महायोगी अरविंद

आत्मा की पुकार

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पर इन सब कार्यो को करते और राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेते हुए भी उनकी अंतरात्मा उनको एकांतवास में रहकर आध्यात्मिक साधना के लिए प्रेरित कर रही थी। कलकत्ता में रहकर उनको बहुत- सा समय राजनीतिक उलझनों के समाधान में लगाना पड़ता था और अनेक समय नवीन परिस्थितियों के उत्पन्न हो जाने से व्यस्ततापूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़ता था। इससे उच्च आध्यात्मिक साधना में व्याघात पड़ता था और लक्ष्य- प्राप्ति में विलंब होता था। अंत में उन्होंने यही निश्चय किया कि राजनीतिक आंदोलन से संपर्क त्यागकर किसी ऐसे स्थान में जाकर निवास करें, जो साधना के लिए विशेष रूप से अनुकूल हो। यह निश्चय करके उन्होंने देशवासियों के नाम एक खुली चिट्ठी प्रकाशित कराई, जिसे वे अपना ज्अंतिम राजनीतिक मृत्यु- लेख अथवा वसीयत नामाज् कहते थे। इसमें उन्होंने अपने हटने का संकेत करते हुए अनुयायियों को आश्वासन दिया कि ज्ज्हर बड़े आंदोलन को इस बात की बाट देखनी पड़ती है कि भगवान् उसके लिए विशेष रूप से उपयुक्त नेता को भेंजे। वह नेता भगवान् की शक्ति का माध्यम बन जाता है। तब वह आंदोलन विजयोल्लास के साथ सफलता की ओर बढ़ता है।श्री अरविंद का आशय यही था कि यद्यपि वे इन दिनों परिस्थितिवश आंदोलन का संचालन कर रहे हैं, पर वास्तव में उनका क्षेत्र दूसरा है। वे पहले स्वयं उस योग- मार्ग की खोज करेंगे, जो मानव को महामानव (सुपरमैन) बना सकता है और फिर अपने अन्य देशवासियों को भी उसी पर चलने में सहायता करेंगे। राजनीतिक आंदोलन की सफलता के लिए भगवान् किसी दूसरे ही नेता को भेजेगा। इस प्रकार अपने एकांतवास के इरादे को सार्वजनिक रूप से प्रकट करके पहले तो वे चंद्रनगर चले गये और बाद में पांडिचेरी जाकर साधना करने लगे। इस स्थान को चुनने का कारण यह था कि यह फ्रांसीसियों के शासन में था और यहाँ वे अंग्रेजी सरकार और पुलिस की निरंतर छेड़खानी से निश्चिंत रहकर आध्यात्मिक साधना में संलग्न हो सकते थे।

इस संबंध में बाद में कुछ अंग्रेजी अफसरों ने अपनी तुच्छ मनोवृति का परिचय देते हुए यह आरोप लगाया कि श्री अरविंद गिरफ्तारी के डर से भारत की सीमा के बाहर भाग गये। इसका उत्तर देते हुए उन्होंने मद्रासटाइम्स नामक पत्र में लिखा कि वे उच्च योग की साधना के लिए पांडिचेरी में आकर रहने लगे हैं और जिस वारंट के कारण भागने की बात कही जाती है, वह उनके पांडिचेरी पहुँचने के बाद निकाला गया था, उसके मुद्रक को गिरफ्तार करके सरकार ने मुकदमा चलाया था। नीचे की अदालत में तो उसे कुछ सजा दे दी गई, पर हाईकोर्ट में अपील करने पर उसे बरी कर दिया गया और जजों ने कहा कि श्री अरविंद की खुली चिट्ठी में राजद्रोह की कोई बात नहीं है।

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