भाव-संवेदना का विकास करना ही साधुता है

मेरे प्यारे बच्चों! हमारे तुम सबके बीच आने का एक ही उद्देश्य है कि हम समाज को सही व्यक्ति देकर जाएँ। व्यक्ति होते तो यह सारा समाज नया हो जाता। सारे समाज का कायाकल्प हो जाता। पचास आदमी गाँधी के, बुद्ध के साथ थे। वे युग- परिवर्तन कर सके, क्योंकि उनके पास काम के इनसान थे। विवेकानन्द के पास निवेदिता व कुछ काम के व्यक्ति थे। आज जहाँ देखो, वहीं जानवर नजर आते हैं। यदि काम के इनसान होते तो जमीन पलट दी गई होती। तुम सब यहाँ आए हो तो काम के आदमी बन जाओ। हमने जीवन भर व्यक्ति के मर्म को छुआ है व अपना ब्राह्मण स्वरूप खोलकर रख दिया है। नतीजा यह कि हमारे साथ अनगिनत आदमी जुड़े। तुम यदि सही अर्थों में जुड़े हो तो अपना भीतर वाला हिस्सा भी लोकसेवी का बना लो व समाज के लिए कुछ कर डालने का संकल्प ले डालो। यहाँ शान्तिकुञ्ज में न्यूनतम पाँच सौ कार्यकर्ताओं की, आदमियों की सही मायने में जरूरत है। आदमियों के लिए जमीन प्यासी है व आकाश प्यासा है। यदि पूर्ति हो जाए तो सारा सपना हमारा पूरा हो जाए। हमने ठहरने, खाने- पीने की सारी व्यवस्था कर दी है। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति अध्यात्म के,

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