स्वामी विवेकानंद

त्याग भाव

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इसके पश्चात नरेन्द्र का संपर्क परमहंस देव से क्रमश: बढ़ता गया और इससे आध्यात्मिक क्षेत्र में उनकी प्रगति होती गई। इस समय की एक घटना का वर्णन करते हुए एक लेखक ने बतलाया है कि एक बार परमहंस देव ने नरेन्द्र को एकांत ये बुलाकर कहा- ‘‘देखो अति कठोर तपस्या के प्रभाव से मुझे कितने ही समय से अणिमा आदि सिद्धियाँ प्राप्त हो चुकी हैं। पर मेरे जैसे मनुष्य के लिए जिसे पहने हुए वस्त्र का भी ध्यान नहीं रहता, उन सबका उपयोग करने का अवसर ही कहाँ मिल सकता है? इसलिए मैं चाहता हूँ कि माँ (काली देवी) से पूछकर उन सबको तुझे सौंप दूँ, क्योंकि मुझे दिखाई पड़ रहा है कि आगे चलकर तुझे माँ का बहुत काम करना है। इन सब शक्तियों का तेरे भीतर संचार हो जाए तो समय पड़ने पर उनका उपयोग हो सकता है। कहो, तुम्हारा क्या विचार है?’’

नरेन्द्र को यद्यपि अब तक के अनुभवों से परमहंस देव की दिव्य शक्तियों पर बहुत कुछ विश्वास हो चुका था, तो भी उन्होंने कुछ देर विचार करके कहा- ‘‘महाराज, इन सब सिद्धियों से मुझे ईश्वर प्राप्ति में सहायता मिल सकेगी?’’

श्री रामकृष्ण- ‘‘इस संबंध में तो सम्भवत: उनसे कोई सहायता प्राप्त नहीं हो सकेगी। तो भी ईश्वर प्राप्ति के पश्चात जब उनका कार्य करने में प्रवृत्त होगा तो ये सब बहुत उपयोगी होंगी।’’

नरेन्द्र- ‘‘तो महाराज! इन सब सिद्धियों की मुझे क्या आवश्यकता है? पहले ईश्वर दर्शन हो जाए, फिर देखा जाएगा कि इन सिद्धियों को ग्रहण किया जाए या नहीं? अत्यंत चमत्कारिक विभूतियों और सिद्धियों को अगर अभी से लेकर ईश्वर प्राप्ति के ध्येय को भुला दिया जाए और स्वार्थ की प्रेरणा से उनका अनुचित प्रयोग किया जाए तो यह बड़ी हानिकर बात होगी।’’

इस उत्तर को सुनकर परमहंस देव बहुत संतुष्ट हुए और उन्होंने समझ लिया कि नरेन्द्र वास्तव में त्याग भावना वाला है और वह सेवा मार्ग में बहुत अधिक प्रगति कर सकेगा।

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