संत तुकाराम सेवा और सहिष्णुता के उपासक- संत तुकाराम संसार में सभी मनुष्यों का लक्ष्य, धन, संतान और यश बताया गया है। इन्हीं को विद्वानों ने वित्तैषणा, पुत्रैषणा और लोकैषणा के नाम से पुकारा है। इन तीनों से विरक्त व्यक्ति ढूँढने से भी कहीं नहीं मिल सकता। संभव है किसी मनुष्य को धन की लालसा कम हो, पर उसे भी परिवार और नामवरी की प्रबल आकांक्षा हो सकती है। इसी प्रकार अन्य व्यक्ति ऐसे भी मिल सकते हैं कि जिनको धन के मुकाबले में संतान अथवा यश की अधिक चिंता न हो। पर इन तीनों इच्छाओं से मुक्त हो जाने वाला व्यक्ति किसी देश अथवा काल में बहुत ही कम मिल सकता है। इसका आशय यह नहीं कि इस प्रकार की आकांक्षा रखने वाला मनुष्य निश्चय ही दूषित समझा जाए। संसार में रहते हुए इन वस्तुओं की आवश्यकता मनुष्य को पड़ा ही करती है और यदि इस आवश्यकता को न्यायानुकूल मार्ग से पूरा किया जाये तो उसमें बुराई अथवा निंदा की कोई बात नहीं है। पर देखने में यह आता है कि बहुसंख्यक लोग इनके लिये गलत उपायों का अवलंबन करते हैं, इनकी लालसा में पड़कर अन्य उच्च