हमारा कुटुम्ब, तब और अब

भाइयो! अपना ये कुटुंब हमने बहुत दिनों पहले बनाया था। उस समय हमारे पास बच्चे- ही थे। बच्चों के बारे में जो नीति अख्तियार करनी चाहिए, वो ही नीति हमारी थी। बच्चों के लिए, उन्हें देने के लिए क्या हो सकता है? पिताजी गुब्बारा देना, टॉफी देना, लेमनचूस देना। पिताजी चाबी की रेलगाड़ी लाना। हम बरफ की कुल्फी खाएँगे, आदि सारी- की माँगें, फरमाइशें- डिमांड बच्चे करते रहते हैं। ये कौन हैं? बच्चे। अध्यात्म क्षेत्र में फरमाइश करने वाले ये कौन हैं? बिलकुल बच्चे हैं, बालक हैं। इनको इसी बात की फिक्र पड़ी रहती है कि हमको दीजिए, हमको दीजिए। इसलिए ये बालक हैं। बेटे, आज से तीस साल पहले हमने बिलकुल बालकों का समूह जमा किया था और लोगों से कहा था कि हमारे पास जो कुछ है, आप ले जाइए। तब लोगों ने कहा था, पिताजी! आपके पास क्या है? गुब्बारे हैं। तो हमको दे दीजिए। बस एक गुब्बारा पेटी से निकाला, फूँक मारकर हवा भर दी और कहा ये रहा तुम्हारा गुब्बारा। एक ने कहा, पिताजी! आप तो सबको बेटा देते हैं? हाँ बेटे, हमारी पेटी में बहुत- सी चीजें हैं। ये देख टॉफी है, ये लेमनचूस हैं। ये नौकरी में तरक्की है। ये दमे की बीमारी

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