अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -2

रोशन हुआ कुलदीपक का जीवन

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    मेरा भतीजा अमल कुमार पाण्डेय मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव था। साथ ही वह झारखण्ड में मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव एसोसिएशन में सेक्रेटरी भी था। उसकी सभी जगह अच्छी पकड़ थी। १९९८ के अक्टूबर- नवम्बर महीने की घटना है। अचानक उसे हेपेटाइटिस- बी हो गया और धीरे- धीरे बहुत घातक स्थिति में पहुँच गया। उसे राँची के अपोलो अस्पताल में एडमिट किया गया। उसका इलाज बहुत अच्छे तरीके से शुरू हो गया। लेकिन कोई दवा काम नहीं कर रही थी। धीरे- धीरे उसकी हालत बिगड़ती ही रही। उसका लीवर, किडनी, हर्ट सब एक साथ प्रभावित हो गया, जिस कारण वह मृतप्राय स्थिति में पहुँच गया।

       हम लोगों ने उसे राँची में ही भारत के विख्यात ब्रेन एण्ड न्यूरो स्पेशलिस्ट डॉ० के० के० सिन्हा को दिखाया। उन्होंने देखने के बाद कोई सकारात्मक उत्तर नहीं दिया। उन्होंने कहा कि लड़का तो ९८ प्रतिशत खत्म हो चुका है। मात्र प्रतिशत ही उम्मीद है। वह भी भगवान के हाथ में है। यदि उसे २४ घण्टे के अन्दर प्लेटलेट्स चढ़ाया जा सके तो कुछ उम्मीद बन सकती है, यदि यह २४ घंटे जीवित रह सके।

       उन दिनों राँची में प्लेटलेट्स उपलब्ध नहीं था। कलकत्ता से मँगाना पड़ता था। यह बहुत कठिन कार्य था। कहते हैं अच्छी दोस्ती भगवान की कृपा से मिलती है। उसके दोस्तों के अथक प्रयासों से यह कठिनतम कार्य संभव हो सका। जब डॉ० सिन्हा देखकर चले गए तो मैं स्वयं हॉस्पिटल के अधीक्षक से मिला एवं उनसे आग्रह किया कि मैं उसे देखना चाहता हूँ। मैं उसके स्वास्थ्य के लिए भगवान से आधा घंटा प्रार्थना करना चाहता हूँ। उन्होंने मेरा आग्रह स्वीकार कर लिया और मुझे अपने साथ सघन चिकित्सा कक्ष तक ले गए।

   मैंने वहीं से एक धुली चादर ली और चादर बिछाकर पालथी मारकर बैठ गया। वहाँ पर एक डॉक्टर तथा दो नर्स उपस्थित थे, जिनकी वहाँ पर ड्यूटी थी। मुझे देखकर वे बोले कि यह तो खत्म हो चुका है। वास्तव में उसकी हालत बिल्कुल खराब होने के कारण वह मृतप्राय हो चुका था। उसकी पेशाब की नली से एक बूँद भी पेशाब नहीं आ रहा था। उसका पूरा शरीर फूल गया था। उसके पूरे हाथ पाँव सुन्न पड़े थे। ऑक्सीजन ने भी काम करना बंद कर दिया था। किसी भी प्रकार की हरकत नहीं हो रही थी। मैं वहीं उसके पैर के पास चादर डालकर बैठ गया तथा दोनों नेत्र बन्द करके सीधे शान्तिकुञ्ज में प्रज्ज्वलित अखण्ड दीप एवं गुरु देव माताजी के चरणों में प्रार्थना करने लगा।

       मैं सबसे बेखबर ध्यान में तल्लीन था। लगभग २०- २५ मिनट हुए होंगे। मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसे गुरु देव मेरे कान में कह रहे हैं कि घबड़ाओ नहीं, सब ठीक हो जाएगा। मुझे अखण्ड दीपक की लौ काफी तेज जलती प्रतीत हुई। हम पूरी तरह से ध्यान मग्न हो गए थे, जिससे मुझे अपनी सुध भी नहीं रही। जब ध्यान टूटा तो देखा करीब ५० मिनट हो गया था। मैं हड़बड़ा कर उठा और अधीक्षक महोदय से २० मिनट देर होने के लिए माफी माँगी तथा निवेदन किया कि पुनः एक घण्टे बाद मुझे आने की अनुमति दे दें। उन्होंने बड़े ही सहज भाव से स्वीकृति दे दी। मैं पुनः एक घण्टे बाद उसी स्थान पर बैठकर महामृत्युंजय मंत्र और सूर्य गायत्री मंत्र का गायत्री मंत्र में संपुट लगाकर अखण्ड दीप के समीप होने की भावना करते हुए जप करने लगा। इसके पश्चात् करीब आधे घण्टे के बाद मैंने देखा कि उसे दो- दो मिनट पर एक- एक बूँद पेशाब हो रहा है। मैंने जाकर उसी डाक्टर से यह बात बताई, जिसकी ड्यूटी थी तो उन्होंने फिर वही वाक्य दुहराया। लेकिन मैंने हार नहीं मानी।

       मैं वापस घर आ गया और शाम को सात बजे आदरणीया शैल जीजी से फोन पर भतीजे की स्थिति के बारे में सूचना दी। जीजी बोलीं कोई नशा या ड्रग्स लेता था क्या? मैंने बताया कि इन सबकी आदत उसे कभी नहीं रही। वे बोलीं कि स्थानीय गायत्री शक्तिपीठ में माँ के सामने अलग से दीपक प्रज्वलित कर दीजिए। गुरु देव की कृपा से ठीक हो जाना चाहिए। मैं राँची स्थित गायत्री शक्तिपीठ आया और आदरणीया जीजी के कहे अनुसार वैसा ही किया। रात्रि में हम लोग सो गए थे। अचानक उठे तो किसी ने आकर बताया कि अमल को रात भर में ७०० एम एल पेशाब हुआ है। उसके लिए प्लेटलेट्स भी कोलकाता से आ गई थीं, जिसे चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। गुरुदेव माताजी के प्रति श्रद्धा से मेरा हृदय भर उठा। पूरे हॉस्पिटल में यह चर्चा का विषय बन गया था कि आज भी धर्म से व्यक्ति की रक्षा होती है।

मुझे वहाँ के अधीक्षक महोदय ने भी बधाई दी। क्योंकि मेरे भतीजे की उम्र ३८ वर्ष की थी और उसने ३२ बार उसी हॉस्पिटल में रक्तदान किया था। इस कारण वह हॉस्पिटल के सभी डॉक्टर्स को प्रिय था। मैं तुरन्त उसके पास गया। देखा कि अब वह छटपटा रहा है। उसके पूरे शरीर में हलचल है। ऑक्सीजन वगैरह भी चालू हो गया था। मैंने पुनः एकान्त में बैठकर पूर्व की भाँति जप करना शुरू कर दिया। कुछ घण्टों के बाद वह होश में आ गया। होश में आते ही उसने मुझे देखा। उसके होंठ बोलने के लिए हिल रहे थे। बड़ी मुश्किल से उसके मुँह से ‘बाबू’ शब्द निकला। उसके मुँह से यह शब्द सुनकर मेरा हृदय बाग- बाग हो रहा था। अमल कुमार स्वस्थ हो गया। गुरु की इस असीम कृपा और प्यार को मैं जीवन भर नहीं भूल सकता।

प्रस्तुति :- लल्लू पाण्डेय
चास, बोकारो (झारखण्ड)
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