बात १५ सितम्बर २०११ की है। मेरा पुत्र राजकुमार अपने लड़के को पढ़ा रहा था। पढ़ाते हुए वह अपने बच्चे को पीट रहा था। मेरी बहू ललिता बच्चे को बचाने के लिए दौड़ी तो बच्चे को छुड़ाने के चक्कर में हृदय में चोट लग गई और वह बेहोश होकर गिर पड़ी। उसकी सांस रुक गई, दांत भिंच गई। शोर सुनकर मैं दौड़कर भागा। देखा कि बहू को मेरी पत्नी गोद में लेकर बैठी हुई है। मेरी पत्नी बहुत परेशान थी।
यह दृश्य देखकर मैं भी रोने लगा। मैं व्याकुल हो गया और अधीर होकर गुरुदेव को पुकारा, कि गुरुदेव यह क्या हो गया? मेरा परिवार आपकी शरण में है। अब तो आप ही मुझे संकट से उबारिये। मेरे बेटे ने यह बिना सोचे विचारे क्या कर ड़ाला? अगर कुछ हो जाएगा तो मैं समाज को क्या मुँह दिखाऊँगा। मैं आँसू रोके हुए बस गुरुदेव को याद कर रहा था। मेरी पत्नी भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो चिंतामग्न बैठी थी, करीब पाँच या दस मिनट बाद अचानक मेरी पत्नी ने बहू के चेहरे पर पानी के छींटे मारे। उसने आँखें खोल दीं। फिर उसको अस्पताल ले गए और उसकी जान बच गई।
गुरुदेव ने मुझे उस वक्त बड़े संकट से बचाया, अगर कुछ हो जाता तो बड़ी विपत्ति में फँस जाता। इसके बाद मैं २८ सितम्बर को शांतिकुंज श्रमदान हेतु पहुँच गया। यह गुरु की कृपा है जो मैं आज हँसी- खुशी से उनके कार्य में संलग्न हूँ ।।
प्रस्तुति: धनेश्वर सिंह यादव
चंदौरा, नालंदा (बिहार)