संस्कृति की सीता की वापसी

देवत्व आचरण से सिद्ध होता है

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मित्रो ! पाण्डवों का जीवन आरम्भ से लेकर अन्तिम समय तक कठिनाइयों का जीवन है। मुसीबतों का जीवन है। कष्टों का जीवन है। श्रेष्ठ कामों के लिए जो आदमी कष्ट उठा सकते हैं, त्याग कर सकते हैं और मुसीबतें सह सकते हैं, देवता उन्हीं का नाम है। नहीं साहब! देवता जिस पर प्रसन्न होते हैं, उसका घर सोने का बना देते हैं। उसके बेटे को इनकम टैक्स ऑफिसर बना देते हैं। बक मत। देवत्व जिसके भीतर आता है, वह दूसरों का अपने चरित्र के माध्यम से शिक्षण करता है। क्या हम अपने सिद्धान्तों के प्रति पक्के और सच्चे हैं? हम कैसे मानें कि आप सच्चे हैं और पक्के हैं?    

आपकी परीक्षा होनी चाहिए, परीक्षा के बिना हम कैसे जानेंगे कि आप सच्चे हैं कि अच्छे हैं? हर आदमी को अपने सच्चे होने की और अच्छे होने की परीक्षा देनी पड़ती है। यह परीक्षा कैसे हो सकती है? बेटे, कठिनाइयों से होती है और कैसे होती है? नहीं साहब! आप इम्तिहान ले लीजिए। आप सवाल पूछ लीजिए, हम लिखकर दे देंगे। बेटे, इसमें सवाल नहीं पूछा जाता, वरन् चरित्र के माध्यम से पता लगाना पड़ता है कि व्यक्ति जबान से जिन सिद्धान्तों को बक- बक करता है और जब मुसीबत का वक्त आता है, कठिनाई का वक्त आता है, तो उनका पालन कर सकता है कि नहीं कर सकता।    

साथियो ! इसकी एक ही परीक्षा है, दूसरी कोई नहीं है कि आप कठिनाइयों में सही साबित होते हैं कि नहीं, यह बताइये। लोभ का दबाव आने पर आप सही साबित होते हैं कि नहीं। मोह का दबाव आने पर आप सही साबित होते हैं कि नहीं। सिद्धान्तों के प्रति, जिनकी आप हर वक्त दुहाई देते रहते हैं, उनका रक्षण करने के लिए लोभ का दबाव, मोह का दबाव आप मानते हैं कि नहीं? इनसान के बाहर वाले हिस्से पर पड़ने वाले दबाव तो कई हो सकते हैं, लेकिन भीतर वाले हिस्से पर बस दो ही दबाव दुनिया में काम करते हैं। एक लोभ का, जो हमको सिद्धान्तों की तरफ नहीं बढ़ने देता। दूसरा मोह का, जो सिद्धान्तों की ओर हमको बढ़ने नहीं देता। लोभ और मोह से, चैन और आराम से खुशहाली और ऐय्याशी से अपने आपका बचाव करके जो आदमी सिद्धान्तों के लिए अग्रि परीक्षा में चढ़ सकते हैं, वही आदमी देवता कहला सकते हैं। श्रीकृष्ण भगवान् के साथ भी देवता आये थे और कौन- कौन के साथ में आये थे? बेटे, सबके साथ में देवता आये थे। भगवान् के साथ- साथ देवता भी हमेशा आते रहे हैं।    

साथियो ! हमको और आपको जो काम करना है, मैंने आपको उसकी याद दिलायी कि पुराने जमाने के इतिहास से आप संगति मिलाते हुए अपना मुँह शीशे में देख सकते हैं। आपके भीतर भी एक ऐसा ही देवता झाँकता हुआ मिलेगा, जैसा कि मैंने आपसे कहा है। शायद आपके भीतर से कोई हनुमान् झाँकता हुआ दिखाई दे। दुनिया को आप देखते हैं कि नहीं, कभी अपने आप को भी देखना, तब आप अपने भीतर की बुराइयों को भी देखेंगे, पर मैं चाहूँगा कि आप अपने भीतर देवता की झाँकी करें। आप अपने भीतर एक ऐसे व्यक्तित्व की झाँकी करें, जो पाप के पंक में फँसा हुआ- सा नहीं है। यदि उसे मौका मिले, तो वह हनुमान् जैसी भूमिका भी निभा सकता है और नल- नील जैसी भूमिका भी निभा सकता है और इतिहास में बहुत बड़ा काम कर सकता है। आप अपनी भूमिका निभा पाएँ, इसलिए आपको आत्मबोध कराने के लिए, आपकी परिस्थिति से अवगत कराने के लिए, आपके लिए जो उचित काम है, कर्तव्य है, उसका उद्बोधन कराने के लिए आपको प्रेरित किया जा रहा है।
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