्राणवान बन सकते हैं।३- श्रेष्ठ प्रजा - ‘‘आयुः, प्राणं, प्रजाम् ’’ गायत्री उपासना के प्रतिफल हैं, प्रजाम्-संतान हैं। बेटा इस जमाने में जहाँ कहीं भी संतान की बात सुनते हैं, तो हर आदमी हमको मायूसी देता है। लोग मानते ही नहीं। किसी और का कहना न मानें तो डॉक्टर का तो कहना मानें। क्या मानें? पहला बच्चा अभी नहीं, दो के बाद कभी नहीं। पहला बच्चा अभी नहीं तो कब? आज नगद कल उधार। अभी नहीं फिर कब? अब? नहीं अभी नहीं। अब दो वर्ष बाद, नहीं साहब अभी नहीं। ये सब दीवारें चिल्लाती रहती हैं। सब फैमली प्लानिंग के नारे लगाते रहते  हैं। आप क्या कहते हैं कि हमारे बच्चे हो जाएँ ये तो महाराज जी आप देशद्रोह की बात कहते हैं, समाजद्रोह की बात कहते हैं। बाप के ऊपर मुसीबत ढाने की बात कहते हैं। माँ की तंदुरुस्ती खराब करने की बात कहते हैं। ये तो बच्चों का भविष्य खराब करने की बात कहते हैं और समाज में परेशानी बढ़ाने की बात कहते हैं।

तो क्या आप संतान नहीं पैदा करने की बात कहते हैं? हाँ बेटे, अगर मैं इसी रूप से कहूँगा तो आपको यही समझना चाहिए कि आपसे भगवान जब प्रसन्न होते हैं तो बच्चे नहीं देते। दूसरे शब्दों में ये कहता हूँ  कि भगवान बहुत नाराज होते हैं, उसे बच्चे देते हैं। जिससे भगवान जिस
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