धर्मग्रंथ हमें क्या शिक्षण देते हैं, यह जानें

देवियो, भाइयो! पिछले दिनों जन्माष्टमी के अवसर पर हमने आपको यह बतलाया था कि भगवान् अपनी लीला के माध्यम से किस तरह से व्यक्ति, परिवार एवं समाज निर्माण के अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। हमारा लक्ष्य भी ध्रुव की तरह साफ है। हम व्यक्ति निर्माण की बात करना चाहते हैं, परिवार का स्तर, जो नष्ट हो गया है, उसका हम विकास करना चाहते हैं। हम व्यक्ति और समाज के बीच की कड़ी की स्थापना करना चाहते हैं, जिसका नाम परिवार है। इसी में से हीरे, मोती, जवाहरात निकलते हैं। वह आज चरमरा गया है। उसे हम ठीक करना चाहते हैं। परिवार को हमें शिक्षित करना है, संस्कारित करना है। लोग विलायत पढ़ने जाते हैं, परन्तु संस्कार कहीं से लेकर नहीं आते हैं। बच्चा जब माँ के गर्भ में होता है, तब से लेकर तीन साल तक, जब तक वह कुछ बड़ा होता है, उसकी अस्सी प्रतिशत शिक्षा समाप्त हो जाती है। भावना, संवेदना के संदर्भ में वह सब सीख जाता है। अगर आप पाँच साल के बच्चे बन जाएँ, तो मेरी समझ से आपके संस्कार को जाग्रत करने का समय लगभग एक वर्ष नौ महीने पहले ही समाप्त हो गया था। बचपन ही संस्कार का महत्त्वपूर्ण समय है। आप पब्लिक स्कूलों में हजारों रुपये महीने का शिक्षण दिला सकते हैं, जहाँ बच्चा क्रीज किया हुआ कपड़ा पहनना, जूतें पर पॉलिश करना, थैंक यू वेरी मच कहना सीख जाएगा, परन्तु जो संस्कार हम परिवार के अन्तर्गत दे पाते हैं, वह कदापि इन स्कूलों में संभव नहीं हैं। संस्कार कहाँ से आता है? वह माँ- बाप से आता है?

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118