मित्रो ! हमारा सत्तर वर्ष का संपूर्ण जीवन सिर्फ एक काम में लगा है और वह है - भारतीय धर्म और संस्कृति की आत्मा की शोध । भारतीय धर्म और संस्कृति का बीज है -गायत्री मंत्र । इस छोटे से चौबीस अक्षरों के मंत्र में वह ज्ञान और विज्ञान भरा हुआ पड़ा है, जिसके विस्तार में भारतीय तत्त्वज्ञान और भारतीय नृतत्व विज्ञान दोनों को खड़ा किया गया है ।
ब्रह्माजी ने चार मुखों से चार चरण गायत्री का व्याख्यान चार वेदों के रूप में किया । वेदों से अन्यान्य धर्मग्रंथ बने । जो कुछ भी हमारे पास है, इस सबका मूल जड़ हम चाहें तो गायत्री मंत्र के रूप में देख सकते हैं । इसलिए इसका नाम गुरुमंत्र रखा गया है, बीजमंत्र रखा गया है । बीजमंत्र के नाम से, गायत्री मंत्र के नाम से इसी एक मंत्र को जाना जा सकता है और गुरुमंत्र इसे कहा जा सकता है । हमने प्रयत्न किया कि सारे भारतीय धर्म और विज्ञान को समझने की अपेक्षा यह अच्छा है कि इसके बीज को समझ लिया जाए, जैसे कि विश्वामित्र ने तप करके इसके रहस्य और बीज को जानने का प्रयत्न किया । हमारा पूरा जीवन इसी एक क्रिया-कलाप में लग गया । जो बचे हुए जीवन के दिन हैं, उसका भी हमारा प्रयत्न यही रहेगा कि हम इसी की शोध और इसी के अन्वेषण और परीक्षण में अपनी बची हुई जिंदगी को लगा दें ।