अध्यात्म का मर्म समझें
देवियों, भाइयों! एक पहलवान की हर जगह ख्याति हो गई। जगह- जगह उसे बुलाया
जाने लगा। अखाड़े में जीत- जीत करके वह नाम कमाने लगा। अखबारों में उसके
फोटो छपने लगे। लोगों की इच्छा हुई कि हमको भी पहलवान बनना चाहिए। वे
पहलवान के पास गए और यह देखा कि पहलवान क्या किया करता है? उसे दंड पेलते
हुए देखा और बैठक करते हुए देखा। यह देखकर कई आदमियों ने दंड पेलना और बैठक
करना शुरू कर दिया, लेकिन दंड पेलने और बैठक करने के बहुत समय बीत जाने के
पश्चात् भी कोई आदमी पहलवान नहीं बन सका, और न ही कोई आदमी इतनी ख्याति
वाला बन सका जितना कि वो पहलवान था। वे फिर से उसके पास गए और कहा- ''
दोस्त! सही- सही बताना कि जो हम करते हैं, क्या वही आप भी करते हैं या कोई
और तरीके की दंड- बैठक करते हैं?" पहलवान ने उनको देखा, मुआइना किया और
कहा- "जैसा आप करते हैं वैसा ही हम करते हैं, कोई फर्क नहीं है।" उन्होंने
कहा कि फिर हम क्यों पहलवान नहीं बन सके और आप कैसे पहलवान बन गए?
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