संत विनोबा भावे

विनोबा का सच्चा धर्म

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विनोबा परम धार्मिक थे। यदि अच्छी तरह जाँच- पड़ताल की जाए, तो उनके मुकाबले के धार्मिक व्यक्ति देश भर में सौ- पचास भी मुश्किल से मिलेंगे। जिसे मनुष्य ने देश और समाज की सेवा के लिए बाल्यावस्था से घर के समस्त सुखों का त्याग कर दिया और आजन्म एकाकी रहकर ब्रह्मचर्य- व्रत का कठोरतापूर्वक पालन किया, जिसने परोपकार और परमार्थ के लिए महान् तपस्यामय जीवन बिताया उसे कौन धार्मिक न कहेगा ??

पर विनोबा सच्चे धर्म का आचरण करने वाले थे। ऊपरी दिखावा और ढोंग से कोसो दूर रहने वाले थे। इसलिए जहाँ सत्य- धर्म के अनुयायी उनकों एक दैवी- आत्मा की तरह पूजते थे, वहाँ लकीर के फकीर और धर्म के नाम पर दुराग्रह करने वाले उनको गालियाँ देते रहे तरह- तरह से अपमानित करते रहे ।। बिहार का भ्रमण करते हुए जब वे देवघर पहुँचे तो कुछ लोगों ने उनसे वैद्यनाथ धाम के मन्दिर में जाने को कहा। विनोबा ने उत्तर दिया कि मेरे साथ तो हरिजन भाई भी जाते है, इसलिए मन्दिर के पुजारी रजामंद हो तो मैं जाऊगाअन्यथा नही। पहले तो कुछ पुजारियों ने 'हाँ' कह दी ,पर जब वे अपनी समस्त मंडली के साथ पहुँचे तो दरवाजे पर ही मंदिर वालों मार- पीट शुरु कर दी। विनोबा के साथियों ने स्वयं मार सहन करके उनको बचाने की चेष्टा की, तो भी उनको कुछ चोटें लगीं जिससे बायाँ कान खराब हो गया। वे मंदिर से वपास चले आये ,, सबसे कह दिया कि इस घटना के लिए किसी के विरुद्ध कुछ कार्यवाही न की जाए। इसके पश्चात् बिहार के मुख्यमंत्री स्वयं अनेक हरिजनों को लेकर वैद्यनाथ के मंदिर में गये और वह सदा के लिए अछूतों के लिए खोल दिया।

जब वे केरल पहुँचे तो गुरुवयूर के मंदिर में आमंत्रित किया गया। पर विनोबा ने कहा, मेरे साथ कुछ स्थानीय ईसाई भी रहने लगे हैं, उनको रोका तो न जायेगा ?? पुजारियों ने इसे स्वीकार न किया और विनोबा ने वहाँ का कार्यक्रम रद्द कर दिया।

कर्नाटक में गोकर्ण महाबलेश्वर का मंदिर है। जब विनोबा को मंदिर के पुजारियों ने बुलाया तो उनके साथ सलीम नाम का एक भूदानी कर्यकर्ता भी था। उन्होंने यह बात मंदिर वालों को बतला दी और उन्होंने इसे खुशी से स्वीकार कर लिया। तब वे प्रसन्नतापूर्वक सलीम के साथ दर्शन करने पहुँचे।

महाराष्ट्र में सबसे बडा़ तीर्थ पंढरपुर है, जहाँ नामदेव आदि अनेक संत हो गये हैं। जब विनोबा भूदान के लिए भ्रमण करते वहाँ पहुँचने वाले थे तो कुछ विघ्नकर्ताओं ने पहले ही अफवाह उडा़ दी कि 'विनोबा' कुछधर्मभ्रष्ट लोगों लेकर आ रहे हैं और उनके साथ मंदिर में घुसेंगे। पर ऐसे मनाही वाले स्थानों में स्वयं ही नहीजाते, क्योकि पारस्परिक वैमनस्य उत्पन्न करना उनको बहुत नापसंद है। इसलिए अफवाह फैलाने वाले स्वयं ही जनता के सामने झूठे पड़ गये।

जब पुंडलीक मंदिर वालों ने स्वयं उनके पास आकर कहा- ''बाबा ! आप हमारे मंदिर में अवश्य पधारें। आपके परिवार में जो भी लोग है, वे भले ही दूसरे धर्म के हों, पर वे सब भक्त ही हैं। उन्हें लेकर आप जरूर आइये।''

बाबा ने कहा- ''अच्छा हो आप अपना निमंत्रण लिखकर दे दे ?'' उन्होंने लिखकर दे दिया। इस समाचार को जानकर रुक्मिणी और विट्ठल मंदिरों के संचालक भी उनके पास पहुँचे और वैसा ही निमंत्रण- पत्र दे आये। तीनों पत्रों को पढ़कर विनोबा आनंद से गद्गद् हो गये और कहने लगे कि 'इन पंढ़रपुर के पुजारियों ने अपने प्रेम से मुझे जीत लिया। अब मैं उनके यहाँ अवश्य जाऊँगा ।'' दूसरे दिन सबेरे वे अपने पूरे परिवार के साथ मन्दिर में गये। उनके साथ हरिजन, मुसल्मान्, ईसाई सब थे। बीबी फातमा भी थी और जर्मनी की कड़की 'हेमा' भी थी।

जब विनोबा अजमेर पहुँचे तो वहाँ की देश प्रसिद्ध ख्वाजा साहब की दरगाह वालों ने उन्हे बुलाया। वे सर्वोदय सम्मेलन के दस हजार प्रतिनिधियों के साथ दरगाह में पहुँचे और वहाँ उन्होंने 'गीता' की प्रार्थना की। दरगाह वालों ने उनका बडा़ आदर किया और पगडी़ बाँधी।

पाठक विचार करें कि कौन्- सा धर्म -मार्ग कल्याणकारी और सच्चा है ?? क्या वैद्यनाथ धाम के पुजारी का 'धर्म' जिन्होंने जनकल्याण के तन, मन, धन अर्पण कर देने वाले महापुरुषों पर लाठियाँ चलाई ?? अथवा विनोबा का 'धर्म' जिन्होंने 'फातमा' और 'हेमा' जैसे दूरवर्ती व्यक्तियों को भगवान् का भक्त और गरीबों का सेवक बना दिया ?? वे भगवान् पर पूर्ण श्रद्धा रखते थे, उसी का नाम लेकर खूनी और डाकुओं के बीच चले जाते थे, पर वे उसी भगवान् के उपासक रहे, जो दीन्- दुखियों, भूखे- नंगों की खबर ले। वे कहते हैं कि ''जब ये भूखे- प्यासे, दरिद्र- नारायण हमारे सामने खडे़ हैं और हम उनकी तरफ से निगाह फेरकर पत्थर की मूर्ति के लिए घर बनायें, कपडे़ पहिनायें भोग लगायें, तो कैसे चलेगा ?? हमारा आज का धर्म तो यही है कि हम इस भूखे- नंगे और सर्दी से ठिठुरने वाले भगवान् को खिलायें- पिलायें, उसे कपडे़ पहिनायें, उसके निवास स्थान की व्यवस्था करें।

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