देवियो, भाइयो! अनुग्रह और मनुहार, इन दोनों का आपस में संबंध तो है और ये क्रम चलता भी है । इसको हम शाश्वत सिद्धांत महसूस कर सकते हैं । मनुहार, खुशामदें, मिन्नतें, प्रार्थनाएँ आप इन्हें कीजिए इनकी भी आवश्यकता है । यह क्रम भी इस दुनिया में चलता तो है । मैं यह तो नहीं कहता कि यह क्रम चलता नहीं है, पर क्या अनुग्रह मिलते भी हैं ? हाँ अनुग्रह भी मिलते रहते हैं । अनेक आदमी जीवित हैं, अपंग भी इसी पर जीवित हैं, अंधे भी इसी पर जीवित हैं, दुर्बल भी इसी पर जीवित हैं और सिद्धांत भी अनुग्रह के ऊपर जिंदा हैं । अनुग्रह दुनिया में से खत्म हो चला ? नहीं बेटे! खत्म होने की बात नहीं कहता, पर मैं यह कहता हूँ कि सिद्धांत और इसके आधार पर कोई बड़ी लंबी योजना नहीं बन सकती और कोई महत्त्वपूर्ण कार्य इसके आधार पर सिद्ध नहीं हो सकता ।
मित्रो! अगर आप कहें कि अनुग्रह के आधार पर कृपा कीजिए हमारी सहायता कीजिए हमको ये दीजिए । लेकिन क्या ये चलेगा ? चल तो सकता है, पर वहाँ तक शोभा नहीं देता, जहाँ तक आदमी स्वयं में समर्थ हो । जैसे बच्चा, बच्चा क्या करता है? बच्चा स्वयं में असमर्थ होता है, कुछ कमा नहीं सकता । इसलिए कुछ कमा सकने की स्थिति में न होने की वजह से, असमर्थ होने की वजह से, माँ-बाप उसकी सहायता करते हैं । बच्चे को रोटी देनी चाहिए कपड़े देने चाहिए, सहायता देनी चाहिए । बच्चे की मनःस्थिति माँगने की होती है, क्योंकि वह विकसित नहीं है ।