विवेक की साधना और सिद्धि

देवियो, भाइयो! महात्मा आनंद स्वामी ने एक बार एक व्यक्ति से कहा था कि तू जब तक अनीति द्वारा कमाया हुआ धन खाएगा, तेरी प्रगति और बुद्धि नष्ट होती चली जाएगी। अतः हमें सात्विक अन्न खाना चाहिए। अन्नमय कोश की साधना के लिए आपको विशेष रूप से यह विचार करना होगा कि आपका आहार सात्विक है या नहीं। यहाँ अन्न से मतलब आजीविका से है। आजीविका शुद्ध होनी चाहिए। आजीविका ठीक होगी, तो मन भी ठीक होगा। मनुष्य के जीवन में आजीविका का अपना महत्त्व है। अन्न का अपना महत्त्व है। यदि ये शुद्ध होंगे, तो साधना से सिद्धि मिलने में देर नहीं होगी। सात्विकता से सिद्धियाँ स्वतः आती हैं। एक तपस्वी महात्मा जी थे। वह एक पेड़ के नीचे बैठे थे कि एक चिड़िया ने बीट कर दिया। उन्होंने उसकी ओर देखा और वह जलकर भस्म हो गयी। महात्मा जी को अपनी सिद्धि पर अहंकार हो गया था। एक दिन वे एक गाँव में गए और एक महिला से भीख माँगने लगे। महिला ने कहा कि आप थोड़ी देर रुकें। थोड़ी देर बाद भी जब वह नहीं आयी, तो महात्मा जी ने आवाज लगायी। महिला बोली कि इस समय हम योगाभ्यास कर रहे हैं। पति की सेवा करना, खाना खिलाना, बच्चों को स्कूल भेजना-यह मेरा योगाभ्यास है। जब यह खत्म हो जाएगा, तो हम आपकी सेवा करेंगे।

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