देवियो, भाइयो! जो कार्य और उत्तरदायित्व आपके जिम्मे सौंपा गया है, वह यह है कि दीपक से दीपक को आप जलाएँ। बुझे हुए दीपक से दीपक नहीं जलाया जा सकता। एक दीपक से दूसरा दीपक जलाना हो, तो पहले हमको जलना पड़ेगा, इसके बाद में दूसरा दीपक जलाया जा सकेगा। आप स्वयं ज्वलंत दीपक के तरीके से अगर बनने में समर्थ हो सकें, तो हमारी वह सारी- की आकांक्षा और मनोकामना और महत्त्वाकाँक्षाएँ पूरी हो जाएँगी, जिसको लेकर के हम चले हैं और यह मिशन चलाया है और हमने आपको यह कष्ट दिया है और बुलाया है। आपका सारा ध्यान यहीं इकट्ठा होना चाहिए कि क्या हम अपने आपको एक मजबूत ठप्पे के रूप में बनाने में समर्थ हो गए? गीली मिट्टी को आप लाना। ठप्पे पर ठोंकना, तख्ते पर लगाना- वह वैसे ही बनता हुआ चला जाएगा, जैसे हमारे ये खिलौने बनते हुए चले जाते हैं। हमें खिलौने बनाने हैं। खिलौने बनाने के लिए हमने साँचे और ठप्पे मँगाए हुए हैं। साँचे में मिट्टी लगा देते हैं और एक नया खिलौना बन जाता है। एक नए शंकर जी बन जाते हैं। एक नए गणेश जी बन जाते हैं। ढेरों के ढेरों श्रीकृष्ण और शंकर जी बनते जा रहे हैं।