संस्कृति की अवज्ञा महँगी पड़ेगी

संस्कृति की अवज्ञा के दुष्परिणाम

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मित्रो! अगले दिनों में क्या होगा? अगले दिनों में बुद्धिवाद आएगा। और क्या आएगा? अर्थशास्त्र आएगा। अर्थशास्त्र क्या कहेगा? अर्थशास्त्र यह कहेगा कि बुड्ढे बाप को कसाईखाने भेजना चाहिए। कसाईखाने? हाँ बेटे! इसके लिए कसाईखाने से अच्छी और कोई जगह नहीं हो सकती। यह जगह घेरता है, रोटी खाता है, घर में खाँसता रहता है, थूकता है, बेकार परेशान करता है। बुड्ढा हो गया है, अक्ल खराब हो गई है। घर वालों की नाक में दम करता है। इसलिए क्या करना चाहिए? इसको सीधे कसाईखाने भेजना चाहिए। चाइना में यह प्रयोग हो रहा है। बुड्ढे आदमियों को ले जाते हैं कि चलिए हम आपको बूढ़ेखाने में रखेंगे। वहाँ बहुत आराम है। आप इस गाड़ी में बैठिए फिर हम आपको ले जाते है। वहाँ ले जाते हैं और कहते हैं कि आप यहाँ भरती हो जाइए। देखिए कैसा अच्छा इंतजाम है। अच्छा, आइए बैठिए। दस-पाँच दिन वहाँ रखा, फिर दूसरी जगह ले गए। एक इंजेक्शन लगा दिया। वह बुड्ढा कहाँ गया? उसका ट्रांसफर कर दिया गया है और अब वह दूसरे कैंप में चला गया। बच्चों ने पूछा—हमारा बुड्ढा कहाँ है? बुड्ढा जहन्नुम में चला गया।


अब क्या होना है? यही होना है। आप में से कोई बुड्ढा तो नहीं है? अच्छा अभी नहीं है तो थोड़े दिनों बाद हो जाएँगे। यह क्या हो गया? जब संस्कृति की सीता चली गई और वापस नहीं आई तो हरेक को इसके लिए तैयार रहना चाहिए। किसके लिए? बेटा नीलाम करेगा कि यह बुड्ढा बिकाऊ है। कोई कसाई हो तो ले जाए। अगर कोई नहीं लेगा तो गवर्नमेंट खरीद लेगी और इसका राष्ट्रीयकरण करेगी। फिर बुड्ढे कहाँ जाएँगे? फाँसीघर में। तैयार हो जाइए भइया आते हैं। अब यही होगा। तो क्या आप संस्कृति को खत्म कर रहे हैं? संस्कृति रावण के मुँह में चली जाएगी, तो क्या होगा? बिलकुल यही होगा, जो अभी बताया है। बेटे! अर्थशास्त्र हमको यही सिखाता है। इकोनामिक्स हमें यही सिखाती है कि जो बेकार चीजें हैं, वाहियात चीजें हैं, उनको नीलाम कर दीजिए, उनको हटा दीजिए या जला दीजिए। बेकार की चीज का हम क्या करेंगे! बुड्ढे आदमी का क्या होगा! उसकी हमें जरूरत नहीं है। माँ का क्या होगा? कसाईखाने जाएगी। बाप भी कसाईखाने जाएगा। बेटे! अगले दिनों यही होगा, अगर हम संस्कृति को खत्म करते हैं, तब।
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