जीवंत विभूतियों से भावभरी अपेक्षाएँ

देवियो, भाइयो! भगवान ने गीता में "विभूति योग" वाले दसवें अध्याय में एक बात बताई है कि जो कुछ भी यहाँ श्रेष्ठ दिखाई पड़ता है, ज्यादा चमकदार दिखाई पड़ता है, वह मेरा ही विशेष अंश है । जहाँ कहीं भी चमक ज्यादा दिखाई पड़ती है, वह मेरा विशेष अंश है । उन्होंने कहा, वृक्षों में मैं पीपल हूँ । छलों में मैं जुआ "वेदों में मैं सामवेद" साँपों में वासुकी मैं हूँ । अमुक में अमुक मैं हूँ आदि । मुझमें ये सारी विशेषताएँ हैं । मित्रो! आपको जहाँ कहीं भी चमक दिखाई पड़ती है, वो सब भगवान की विशेष दिव्य विभूतियाँ हैं और जहाँ कहीं भी जितना अधिक विभूतयों का अंश है, यह मानकर के हमको चलना पड़ेगा कि यहाँ इस जन्म में अथवा पहले जन्मों में इन्होंने किसी प्रकार से इस संपत्ति का उपार्जन किया है । अगर यह उपार्जन इन्होंने नहीं किया है, तो सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा उनमें ये विशेषता क्यों दिखाई पड़ती है ? जिनके अंदर कुछ विशेषताएँ दिखाई पड़ती हैं, मित्रो! उनके कुछ विशेष कर्त्तव्य और विशेष जिम्मेदारियाँ हैं । इसलिए उनको उद्बोधन करना चाहिए । उन लोगों को, जिनके अंदर कुछ विशेष प्रभाव और विशेष चमक दिखाई पड़ती है ।

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