उस समय बारदौली की स्थिति कहाँ तक गंभीर हो गई थी, इसका कुछ अनुमान बंबई के अंगेजों के मूखपत्र 'टाइम्स' ऑफ इंडिया' के निम्न लेखांश से हो सकता है- "आर्य देश के बंबई प्रांत में बारदौली नाम का एक मंडल है। वहाँ महात्मा गांधी ने बोल्शेविज्म का प्रयोग करना आरंभ कर दिया है। प्रयोग सफल भी होता जा रहा है। वहाँ सरकार के सारे कल- पुर्जे मंद पड़ गये हैं। गांधीजीके शिष्य पटेल का बोलबाला है। वही वहाँ का 'लेनिन' है। स्त्रियों, बालकों और पुरुषों में एक नई ज्वाला धधक रही है। इस ज्वाला में राजभक्ति की अंत्येष्टि क्रिया हो रही है। स्त्रियों में नवीन चेतनता भर गई है। वल्लभ भाई में वे असीम भक्ति रखती हैं। उनके गीतों में राज- विद्रोह की भयंकर आग सुलग रही है। उनको सुनते ही कान जलने लग जाते हैं या ऐसा ही रहा तो वहाँ रक्त की नदियाँ बहने लगेंगी।"
एक तरफ अंग्रेजों के पत्र इस प्रकार किसान आंदोलन के विरुद्ध विष वमन कर रहे थे और अपनी समझ सेबारदौली के किसानों को संसार की दृष्टि में विद्रोही और बागी सिद्ध करके वहाँ खून- खराबा होने का भय दिखला रहे थे और दूसरी ओर बंबई के पारसी नेता श्री नरीमैन भडोंचे जिला परिषद् के अधिवेशन में अपने भाषण में कह रहे थे।
"आज से दस- बीस वर्ष पहले जो किसान था, वह किसान अब नहीं रहा बारदौली में आज अंग्रेजों को पूछता कौन है? आज मारपीट कर जबर्दस्ती ही किसान को वे कहीं ले जा सकते हैं। नहीं, तो वहाँ अब कौए उड़ते हैं। लोगों की सच्ची कचहरी तो 'स्वराज्य- आश्रम' है और उनकी सरकार है- सरदार वल्लभ भाई। परवल्लभ भाई के पास न तो तोप है, न भाले और न बंदूक। वह तो केवल प्रेम और सत्य के सहारे बारदौली में राज कर रहे हैं। अब तो सारे गुजरात को ही बारदौली बन जाना चाहिए। सारे भारत में यह भावना फैल जायेगी, तब स्वराज्य अपने आप हो जायेगा।
इस प्रकार सरदार पटेल ने बारदौली में एक नई दुनिया की रचना करके दिखा दी। अंग्रेजों का राज और उनकी पुलिस, फौज सब कुछ होने पर भी वहाँ उनकी शक्ति बिल्कुल समाप्त हो गई थी। सरदार पटेल ने सब प्रकार की खबरों को प्राप्त करने के लिए गुप्तचरों और स्वयंसेवकों की ऐसी व्यवस्था की कि सरकारी कर्मचारी किसानों को दबाने के लिए जो कोई भी चाल सोचते उसकी खबर तुरंत "स्वराज्य आश्रम" में पहुँच जाती थी और वहाँ से उसे उसी समय छापकर तमाम गाँवों में फैला दिया जाता था। आंदोलन के सभी प्रमुख समाचार प्रतिदिन 'सत्याग्रह समाचार' में छापकर वितरित किए जाते थे।
अब समस्त देश में बारदौली का नाम और यश छा गया। प्रत्येक समाचार पत्र के कॉलम वहाँ के समाचारों से भरे रहते थे। अंग्रेजों के समाचार पत्रों में वे समाचार यद्यपि निंदा के रूप में छापते थे, पर उनके द्वाराबारदौली के आंदोलन का नाम विदेशों में भी पहुँच गया। मालवीय जी और लाजपतराय जैसे भारतपूज्य नेता भी उसका समर्थन करने लगे। बंबई विधान सभा के १५ भारतीय सदस्यों ने सरकार की दमन नीति के विरोध में त्याग- पत्र दे दिये। प॰ हृदयनाथ कुँजरू, श्री अमृतलाल ठक्कर, जमनालाल जी बजाज आदि ने बारदौलीजाकर वहाँ की स्थिति को अच्छी तरह देखा, और उसकी जाँच की। सबने सरकार की निंदा की और उसको चेतावनी दी कि उसे अन्याय बंद करके किसानों की उचित माँगों को स्वीकार करना चाहिए, अन्यथा इसका परिणाम उसके लिए हितकर नहीं हो सकता।
जब सरकार जब्ती, कुर्की, नीलामी, मार- पीट आदि सब उपाय करके थक गई और किसान टस से मस न हुए तो उसने अपनी हार स्वीकार कर ली और बंबई के गवर्नर ने सरदार पटेल को समझौते के संबंध में बातें करने को बुलाया। सरकार की तरफ से यह वायदा किया गया कि सरकार उचित मामलों की जाँच करके बढे़हुए लगान को माफ कर देगी। इसके बदले में, सरकार चाहती थी कि सत्याग्रह आंदोलन बंद कर दिया जाए और लोग पहले की तरह स्वेच्छा से लगान देने लगें। सरदार ने जिन लोगों की जमीन और माल जब्त किया गया था, उसको वापस करने की माँग की। साथ ही यह भी कहा की प्रजा का साथ देने के कारण जिन पटेलों तथा तलाटियों (पटवारियों) को नौकरी से अलग कर दिया गया था, उनको उसी पुरानी तारीख से नौकरी माना जाए। कहना न होगा कि ये सभी माँगें स्वीकार कर ली गईं। बारदौली की विजय का संपूर्ण देश में बडी धूमधाम से स्वागत किया गया और एक कवि ने 'गीता' के शब्दों में घोषित किया-
यत्र योगेश्वरो गांधी वल्ल्भश्च धूधुर्रः।
तत्र श्रीर्विजयो भुतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।