सद्विचारों की सृजनात्मक शक्ति

विचार शक्ति सर्वोपरि है

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यों संसार में शारीरिक, सामाजिक, राजनीतिक और सैनिक- बहुत सी शक्तियाँ विद्यमान हैं। किन्तु इन सब शक्तियों से भी बढ़कर एक शक्ति है, जिसे विचार- शक्ति कहते हैं। वह सर्वोपरि है।

उसका एक मोटा सा कारण तो यह है कि विचार- शक्ति निराकार और सूक्ष्मातिसूक्ष्म होती है और अन्य शक्तियाँ स्थूलतर। स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म में अनेक गुना शक्ति अधिक होती है। पानी की अपेक्षा वाष्प और उससे उत्पन्न होने वाली बिजली बहुत शक्तिशाली होती है। जो वस्तु स्थूल से सूक्ष्म की ओर जितनी बढ़ती जाती है, उसकी शक्ति भी उसी अनुपात से बढ़ती जाती है।

मनुष्य जब स्थूल शरीर से सूक्ष्म, सूक्ष्म से कारण शरीर, कारण- शरीर से आत्मा और आत्मा से परमात्मा की ओर ज्यों ज्यों बढ़ता है, उसकी शक्ति की उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है। यहाँ तक कि अन्तिम कोटि में पहुँच कर वह सर्वशक्तिमान बन जाता है। विचार सूक्ष्म होने के कारण संसार के अन्य किसी भी साधन से अधिक शक्तिशाली होते हैं। उदाहरण के लिए हम विभिन्न धर्मों के पौराणिक आख्यानों की ओर जा सकते हैं।

बहुत बार किसी ऋषि, मुनि और महात्मा ने अपने शाप और वरदान द्वारा अनेक मनुष्यों का जीवन बदल दिया। ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह के विषय में प्रसिद्ध है कि उन्होंने न जाने कितने अपंगों, रोगियों और मरणासन्न व्यक्तियों को पूरी तरह केवल आशीर्वाद देकर ही भला चंगा कर दिया। विश्वामित्र जैसे ऋषियों ने अपनी विचार एव संकल्प शक्ति से दूसरे संसार की रचना ही प्रारम्भ कर दी थी और इस विश्व ब्रह्माण्ड की, जिसमें हम रह रहे हैं, रचना भी ईश्वर के विचार स्फुरण का ही परिणाम है।

ईश्वर के मन में, ‘एकोऽहम् बहुस्यामि’ का विचार आते ही यह सारी जड़ चेतनमय सृष्टि बनकर तैयार हो गई, और आज भी वह उसकी विचार- धारणा के आधार पर ही स्थिति है और प्रलयकाल में विचार निर्धारण के आधार पर ही उसी ईश्वर में लीन हो जायेगी। विचारों में सृजनात्मक और ध्वंसात्मक दोनों प्रकार की अपूर्व, सर्वोपरि और अनन्त शक्ति होती है। जो इस रहस्य को जान जाता है, वह मानों जीवन के एक गहरे रहस्य को प्राप्त कर लेता है। विचारणाओं का चयन करना स्थूल मनुष्य की सबसे बड़ी बुद्धिमानी है। उनकी पहचान के साथ जिसको उसके प्रयोग की विधि विदित हो जाती है, वह संसार का कोई भी अभीष्ट सरलतापूर्वक पा सकता है।

संसार की प्रायः सभी शक्तियाँ जड़ होती हैं। विचार- शक्ति, चेतन- शक्ति है। उदाहरण के लिए धन अथवा जन शक्ति ले लीजिये। अपार धन उपस्थित हो किन्तु समुचित प्रयोग करने वाला कोई विचारवान व्यक्ति न हो तो उस धनराशि से कोई भी काम नहीं किया जा सकता। जन- शक्ति और सैनिक- शक्ति अपने आप में कुछ भी नहीं हैं।। जब कोई विचारवान नेता अथवा नायक उसका ठीक से नियन्त्रण और अनुशासन कर उसे उचित दिशा में लगाता है, तभी वह कुछ उपयोगी हो पाती है अन्यथा वह सारी शक्ति भेड़ों के गले के समान निरर्थक रहती है। शासन, प्रशासन और व्यवसायिक सारे काम एक मात्र विचार द्वारा ही नियन्त्रित और संचालित होते हैं। भौतिक क्षेत्र में ही नहीं उससे आगे बढ़कर आत्मिक क्षेत्र में भी एक विचार- शक्ति ही ऐसी है, जो काम आती है। न शारीरिक और न साम्पत्तिक कोई अन्य शक्ति काम नहीं आती। इस प्रकार जीवन तथा जीवन के हर क्षेत्र में केवल विचार- शक्ति का ही साम्राज्य रहता है।

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