संस्कृति की सीता की वापसी

सामने हैं बड़े लक्ष्य

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मित्रो! यह जो पुरश्चरण हो रहा है, उससे क्या फायदा होगा? पुरश्चरण से कई फायदे होंगे। एक फायदा तो अभी हमने आपको बताया है कि इससे वातावरण का संशोधन होगा। एक फायदा यह होगा कि हमारा गायत्री परिवार जो छोटा- सा था। अब हमारा मन है कि इस वर्ष हम लम्बी छलाँग लगायेंगे। इस वर्ष २४ लाख नये कार्यकर्त्ता बनाने का हमारा प्लान है। एक बार वे पकड़ में आ गये, तो भूत के तरीके से हम उनका पिण्ड छोड़ने वाले नहीं हैं।    

हमारी बड़ी महत्वाकांक्षा है कि अब गायत्री माता को वेदमाता नहीं विश्वमाता होना चाहिए। पहले गायत्री वेदमाता थी, जब चारों वेद बने थे। फिर देवमाता हो गयी। इस भारत भूमि का प्रत्येक नागरिक जनेऊ पहनने के समय पर गायत्री मन्त्र लेता था। उसके बाद उसके चरित्र में ऐसा सुन्दर निखार आता था कि प्रत्येक आदमी देवता कहलाता था। इस भारत के निवासी तैंतीस कोटि देवता कहलाते थे। तब गायत्री देवमाता थी। अब क्या होने जा रहा है? अब बेटे प्रज्ञावतार होने जा रहा है।   

प्रज्ञावतार क्या है? कभी बताऊँगा, पर आज मैं कहता हूँ कि अब गायत्री माता विश्वमाता होने वाली है। भविष्यवाणी तो मैं नहीं करता, परन्तु मेरा अपना विश्वास है कि इसके लिए २२ साल काफी होने चाहिए। यह सन् १९७८ है। २२ वर्ष बाद सन् २००० आने वाला है। सन् २००० तक हम यह छलाँग मारेंगे और इसको विश्वमाता बनाने में सफल होंगे। गायत्री माता विश्वमाता बनेगी। फिर बीस- बाइस वर्ष और लगेंगे स्थूल जगत् में सतयुगी परिवर्तन आने हेतु। अतः अभी इन्तजार तो करना ही होगा। बीज २००० तक पड़ जायेंगे।    

मित्रो! नया युग, जो आने वाला है; नया संसार, जो आने वाला है; नया समाज जो आने वाला है; नया मनुष्य जो, आने वाला है और उसके भीतर जो     देवत्व का उदय होने वाला है और धरती पर स्वर्ग का अवतरण होने वाला है। इसके लिए सारे विश्व में गायत्री का आलोक, सविता का आलोक फैलने वाला है। हिन्दुस्तान में ? केवल हिन्दुस्तान में नहीं, वरन् सारे विश्व में, ब्राह्मण में ही नहीं, वरन् पूरे मानव समाज में, जिसमें मुसलमान भी शामिल हैं, ईसाई भी शामिल हैं, सबमें गायत्री का प्रकाश फैलने वाला है। तो आप सबको गायत्री पढ़ायेंगे? हाँ बेटे, सबको पढ़ायेंगे। सूरज सबका है, चन्द्रमा सबका है। गंगा सबकी है, हवा सबकी है। इसी तरह गायत्री भी सबकी है। गायत्री का जाति- बिरादरी से कोई ताल्लुक नहीं है। वह वेदमाता है, देवमाता है और विश्वमाता है।     

अगले दिनों इसको विश्वमाता तक पहुँचाने में हमारे जो पुरश्चरण हैं और इनमें जो सामर्थ्य है, उससे हम जनमानस को जाग्रत् करेंगे। निष्ठावानों की संख्या बढ़ायेंगे। वातावरण को गरम करेंगे। गायत्री यज्ञों के माध्यम से हम लोकशिक्षण करेंगे। गायत्री के माध्यम से हम लोगों को नयी विचारणाएँ देंगे। गायत्री मन्त्र के चौबीस अक्षरों की हम व्याख्या करेंगे और मनुष्य जीवन से सम्बन्धित, पारिवारिक जीवन, शारीरिक जीवन, मानसिक जीवन, भौतिक जीवन, हर तरह का जीवन- शिक्षण करेंगे। गायत्री में विचारणाओं का शिक्षण करने की पूरी- पूरी गुंजायश है। और क्या करेंगे? अगले दिनों यज्ञ का शिक्षण करेंगे। लोकशिक्षण के दो आधार हैं। पहला है विचारों का परिष्कार और दूसरा है कर्म में शालीनता। व्यक्ति के जीवन में शालीनता, सज्जनता और शराफत, सामाजिक जीवन में श्रेष्ठ परम्पराएँ अर्थात् जीवन को श्रेष्ठ बनाना और समाज को परिष्कृत करना। विचार ऊँचे करना और कर्म को, चरित्र को अच्छा करना, यही प्रमुख लोकशिक्षण है, जिसे हम गायत्री और यज्ञ के माध्यम से करेंगे।   

आपको करना क्या है? आपके जिम्मे जो काम सुपुर्द किये गये हैं, वे वास्तविक परिव्राजक के काम सुपुर्द किये गये हैं? आपको परिव्राजक की वास्तविक भूमिका निभानी है, इससे कम में काम नहीं चलेगा। परिव्राजक की योजना को पूरा करने के लिए, परिव्राजक के उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों को निभाने के लिए वही काम करना पड़ेगा, कि आप अपनी महत्त्वाकाँक्षाओं को कम कर दें और सामान्य जीवन- यापन करने से सन्तोष कर लें। सन्तोष करने के बाद में यह देखें कि हमारे पास कितना ज्यादा समय है? उस समय का सदुपयोग कहीं भी आप कर सकते हैं। वास्तव में परिव्राजक एक संकल्प है, एक व्रत है, एक नियम है, एक उपासना है, जिसमें श्रेष्ठ प्रकाश देने के लिए सम्पर्क स्थापित करना पड़ता है। सम्पर्क स्थापित कीजिए, अपने घर- परिवार वालों से, अपने बच्चों से, अपने पड़ोसी और मोहल्ले वालों से। जिस दफ्तर में आप काम करते हैं, वहाँ लोगों से अच्छे उद्देश्यों के लिए सम्पर्क स्थापित कीजिए। आप वहाँ भी परिव्रज्या कर सकते हैं।

आप दुकानदार हैं, तो वहाँ भी सबेरे से शाम तक ५० आदमी आते हैं। दुकानदारी के साथ- साथ श्रेष्ठ कामों के लिए भी आप उतना समय निकाल सकते हैं। आप हर आदमी को २४ घण्टे अच्छी सलाह दे सकते हैं। श्रेष्ठ प्रेरणाएँ दे सकते हैं और सामान्य जीवनक्रम के साथ परिव्राजक व्रत का, जिसका उद्देश्य जन- सम्पर्क है, हर समय पालन करते रह सकते हैं। आप कहीं भी जाएँ, हम आपसे नहीं पूछेंगे कि इनमें कितनी सफलता मिली? सफलता मिले या न मिले, पर प्रयास कितना किया, यह समयदानियों से हमारा मूल प्रश्न रहेगा। आप परिव्राजक हैं। जन- सम्पर्क में आप जहाँ कहीं भी जाएँ, आप कृपा करके एक ही बात कहना कि हर आदमी से जो कोई भी आपको भजन करता हुआ, पूजा करता हुआ दिखाई दे, उससे यही कहना कि अगर आप भगवान् का अनुग्रह पाने के इच्छुक हों, भगवान् की सहायता करने के इच्छुक हों, तो गुरुजी ने पल्ला पसार करके, महाकाल ने पल्ला पसार करके, युग के देवता ने पल्ला पसार करके हर आदमी से समय माँगा है। आपके पास समय हो, तो हमें दें।

नवयुग के निर्माण के लिए राहत कार्यों के लिए पीड़ा और पतन से लोहा लेने के लिए, सत्प्रवृत्तियों के संवर्द्धन में योगदान देने के लिये और दुष्प्रवृत्तियों से संघर्ष करने के लिये। दोनों हाथ से इस आपत्तिकाल में भगवान् ने पुकार की है। अगर आप कर सकते हों, तो यहाँ से जाने के पश्चात् करना। समय देना केवल उनके लिए सम्भव हो सकता है। जो अपनी भौतिक महत्त्वाकाँक्षाओं पर नियंत्रण लगा सकते हैं। इसके अलावा कोई समय नहीं दे सकता।
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