इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण

शिक्षण सत्र व्यवस्था

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प्रतिभा परिष्कार और नवसृजन का राजमार्ग तैयार करने में शान्तिकुञ्ज अपने ढंग की अनोखी भूमिका सम्पन्न कर रहा है, जिसमें युग शिल्पियों का उत्पादन और अभिवर्धन प्रमुख है। कम समय में कम साधनों से अधिक लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए थोड़े-थोड़े समय के प्रशिक्षण सत्र रखने पड़ते हैं। विशेष योग्यता प्राप्त करने के लिए एक महीने के और व्यस्त परिस्थितियों वालों के लिए नौ-नौ दिन के शिक्षण सत्र रखे गए हैं। हर महीने १ से ९, ११ से १९ और २१ से २९ तक यह सत्र सम्पन्न होते रहते हैं। इनमें सम्मिलित होने के इच्छुक अपना पूरा परिचय भेजकर इच्छित सत्र में सम्मिलित होने की स्वीकृति प्राप्त कर सकते हैं। स्थान भर गया हो, तो अगले किसी निकटवर्ती सत्र की स्वीकृति मिल जाती है।

    शिक्षित, समर्थ, उत्साही और अनुशासन प्रिय वयस्क पुरुषों की ही भाँति उन सुयोग्य महिलाओं को भी सम्मिलित होने की सुविधा है, जिनकी गोदी में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चे नहीं हैं। बहुत छोटे बच्चे शिक्षण व्यवस्था में गड़बड़ी उत्पन्न करते हैं, माताओं का ही नहीं दूसरे शिक्षार्थियों का भी ध्यान बँटता है। महिलाओं पर बालकों सम्बन्धी प्रतिबन्ध इसीलिए रखे गए हैं।

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