हमारी अंतश्चेतना ही वास्तविक गायत्री

मित्रो! मनोनिग्रह हेतु अब और भी आगे बड़े । इसके लिए क्या करें ? “ मातृवत् परदारेषु लोष्ठवत् परद्रव्येषु आत्मवत् सर्वभूतेषु" ये तीन आधार हैं, ये तीन कसौटियों हैं, जिनके ऊपर कसा जा सकता है कि आप फल प्राप्त करने के अधिकारी भी हैं कि नहीं और आत्मबल आपको मिल भी सकता है कि नहीं, आत्मबल आप सँभाल भी सकते हैं कि नहीं और आत्मबल की जिम्मेदारी वहन करने के लायक आपके भीतर कलेजा और हिम्मत है भी कि नहीं । ये बेटे तीन परीक्षाएँ हैं; ये तीन पेपर हैं पी० एम० टी० के । मेडिकल कॉलेज में भरती होने के लिए तीन पेपर दीजिए । इस्तिहान दीजिए पास होइए । पी० एम० टी० में डिवीजन लाइए और हम आपको दाखिल कर लेंगे । नहीं साहब, धक्का-मुक्की चलेगी । हम तो धक्के मारेंगे और धक्के मारकर सबसे आगे निकल जाएँगे । बेटे पहले रेलवे स्टेशनों पर ऐसा होता था हमारे जमाने में । जो धक्के मारता था वो सबसे आगे चला जाता था । टिकट वही ले आता था । बाकी रह जाते थे । अब तो “क्यू सिस्टम” हो गया है ना । आप कमजोर हैं ना । सबसे पीछे खड़े हो जाइए । नहीं साहब, वह पीछे वाला पहलवान खड़ा हुआ है । हटाइए उनको, नंबर से खड़ा होना पड़ेगा । जो धक्के मारेगा, वह आगे चला जाएगा, यह सब पुराने जमाने में चलता था और धक्के मारने वाला टिकट ले आता था पर अब धक्केशाही चलती नहीं । साहब हम तो धक्के मारेंगे, किसमें मारेंगे, भगवान जी को धक्के मारेंगे और सबसे पहले वरदान ले आएँगे । धक्केशाही नहीं चलेगी अब, लाइन में खड़ा हो, “क्यू में खड़ा हो और अपनी जगह साबित कर और हैसियत साबित कर और वह वरदान ले आ, ताकत ले आ ।

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