समर्थ गुरु रामदास

त्याग वृत्ति और सेवा भावना

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श्री समर्थ गुरु के विषय में जो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ प्रसिद्ध हैं, उनमें से एक यह है कि शिवाजी को शिष्यत्व की दीक्षा देने के उपरांत एक दिन वे स्नान, संध्या-वंदन करके नियमित रूप से भिक्षा माँगते हुए सतारा में राज महलों पर पहुँच गए और वहाँ भी अन्य स्थानों में भिक्षा माँगने के समान जय जय रघुवीर समर्थ '' की ध्वनि की। गुरु की बोली को पहिचानकर शिवाजी महाराज आनंद मग्न हो गए और विचार करने लगे कि ऐसे महान् भिखारी '' की झोली में क्या भिक्षा डाली जाए?' उन्होंने कागज पर अपने समस्त राज्य का दान- पत्र लिखकर झोली में डाल दिया। जब समर्थ गुरु ने उसे पढ़ा तो हँसकर कहने लगे कि -शिव! तुमने समस्त राज्य तो हमको दे डाला, अब तुम क्या करोगे?'' शिवाजी ने हाथ जोड़कर कहा- 'महाराज! मैं आपकी चरण सेवा करूँगा। '' समर्थ गुरु इस भक्ति- भाव को देखकर बहुत संतुष्ट हुए और बोले- 'हम वैरागी राज्य को लेकर क्या करेंगे? अब हमारी अमानत समझकर राज्य का कारोबार तुम्ही चलाओ। '' शिवाजी ने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य किया और उसी दिन से राज्य का झंडा भगवा रंग का कर दिया। तब से वे अपने को राज्य का एक सेवक समझकर ही सब कार्य करते रहे। इस प्रकार श्री समर्थ ने एक ही समय '' त्याग और कर्तव्य- भावना का परिचय देते हुए एक अनुपम परंपरा का सूत्रपात कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप शासन कार्य में धर्म और न्याय का विशेष रूप से समावेश हो गया।
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