अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -2

देवशिशु ने जगायी सद् बुद्धि

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        यह घटना १९९० की है, जब मैं परम वन्दनीया माताजी से दीक्षा लेकर पहली बार नवरात्रि अनुष्ठान में था। इससे पहले कि मैं घटना का जिक्र करूँ, यह बता दूँ कि मेरे यहाँ बिना मांसाहार या मछली के भोजन नहीं बनता था। गायत्री दीक्षा लेने एवं नवरात्रि में अनुष्ठान करने के कारण मैंने मांस- मछली खाना बंद कर दिया। मैं एक बार दाल रोटी चटनी और शाम को फलाहार लेने लगा। इसके चलते परिवार के सभी सदस्य, माता- पिता भाई, मेरी अर्द्धांगिनी को छोड़ कर सभी, मुझसे नाराज रहने लगे और बातचीत बंद कर दी।

        नवरात्रि के अंतिम दिन की बात है। मेरा पाँच वर्ष का भतीजा अमित अचानक किसी कारण से डर गया। वह बुरी तरह रोने- चिल्लाने लगा। जो भी उसे गोद में उठाने जाता, वह छिटककर उससे दूर जा खड़ा होता और आँखें फाड़कर उसकी ओर देखने लगता। दादा- दादी, माता- पिता सभी परेशान हो गए। बच्चा जोर- जोर से चिल्ला रहा था- तुम लोगों के इतने बड़े- बड़े दाँत हैं, तुम लोग मुझे खा जाओगे, मैं तुम्हारे पास नहीं आऊँगा। सभी हतप्रभ थे, कुछ समझ नहीं पा रहे थे। मैं जप में बैठा था। करीब आधे घण्टे से यह सिलसिला चल रहा था। आखिर में थक- हारकर सब लोग मुझे पुकारने लगे- शंकर देखो न मुन्ने को क्या हो गया है। हम लोगों से डर रहा है। कहता है हमारे सिर पर सींग है, हमारे बड़े- बड़े दाँत हैं, हम उसे खा जाएँगे।

        सभी लोगों का ध्यान दूसरी ओर देख बच्चा चुपचाप जाकर एक मेज के नीचे दुबककर बैठ गया। उसकी आँखों में आँसू भरे थे। बच्चे को क्या कष्ट है यही अज्ञात था। मैंने सोचा सबसे पहले उसका भय दूर करना चाहिए। मैंने आँखें बंद कर गायत्री का ध्यान किया। एक हल्की सी आवाज सुनाई पड़ी- आचमनी का जल बच्चे को पिला। मैं आचमनी का जल लेकर उसके पास गया। मुझे पास देखकर बच्चा जल्दी से आकर मुझसे चिपक गया। गोद में उठाकर दुलारा तो देखा उसके मुख पर एक पूरी आश्वस्ति का भाव था। वह मेरे पास आकर अपने- आपको सुरक्षित महसूस कर रहा था।

        ध्यान में मिले निर्देश के अनुसार मैंने आचमनी का जल पिलाया। बच्चा गोद में ही सो गया। इस घटना के बाद मेरे प्रति परिवार का मनोभाव बदल गया। फिर उन्होंने भी माँसाहार त्याग दिया और दीक्षा लेकर गायत्री परिवार से जुड़ गए।             

        माँसाहार आसुरी प्रवृत्ति है यह मैंने पुस्तकों में तो पढ़ा था, पर सरल स्वभाव शिशु के स्वच्छ हृदय में यह बात इस प्रकार मूर्त्त रूप में प्रकट हुई कि मेरे परिवार का वातावरण ही बदल दिया। इसे मैं गायत्री उपासना का ही प्रतिफल मानता हूँ।                                

प्रस्तुति :: -- जयशंकर रावत
आसनसोल (प.बंगाल)

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