अरविन्द घोष को इससे बड़ी निराशा हुई कि इतना परिश्रम भी किया। इतना पैसा भी खर्च किया। इतनी उम्मीदें भी लगाई और वे किसी काम भी नहीं आये। अन्ततः उन्होंने फिर से क्रान्तिकारी पार्टी बनायी। बम चलाने का सिस्टम बनाया। उनके बड़े भाई को फाँसी हो गयी। उस जमाने के एक बहुत बड़े वकील ने अपनी वकालत के जरिए किसी तरीके से उन्हें फाँसी के तख्ते से बचा लिया था। बचाने के बाद अरविन्द घोष पाण्डिचेरी चले गये। पाण्डिचेरी में क्या करने लगे? वातावरण को अनुकूल बनाने के लिए उन्होंने तप प्रारम्भ कर दिया। तप करने से क्या हुआ? तप करने से बेटे उन्होंने हिन्दुस्तान के सारे वातावरण को इतना गरम कर दिया कि उस गर्मी में से ढेरों के ढेरों साइक्लोन पैदा होने लगे। साइक्लोन किसे कहते हैं? चक्रवात को। चक्रवात किसे कहते हैं।
बेटे! गर्मी के दिनों में गाँवों में धूल का अंधड़ आता है और गोल- गोल घूमता हुआ ऊपर को चला जाता है। अंग्रेजी में इसी को साइक्लोन (बवण्डर) कहते हैं। संस्कृत में चक्रवात कहते हैं। आप लोग क्या कहते हैं, मालूम नहीं है। हमारे यहाँ गाँवों में इसे भूत कहते हैं। इन भूतों में बड़ी ताकत होती है और वे छप्पर उखाड़कर फेंक देते हैं। पेड़ों को उखाड़ देते हैं। ऐसे ही इन्होंने वातावरण को इतना गरम कर दिया और इतने भूत पैदा कर दिये कि उन्होंने छप्पर फाड़ डाले और न जाने क्या से क्या कर दिया? हिन्दुस्तान की तवारीख (इतिहास) है कि जिन दिनों गाँधी जी पैदा हुए थे, उन दिनों इतने महापुरुष इस भारत भूमि में पैदा हुए कि जिसका मुकाबला नहीं हो सकता।
मित्रो! दुनिया में नेता तो बहुत हुए हैं, पर महापुरुष नहीं हुए। उस जमाने में नेता नहीं थे, महापुरुष थे। मालवीय जी राजनैतिक नेता नहीं थे, महापुरुष थे। गाँधी जी नेता नहीं थे, महापुरुष थे। और भी दूसरे बड़े आदमी- जैसे लोकमान्य तिलक नेता नहीं थे, महापुरुष थे। ऐसे- ऐसे कितने ही महापुरुष हुए थे, जिन्होंने हिन्दुस्तान का कायाकल्प कर दिया। भारत- भूमि के जनमानस को ऊँचा उठाने वाले, अंग्रेजों से लड़ने वाले इतने नेता बनकर तैयार हो गये। इसके लिए क्या करना पड़ा? उन्होंने एक काम किया था, तप किया था और तप से वातावरण को गरम किया था। जब तक देश का वातावरण गरम रहा, तब तक महापुरुष पैदा होते रहे और बड़ा काम होता रहा। बेटे, अब तो अच्छी परिस्थितियाँ हैं, उस जमाने में तो कितनी रुकावटें थीं। अब तो कोई रुकावट भी नहीं है, लेकिन अब तप का गरम- सा वातावरण ठण्डा हो गया है। इसकी वजह से वे सब लोग, विशेषकर उस जमाने के लोग जो बढ़- चढ़ कर त्याग बलिदान करते थे। इनमें से कितने ही जिन्दा भी हैं। उनके बारे में आप रोज अखबारों में पढ़ते हैं।
मित्रो! जो हवा थी, वातावरण था, वह ठण्डा हो गया और दूसरी तरह की हवा आ गयी। हम उसी हवा को गरम करने का प्रयत्न कर रहे हैं और आप लोगों को भी उसी काम को करने के लिए लगा रहे हैं। युग निर्माण योजना के बहिरंग कार्यक्रम भी हमारे पास हैं, लेकिन बहिरंग कार्यक्रम का समय अभी नहीं है। अभी वातावरण को गरम करना आवश्यक है। वातावरण को गरम करने के लिए इस वर्ष हम एक महापुरश्चरण आरम्भ कर रहे हैं, जिसे खण्डों में बाँट दिया गया है।
एक पुरश्चरण हमने किया था चौबीस साल का। हमारा वह पुरश्चरण पूरा हो गया, जिसकी पूर्णाहुति के लिए हमने एक हजार कुण्ड का यज्ञ किया था। वह हमारा व्यक्तिगत प्रयत्न था। अब क्या कर रहे हैं? अब सारे के सारे विश्व के वातावरण को गरम करने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं और यह प्रयास कर रहे हैं कि इसमें आपको भी काम करने का मौका मिले। सावधानी यह रखनी है कि आप लोगों की नीयत और ईमान सही हो। आप लोग जिस क्षेत्र में काम करने के लिए जायें, उसमें पीठ पीछे मालूम पड़ना चाहिए कि हवा गरम हो रही है और आपको सहयोग मिलता जा रहा है। ऐसा वातावरण बनाने के लिए, जनमानस को पलटने के लिए हम एक गायत्री महापुरश्चरण आरम्भ कर रहे हैं।
यह महापुरश्चरण कैसा है? आप सबने अखबारों में पढ़ा होगा। तो क्या पच्चीस कुण्डीय यज्ञों के माध्यम से पुरश्चरण होगा? यज्ञ नहीं बेटे, पुरश्चरण। यज्ञ और पुरश्चरण में क्या फर्क पड़ता है? बेटे, अब तक जो हमारे यज्ञ थे, वे प्रशिक्षण और प्रचार- दो उद्देश्यों के लिए होते थे। लोगों को भारतीय संस्कृति के माता- पिता की जानकारी कराने के लिए प्रशिक्षण और प्रचार के अब तक के यज्ञ होते रहे हैं। अब क्या है? अब सामर्थ्य वाले यज्ञ होंगे। अब आगे क्या करेंगे?