संत विनोबा भावे

विनोबा की समन्वयात्मक प्रवृति

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
महात्मा जी ने विनोबा को जो इतना प्रेम और सम्मान दिया वह निराधार नही था। लोकहित के कार्यों के लिये गाँधी जी की त्याग और तपस्या संसार में प्रसिद्ध है, पर उस स्थिति को उन्होंने बहुत समय में तथा बडा़ प्रयत्न करके प्राप्त किया था, पर वे सब प्रवृत्तियाँ विनोबा में जन्मजात थी, यह भी कहना अत्युक्ति नही है। खाने- पीने का स्वाद उनको बाल्यावस्था से ही नही था। कभी उनकी माँ दाल में नमक डालना भूल जाती अथवा अन्यमनस्क हो जाने से दो बार डाल देती भी विनोबा को कुछ पता नही चलता और वे उसे बडी़ रुचि से खा लेते। जब अन्य भाई खाने को बैठते तो उसका पता लगता। इस तरह अस्वाद- व्रत का अभ्यास उनको आरंभ से ही था। ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा उन्होंने दस वर्ष की अवस्था में ही में ली थी और ७५वर्ष की उम्र तक निबाहते जाते हैं। तो वे इसमें संदेह नही कि यदि विनोबा ने विवाह कर लिया होते तो वे इस प्रकर का युग -परिवर्तनकारी कार्य नही कर सकते थे। महात्मा गाँधी और लोकमान्य तिलक की यही विशेषता थी कि वे गृहस्थ होत हुए भी सांसारिक विषयों की व्यवस्था और भली प्रकार संचालन करते हुए भी त्याग की चरम सीमा पर पहँच सके थे। यह जीवन्मुक्त व्यक्तियों का लक्षण है, प्रत्येक का उसे प्राप्त कर सकना संभव नहीं।

पर विनोबा में ये लक्षण स्वभावत: ही पाये जाते थे। उन्होंने जो अपने पत्र में महात्मा गाँधी को लिखा था कि- ''मुझे कभी- कभी ऐसा प्रतीत होता है कि मेरा जन्म ही आश्रम के लिये हुआ है।'' वह सत्य ही था। ऐसी दैवी विभूतियाँ किसी खास उद्देश्य की पूर्ति के लिये संसार में आया करती हैं। विनोबा में छोटी अवस्था से हीगीताध्ययन की जो प्रवृति दिखाई देती थी और उसी के अनुसार उनमें जो ज्ञान, कर्म और भक्ति का आविर्भाव हो गया था, वह उनकी इस विशेषता को प्रमाणित करता है। ज्ञान और कर्म की यात्रा उनमें पहले ही अधिक थी, पर जनता की सेवा करते हुए भक्ति- भावना विशेष रुप से विकसित होती गई। दक्षिण- भारत की एक सभा में जब वे भाषण देने को खड़े हुए तो सामने ही कपडे़ पर तेलुगु भाषा में लिखा दिखाई पडा़- ''रामराज्यम् स्थापनचन्दि'' अर्थात् ''रामराज्यम् की स्थापना कीजिए।'' उस दिन विनोबा ने अपने भाषण में इसी की विशेष रुप से व्याख्या की और कहा- ''कौन करेगा राम राज्य की स्थापना ?? इसमें संदेह नही कि राम राज्य से ही दुनिया केदु:ख मिटेंगे, पर राम- राज्य हो कैसे ?? हमारे मन में बुरी- बुरी बातें भरी है,लडा़ई- झगडे़ की बाते भरी है, 'मेरे' 'तेरे' की बात भरी है, ऊँच- नीच की बात भरी है। इनको छोड़े बिना राम- राज्य कैसा आयेगा ?? राम- राज्य का मतलब है 'सबका राज'। गरीब का राज, प्रेम का राज ।। सब लोग होंगे सेवक,राजा होगा राम।''

यह समझाते हुए विनोबा का गला भर आया। कहने लगे- ''लोग हमसे पूछते है की बाबा पाँच साल तोघुमे और अब कहाँ तक घूमते रहोगे ?? हम पूछते हैं कि हमारे राजा राम तो चौदह साल वन- वन में भटके थे हमारी कीमत ही क्या है ?? यह कहत- कहते विनोबा सचमुच रो पडे़। उनके हृदय में गरीबों का दर्द इतना अधिक है कि जब उनके कष्टों का ध्यान आता तो वे रोने लग जाते है। यह भक्ति का चरम लक्षण है। नरसी मेहता ने वैष्णों- भक्तों की व्याख्या करते हुए सत्य ही कहा है- ''वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाने रे ।''

विनोबा वेदांत और शंकराचार्य के ब्रह्मसूत्र के विद्यार्थी होने पर भी सच्चे वैष्णव थे ।। उन्होंने गरीबों की पीड़ा को बहुत अधिक अनुभव करके ही भूदान आंदोलन चलाया है। इसके द्वारा अब तक एकाध करोड़ व्यक्तियों की रक्षा हो ही सकी है।

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118