एक बार इसी तरह आग्रह करते-करते उन्होंने रामदास से विवाह के लिए जबर्दस्ती 'हाँ' कहलवा लिया। इस पर माता ने एक ब्राह्मण-कन्या से उनका संबंध पक्का कर दिया। नियत तिथि पर घर वाले बरात के साथ कन्या के घर पहुँचे और विवाह की क्रिया होने लगी। जब अतरपट पकड़ने के पश्चात् भाँवरों का समय आया, तो सब ब्राह्मणों ने एक साथ 'सावधान ' शब्द का उच्चारण किया। रामदास के मन में विचार आया कि यह लोग इतने जोर से 'सावधान' क्यों कह रहे हैं? क्या इसका यह आशय है कि, अब मैं एक ऐसे बंधन में पड़ने जा रहा हूँ, जिससे आजन्म छुटकारा नहीं मिलेगा? ऐसा विचार आने से उनकी मनोवृत्ति एकदम बदल गई और वे विवाह-मंडप से उठकर बड़े जोर से बाहर की तरफ भागे। कुछ लोग उनको पकड़ने के लिए दौड़े, पर उस 'हनुमान-भक्त' को कौन पा सकता था ? इस समाचार को पाकर उनकी माता जब दुःखी होने लगी तो बड़े भाई ने समझाया कि-'रामदास जहाँ रहेगा आनंद से ही रहेगा, तुम उसकी ज्यादा चिंता न करो। उसने धर्म-साधन का दृढ़ निश्चय कर लिया है, इसलिए विवाह के लिए उसके पीछे पड़ना ठीक न होगा।"