सद्विचारों की सृजनात्मक शक्ति

मानव जीवन विचारों का प्रतिबिम्ब

<<   |   <  | |   >   |   >>
मनुष्य का जीवन उसके विचारों का प्रतिबिम्ब है। सफलता- असफलता, उन्नति- अवनति, तुच्छता- महानता, सुख- दुःख, शांति- अशांति आदि सभी पहलू मनुष्य के विचारों पर निर्भर करते हैं। किसी भी व्यक्ति के विचार जानकर उसके जीवन का नक्शा सहज ही मालूम किया जा सकता है। मनुष्य को कायर- वीर, स्वस्थ- अस्वस्थ, प्रसन्न- अप्रसन्न कुछ भी बनाने में उसके विचारों का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। तात्पर्य यह है कि अपने विचारों के अनुरूप ही मनुष्य का जीवन बनता- बिगड़ता है। अच्छे विचार उसे उन्नत बनायेंगे तो हीन विचार मनुष्य को गिराएँगे।

स्वामी रामतीर्थ ने कहा है- ‘‘मनुष्य के जैसे विचार होते हैं वैसा ही उसका जीवन बनता है।’’ स्वामी विवेकानन्द ने कहा था- ‘‘स्वर्ग और नरक कहीं अन्यत्र नहीं, इनका निवास हमारे विचारों में ही है।’’ भगवान् बुद्ध ने अपने शिष्यों को उपदेश देते हुए कहा था- ‘‘भिक्षुओ! वर्तमान में हम जो कुछ हैं अपने विचारों के ही कारण और भविष्य में जो कुछ भी बनेंगे वह भी अपने विचारों के कारण।’’ शेक्सपीयर ने लिखा है- ‘‘कोई वस्तु अच्छी या बुरी नहीं है। अच्छाई- बुराई का आधार हमारे विचार ही हैं।’’ ईसामसीह ने कहा था- ‘‘मनुष्य के जैसे विचार होते हैं वैसा ही वह बन जाता है।’’ प्रसिद्ध रोमन दार्शनिक मार्क्स आरीलियस ने कहा है- ‘‘हमारा जीवन जो कुछ भी है, हमारे अपने ही विचारों के फलस्वरूप है।’’ प्रसिद्ध अमरीकी लेखक डेल कार्नेगी ने अपने अनुभवों पर आधारित तथ्य प्रकट करते हुए लिखा है- ‘‘जीवन में मैंने सबसे महत्त्वपूर्ण कोई बात सीखी है तो वह है विचारों की अपूर्व शक्ति और महत्ता, विचारों की शक्ति सर्वोच्च तथा अपार है।’’

संसार के समस्त विचारकों ने एक स्वर से विचारों की शक्ति और उसके असाधारण महत्त्व को स्वीकार किया है। संक्षेप में जीवन की विभिन्न गतिविधियों का संचालन करने में हमारे विचारों का ही प्रमुख हाथ रहता है। हम जो कुछ भी करते हैं विचारों की प्रेरणा से ही करते हैं।

संसार में दिखाई देने वाली विभिन्नताएँ, विचित्रताएँ भी हमारे विचारों का प्रतिबिम्ब ही है। संसार मनुष्य के विचारों की ही छाया है। किसी के लिए संसार स्वर्ग है तो किसी के लिए नरक। किसी के लिए संसार अशान्ति, क्लेश, पीड़ा आदि का आगार है तो किसी के लिए सुख- सुविधा सम्पन्न उपवन। एक- सी परिस्थितियों में, एक- सी सुख- सुविधा समृद्धि से युक्त दो व्यक्तियों में भी अपने विचारों की भिन्नता के कारण असाधारण अन्तर पड़ जाता है। एक जीवन में प्रतिक्षण सुख- सुविधा, प्रसन्नता, खुशी, शान्ति, सन्तोष का अनुभव करता है तो दूसरा पीड़ा, क्रोध, क्लेशमय जीवन बिताता है। इतना ही नहीं कई व्यक्ति कठिनाई का अभावग्रस्त जीवन बिताते हुए भी प्रसन्न रहते हैं तो कई समृद्ध होकर भी जीवन को नारकीय यंत्रणा समझते हैं। एक व्यक्ति अपनी परिस्थितियों में सन्तुष्ट रहकर जीवन के लिए भगवान् को धन्यवाद देता है तो दूसरा अनेक सुख- सुविधाएँ पाकर भी असन्तुष्ट रहता है। दूसरों को कोसता है, महज अपने विचारों के ही कारण।

प्राचीन ऋषि- मुनि आरण्यक जीवन बिताकर, कन्द- मूल खाकर भी सन्तुष्ट और सुखी जीवन बिताते थे और धरती पर स्वर्गीय अनुभूति में मग्न रहते थे। एक ओर आज का मानव है जो पर्याप्त सुख- सुविधा, समृद्धि, ऐश्वर्य, वैज्ञानिक साधनों से युक्त जीवन बिताकर भी अधिक क्लेश, अशान्ति, दुःख, उद्विग्नता से परेशान है। यह मनुष्य के विचार चिन्तन का ही परिणाम है। अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक स्वर्ट अपने प्रत्येक जन्मदिन में काले और भद्दे कपड़े पहनकर शोक मनाया करते थे। वह कहते थे- ‘‘अच्छा होता यह जीवन मुझे न मिलता, मैं दुनियाँ में न आता।’’ इसके ठीक विपरीत अन्धे कवि मिल्टन कहा करते थे- ‘‘भगवान् का शुक्रिया है जिसने मुझे जीने का अमूल्य वरदान दिया।’’ नेपोलियन बोनापार्ट ने अपने अन्तिम दिनों में कहा था- ‘‘अफसोस है कि मैंने जीवन का एक सप्ताह भी सुख- शान्तिपूर्वक नहीं बिताया।’’ जबकि उसे समृद्धि, ऐश्वर्य, सम्पत्ति, यश आदि की कोई कमी नहीं रही। सिकन्दर महान् भी अपने अन्तिम जीवन में पश्चाताप करता हुआ ही मरा। जीवन में सुख- शान्ति, प्रसन्नता अथवा दुःख, क्लेश, अशांति, पश्चाताप आदि का आधार मनुष्य के अपने विचार हैं, अन्य कोई नहीं। समृद्ध, ऐश्वर्य सम्पन्न जीवन में भी व्यक्ति गलत विचारों के कारण दुखी रहेगा और उत्कृष्ट विचारों से अभावग्रस्त जीवन में भी सुख- शान्ति, प्रसन्नता का अनुभव करेगा, यह एक सुनिश्चित तथ्य है।

संसार एक शीशा है। इस पर हमारे विचारों की जैसी छाया पड़ेगी वैसा ही प्रतिबिम्ब दिखाई देगा। विचारों के आधार पर ही संसार सुखमय अनुभव होता है। पुरोगामी उत्कृष्ट उत्तम विचार जीवन को ऊपर उठाते हैं, उन्नति, सफलता, महानता का पथ प्रशस्त करते हैं तो हीन, निम्नगामी, कुत्सित विचार जीवन को गिराते हैं।

विचारों में अपार शक्ति है। जो सदैव कर्म की प्रेरणा देती है। वह अच्छे कार्यों में लग जाय तो अच्छे और बुरे मार्ग की ओर प्रवृत्त हो जाय तो बुरे परिणाम प्राप्त होते हैं। विचारों में एक प्रकार की चेतना शक्ति होती है। किसी भी प्रकार के विचारों में एक स्थान पर केन्द्रित होते रहने पर उनकी सूक्ष्म चेतन शक्ति घनीभूत होती जाती है। प्रत्येक विचार आत्मा और बुद्धि के संसर्ग से पैदा होता है। बुद्धि उसका आकार- प्रकार निर्धारित करती है तो आत्मा उसमें चेतना फूँकती है।। इस तरह विचार अपने आप में एक सजीव किन्तु सूक्ष्म तत्त्व है। मनुष्य के विचार एक तरह की सजीव तरंगें हैं जो जीवन संसार और यहाँ के पदार्थों को प्रेरणा देती रहती है। इन सजीव विचारों का जब केन्द्रीयकरण हो जाता है तो एक प्रचण्ड शक्ति का उद्भव होता है। स्वामी विवेकानन्द ने विचारों की इस शक्ति का उल्लेख करते हुए बताया है- ‘‘कोई व्यक्ति भले ही किसी गुफा में जाकर विचार करे और विचार करते- करते ही वह मर भी जाय तो वे विचार कुछ समय उपरान्त गुफा की दीवारों का विच्छेद कर बाहर निकल पड़ेंगे और सर्वत्र फैल जायेंगे। वे विचार तब सबको प्रभावित करेंगे।’’ मनुष्य जैसे विचार करता है, उनकी सूक्ष्म तरंगें विश्वाकाश में फैल जाती हैं। सम स्वभाव के पदार्थ एक- दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं, इस नियम के अनुसार उन विचारों के अनुकूल दूसरे विचार आकर्षित होते हैं और व्यक्ति को वैसे ही प्रेरणा देते हैं। एक ही तरह के विचार घनीभूत होते रहने पर प्रचण्ड शक्ति धारण कर लेते हैं और मनुष्य के जीवन में जादू की तरह प्रकाश डालते हैं।

<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118