अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -2

प्रभु इच्छा सर्वोपरि

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        घटना १४ जुलाई १९८९ की है। विनोदानंदजी की शादी शांतिकुंज के यज्ञशाला प्रांगण में होना निश्चित हुई। श्रद्धेय आचार्यगण द्वारा विवाह संस्कार के वेदमंत्रों के छन्दबद्ध उच्चारण और उनकी सारगर्भित व्याख्याएँ श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर रही थीं। शांतिपाठ- विसर्जन के उपरांत वर- वधू को वंदनीया माताजी एवं परम पूज्य गुरुदेव के आशीर्वचनों के लिये उनके कक्ष में जाना था। तब पूज्य गुरुदेव के कक्ष में उनसे मिलने हेतु आवश्यक अनुमति लेनी पड़ती थी। परिजन दूर झरोखे से ही गुरुवर के दर्शन कर लिया करते थे। वर- वधू के आर्शीवचन हेतु गुरुवर के कक्ष में जाने की अनुमति तो मिली, लेकिन फोटो लेने की नहीं अनुमति मिली। अब हमारे मन में मचलती सी भावना थी कि शादी के इतने फोटो खींचे गए पर हमारे परम आराध्य के सान्निध्य के बिना तो वर- वधू के सारे फोटो अधूरे ही माने जाएँगे।    

        अब गुरुदेव के आशीर्वाद वाले पल के फोटो कैसे लिये जाएँ? यह प्रश्र हम सब के मन में बार- बार कौंधने लगा- बुद्धि उपाय ढूँढ़ने लगी। हृदय कचोटने लगा कि गुरुदेव के फोटो नहीं लेंगे तो सब चौपट। तुरंत मेरे पति (विजय कुमार शर्मा) के मन में एक उपाय सूझा कि अगर श्रद्धेय शिव प्रसाद मिश्रा जी के द्वारा फोटो लेने की अनुमति स्वीकार करवा ली जाय तो यह संभव हो सकता है। मैं और मेरे पतिदेव गुरुवर के फोटो लेने की अभिलाषा को पूर्ण करना चाहते थे। लेकिन मिश्रा जी ने स्पष्ट कहा कि गुरुदेव की अनुमति के बिना फोटो लेना संभव नहीं है। उन्होंने भी फोटो लेने से मना कर दिया। निराश होकर हम सब वंदनीया माताजी के कमरे की ओर वर- वधू के साथ बढ़े। नीचे के कमरे में वंदनीया माताजी से आशीर्वाद लेकर ऊपर के कमरे में गुरुदेव के आशीष हेतु जाना था। मेरे पति भी कैमरा लेकर वर- वधू के साथ गुरुवर के पास पहुँच गए। गुरुदेव ने बड़े प्यार से भावभरे आशीष वचन कहे। तभी मेरे पति ने कैमरे से दो फोटो फटाफट खींच लिए। गुरुदेव एक भेदक दृष्टि डालकर मुस्कुराए भी। हम सब बड़े प्रसन्न थे कि गुरुदेव की यादगार हमारे साथ होगी। हम सब खुशी- खुशी घर लौटे।

        अपने घर जमालपुर (मुंगेर) पहुँचकर जब मेरे पति ने कैमरे की रील साफ कराई तो वे स्तब्ध रह गए। मैं भी देखकर हैरान थी कि वंदनीया माताजी के फोटो तो कैमरे में स्पष्ट आए थे, पर गुरुदेव के लिये गए दोनों चित्र बिल्कुल सादे आए थे। तब मैं गुरुदेव की उस भेदक दृष्टि और मुस्कुराहट का अर्थ समझी। वस्तुतः जाग्रत चेतना के प्रज्ञा- पुरुष की इच्छा से भौतिक (कैमरा) भी नियंत्रित हुआ। उनकी आज्ञा की अवहेलना कर कैमरा भी फोटो नहीं ले पाया। सच ही कहा गया है- संसार में प्रभु की इच्छा ही सर्वोपरि है। परमात्मा की इच्छा ही विजयी होती है। तब ये भौतिक यंत्र और संसार उनकी इच्छा को कैसे टाल सकते हैं।
                         
प्रस्तुति: आशा देवी शर्मा
            जमालपुर, मुंगेर (बिहार)

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