संस्कृति की सीता की वापसी

श्रेष्ठ तपस्वी बनाने होंगे

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अगले दिनों क्या करना पड़ेगा? अगले दिनों परिव्राजक योजना का शुभारम्भ कर रहे हैं, जिसके लिए पहली बार आप आये हैं, जिसका आप श्रीगणेश कर रहे हैं। आपको श्री गणेश करने वालों में शामिल किया, सौभाग्य दिया गया। अगर यह योजना चलेगी, तो क्या होगा? भावी योजना के बारे में मैं आपको बता रहा हूँ कि इसमें हम यह प्रयत्न करेंगे कि आदमी को तपस्वी बनायें।    

तपस्वी से क्या मतलब है? आदमी को धूप में खड़े करेंगे? धूप में नहीं खड़ा करेंगे। उसे अपनी हवस और अपनी कामनाओं पर अंकुश लगाना सिखायेंगे। तप इसी का नाम है। यही धूप में खड़ा होना है। आदमी अपने आप, अपनी शैतानी और अपनी कमजोरियों से लोहा ले। भीतर वाला कहता है कि हम तो यह करेंगे और बाहर वाला कहता है कि हम नहीं करने देंगे। इस तरह जो जद्दोजहद होती है और इस जद्दोजहद में जो लड़ाई लड़नी पड़ती है, उसी का नाम तप है। आपका व्यक्तित्व ऊँचा उठाने के लिए, आपकी जो बुरी आदतें पड़ी हुई हैं, उन बुरी आदतों को तोड़ने के लिए, बुरी आदतों का दमन करने के लिए, आपके ऊपर जो अंकुश लगाने पड़ते हैं, उनकी रोकथाम करनी पड़ती है, उसी का नाम तप है।   

नहीं साहब ! तप करने से भगवान् प्रसन्न हो जाते हैं। बेटे, तप करने से भगवान् को क्या मिलता है? इससे भगवान् प्रसन्न नहीं हो जाता। केवल होता यह है कि तप करने से हमारी गन्दी आदतें छूटती हैं। बस जितनी गन्दी आदतें छूटती जायेंगी, उतना ही भगवान् प्रसन्न हो जायेगा। नहीं साहब! खाना नहीं खायेंगे, तो भगवान् प्रसन्न हो जायेगा। क्यों अगर तू खाना नहीं खायेगा, तो भगवान् को क्या मिलेगा? इसलिए क्या है बेटे कि जिस भावी तपस्वी जीवन की योजना को हम कार्यान्वित करने जा रहे हैं, वह हमारे रजत जयंती वर्ष की सबसे शानदार योजना है। हम अपने इसी कुटुम्ब में से हजारों की तादाद में परिव्राजक निकालेंगे।    
उनकी क्या विशेषता होगी? पहली विशेषता होगी उनका तपस्वी जीवन, जिसकी झाँकी हम कल करा चुके हैं। जिसके बारे में हमने कल केवल लोकाचार और मर्यादा वाला हिस्सा बताया था। दृष्टिकोण वाला हिस्सा, अन्तरंग वाला हिस्सा नहीं बताया था। आपको अपने भीतर वाले की किस तरीके से तोड़- फोड़ करनी पड़ेगी, यह स्थायी विषय की बात है और यह तब की बात है, जब आप हमारे पास रहेंगे। तब हम आपके भीतर वाले हिस्से को हथौड़े से तोड़कर फिर नया ढालेंगे।

वक्ता नहीं सलाहकार बनें


मित्रो! अभी तो हमने मर्यादा बतायी थी, शिष्टाचार बताया था, लोकाचार बताया था, पंचशील बताये थे। वह केवल मर्यादा थी, कानून थे, व्यवस्था थी। यह केवल कानून व्यवस्था के अन्तर्गत पाँच बातें बतायी थीं। वह चरित्र संशोधन नहीं था। चरित्र संशोधन के लिए, यम- नियमों के लिए हम आपको दावत देंगे और कहेंगे कि आप आइये, हमारे साथ रहिए, हमारे वातावरण में रहिए। फिर क्या करेंगे? बेटे, हम आपको ज्ञान देंगे। कैसा ज्ञान देंगे? ऐसा, जिससे कि आप लोगों को सलाह दे सकने में समर्थ हो सकें। अभी आप लोगों को सलाह नहीं दे सकते। व्याख्यान तो कर सकते हैं, पर सलाह नहीं दे सकते; अभी जब आप सलाह देंगे तो गंदी सलाह देंगे, गलत सलाह देंगे। अभी आपका भीतर वाला हिस्सा जब किसी को सलाह देगा, तो कैसी सलाह देगा? जैसे आप हैं। आप बढ़िया सलाह नहीं दे सकते। क्योंकि सलाह के समय में आप स्टेज की बात भूल जायेंगे। स्टेज पर खड़े होकर बात कहना अलग है और सलाह की बात अलग है। हमको सलाह देने वाले चाहिए, सलाहकार चाहिए। हमको वक्ता नहीं चाहिए, सलाहकार चाहिए।    

इसलिए क्या करना चाहिए? सलाह देने लायक आपकी अक्ल कैसे विकसित की जा सकती है? कौन- सी परिस्थितियों में क्या सलाह दी जा सकती है और किस तरह से दी जा सकती है? यह सारा का सारा शिक्षण ब्रह्मविद्या कहलाता है। हम आपको अगले दिनों ब्रह्मविद्या भी सिखायेंगे और ब्रह्मविद्या सिखाने के साथ- साथ तपस्वी जीवन जीने तथा बाहर समाज के कार्य करने के लिए भेजेंगे। नहीं साहब! पहले भेज दीजिए। नहीं बेटे, पहले भेजने से तो मुसीबत आ जायेगी।
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