देवियो, भाइयो ! ईश- पूजन की आवश्यकता के बारे में मैं आपको हमेशा से कहता और बताता चला आ रहा हूँ ।। पूजा की आवश्यकता हमेशा पड़ेगी और पग- पग पर पड़ती रहेगी ।। पूजा के खिलाफ सबसे हैं सर्वप्रथम जब मुसलमान ज्यादा ।। मुसलमान हिंदुस्तान में आए और हिंदुस्तान में आकर उन्होंने मंदिरों को तहस- नहस कर डाला ।। सोमनाथ के मंदिर को तोड़- फोड़कर उन्होंने फेंक दिया ।। श्री रामचंद्र जी का मंदिर अयोध्या में बना हुआ था, उसे भी उन्होंने तोड़- फोड़कर फेंक दिया ।। कृष्ण भगवान का मंदिर मथुरा में बना हुआ था, उसे तोड़- फोड़कर फेंक दिया ।। उनका ख्याल था कि व्यक्ति को मूर्ति- पूजा नहीं करनी चाहिए ।। उनका ये ख्याल था कि पृथ्वी को हम मदिरविहीन कर देंगे ।। अंत तक मूर्ति- पूजा न करने की बात पर वे कायम रहे ।। मक्काशरीफ में आप जाइए वहाँ एक" संगे अवसद" नाम का पत्थर रखा हुआ है ।। वह काले रंग का है ।। जो कोई भी मुसलमान काबा में जाता है, मक्का- मदीना में जाता है, हज करने के लिए तो उसको पत्थर के सामने इजरा करना होता है और बोसा लेना पड़ता है ।। चुंबन लेना पड़ता है ।। अगर चुंबन नहीं लिया, बोसा नहीं लिया उस काले रंग के पत्थर का तो, उनकी हज- यात्रा निरर्थक हो जाएगी ।।