गुणों का परिष्कार ही सच्ची भक्ति

मित्रो! यह प्रक्रिया अनादिकाल से चली आ रही है कि हम भगवान के लिए अपनी आत्मसंशोधन की प्रक्रिया को जारी रखें ।। हमने अपने आप को धोया, अपने आप को साफ किया, अपने आप को इस लायक बनाया कि भगवान का निवास वहाँ होना संभव हो सके ।। अवागढ़ महाराज ने एक बार पंडित मोतीलाल नेहरू को किसी सलाह के लिए अपने यहाँ बुलाया ।। उन दिनों वे एक हजार रुपया रोज अपनी फीस लिया करते थे ।। अवागढ़ महाराज के यहाँ जब पंडित जी आए तो उन्होंने क्या काम किया? सबसे पहले अपने नहाने- धोने और टट्टी- पेशाब वगैरह जाने के स्थान देखे ।। उन्होंने देखा कि यहाँ तो दुर्गंध आ रही है ।। उन्होंने कहा- अरे भाई! हमें बीमार करोगे क्या? यहाँ तो हम नहीं रह सकते ।। अवागढ़ महाराज ने तुरंत दूसरा इंतजाम किया ।। उनके लिए नए कमोड मँगवाए और नई जगह बनवाई, जहाँ गंदगी न पैदा होती हो और बदबू न आती हो ।। भगवान को आप बुलाना चाहते हैं तो बेटे! तुझे नहीं मालूम कि क्या करना पड़ता है? कल गवर्नर आ रहा है ।। सबकी अक्ल लग रही है कि देखिए कूड़ा हटाइए सड़क साफ कीजिए रास्ता बंद कीजिए ।। नाली को यहाँ से निकालिए यहाँ से अमुक सामान उठाइए ।। गवर्नर के आने पर कितनी आफत आ रही है और सफाई में कितना पैसा खरच करना पड़ रहा है ।।

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