नरेन्द्र को यद्यपि अब तक के अनुभवों से परमहंस देव की दिव्य शक्तियों पर बहुत कुछ विश्वास हो चुका था, तो भी उन्होंने कुछ देर विचार करके कहा- ‘‘महाराज, इन सब सिद्धियों से मुझे ईश्वर प्राप्ति में सहायता मिल सकेगी?’’
श्री रामकृष्ण- ‘‘इस संबंध में तो सम्भवत: उनसे कोई सहायता प्राप्त नहीं हो सकेगी। तो भी ईश्वर प्राप्ति के पश्चात जब उनका कार्य करने में प्रवृत्त होगा तो ये सब बहुत उपयोगी होंगी।’’
नरेन्द्र- ‘‘तो महाराज! इन सब सिद्धियों की मुझे क्या आवश्यकता है? पहले ईश्वर दर्शन हो जाए, फिर देखा जाएगा कि इन सिद्धियों को ग्रहण किया जाए या नहीं? अत्यंत चमत्कारिक विभूतियों और सिद्धियों को अगर अभी से लेकर ईश्वर प्राप्ति के ध्येय को भुला दिया जाए और स्वार्थ की प्रेरणा से उनका अनुचित प्रयोग किया जाए तो यह बड़ी हानिकर बात होगी।’’
इस उत्तर को सुनकर परमहंस देव बहुत संतुष्ट हुए और उन्होंने समझ लिया कि नरेन्द्र वास्तव में त्याग भावना वाला है और वह सेवा मार्ग में बहुत अधिक प्रगति कर सकेगा।