आपत्तिकाल का अध्यात्म

कुछ समय ऐसे होते हैं, जिनको हम सामान्य कह सकते हैं ।। सामान्य समय में सामान्य प्रकार की गतिविधियों चलते रहने का औचित्य समझ में आता है ।। रोज आदमी पैदा होते हैं, बढ़ते हैं, खेती- बाड़ी करते हैं, ब्याह- शादी होते हैं, बाल- बच्चे होते हैं, बड़े होते हैं और मौत के मुँह में चले जाते हैं ।। यह सामान्य क्रम है जो चलता रहता है ।। इसमें अचंभे की कोई नई बात नहीं है, लेकिन कभी- कभी कोई ऐसे समय भी आते हैं, जिनको हम विलक्षण कह सकते हैं ।। जिनको "आपत्तिकाल" कहा जा सकता है ।। मनुष्य के जीवन में आपत्तिकाल भी कई बार आते हैं ।। आपत्तिकाल में सामान्य प्रकार की प्रक्रियाएँ लड़खड़ा जाती हैं ।। घर में आग लग जाए छप्पर जल रहा हो, उस समय खाना, नहाना सब कुछ छोड़कर जलते छप्पर पर पानी डालने के लिए सभी दौड़ पड़ते हैं ।। दुर्घटना हो जाए तो ऑफिस जाना छोड़कर पहले बच्चे को अस्पताल ले जाएँगे और प्लास्टर कराकर आएँगे ।। यह क्या कह रहे हैं ? आपत्तिकाल की बात कह रहे हैं ? आपत्तिकाल की कीमत जो समझते हैं, उनको यह भी ध्यान है कि आपत्तिकाल के लिए आपत्तिकालीन व्यवस्थाएँ बनाई जाती हैं ।। देश के ऊपर जब कोई दुश्मन हमला कर देता है तो क्या करना पड़ता है ? दुश्मन बनना पड़ता है ।। सैनिकों की छुट्टियाँ बंद कर दी जाती हैं ।। नहीं साहब, हमारा ब्याह है, मुहूर्त भी छँट गया है ।। आपका ब्याह होगा अगले साल में, अभी तो दुश्मन ने हमला कर दिया है, इसलिए आपकी छुट्टियों रद्द की जाती हैं और आपको लड़ने के लिए जाना होगा ।।

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