आत्मिक प्रगति का ककहरा

देवियो, भाइयो! कई बार ऐसा होता है कि बाप- दादों की बहुत- सी दौलत हमारे हाथ लग जाती है। बच्चे चाहे कमाएँ या न कमाएँ, माता- पिता बहुत- सा धन बच्चे के लिए छोड़कर चले जाते हैं। जो लड़के समझदार होते हैं, वे पैतृक धन के रहते हुए भी अपनी आमदनी का कोई- न जरिया निकाल ही लेते हैं, जिससे पैतृक धन में कमी न आने पाए। लेकिन कुछ ऐसे भी लड़के होते हैं, जो माता- पिता के धन को जुआ खेलने में, शराब पीने में गँवा देते हैं। इस तरह बुरे व्यसनों से उनका समस्त धन नष्ट हो जाता है और वे विनाश के कगार पर पहुँच जाते हैं। बुराइयों के गर्त में गिर जाते हैं। भगवान् ने अपनी औलाद के लिए अपने अलग नियम व तरीके बनाए हैं और उसका नाम रखा है, ‘‘मनुष्य।’’ मनुष्य क्या है? मनुष्य भगवान् की नकल है। हम इसी से अंदाज लगा सकते हैं कि भगवान् बड़े रूप में कैसा होगा? जैसे इनसान है, भगवान् भी वैसा ही होगा। ऐसे ही हम अनुमान लगा सकते हैं कि समुद्र कैसा होगा? जैसा कि तालाब है, हम वैसा ही कुछ अंदाज लगा सकते हैं। कुछ ऐसी शक्तियाँ भी सृष्टि में हैं, जो छोटे तालाब को बड़े समुद्र में बदल सकती हैं।

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