मित्रो ! हमने यह क्या कर डाला! अज्ञान के वशीभूत हो करके हमने उस धर्म की जड़ में कुल्हाड़ा दे मारा और उसे काटकर फेंक दिया, जिसका उद्देश्य था कि हमको पाप से डरना चाहिए और श्रेष्ठ काम करना चाहिए । पापों के डर को तो हमने उसी दिन निकाल दिया, जिस दिन हमारे लिए गंगा पैदा हो गई । गंगा नहाइए और पापों का डर खतम । अच्छा साहब! चलिए एक डर तो खतम हुआ । एक झगड़ा और रह गया है । क्या रह गया है? श्रेष्ठ काम कीजिए, त्याग कीजिए, बलिदान कीजिए, समाज सेवा कीजिए, अमुक काम कीजिए । पर इनका सफाया किसने कर दिया ? बेटे! यह सत्यनारायण स्वामी ने कर दिया और महाकाल के मंदिर ने कर दिया । इन खिलौनों ने कर दिया । इन खिलौनों को देखिए और बैकुंठ को जाइए । अध्यात्म का सत्यानाश हो गया । अध्यात्म दुष्ट हो गया, अध्यात्म भ्रष्ट हो गया । भ्रष्ट और दुष्ट अध्यात्म को लेकर हम चलते हैं और फिर यह उम्मीद करते हैं कि इसके फलस्वरूप हमें वे लाभ मिलने चाहिए वे चमत्कार मिलने चाहिए वे सीढ़ियाँ मिलनी चाहिए और वे वरदान मिलने चाहिए ।